दो टूक (05 मार्च, 2010)
पहले ही डॉक्टरों की तंगी झेल रहे देश को इस साल करीब तीन हजार मेडिकल सीटों से हाथ धोना पड़ेगा। कॉलेजों के मानकों पर खरे नहीं उतरने का खामियाजा छात्रों और अंतत: समाज को भुगतना पड़ता है। जांच-पड़ताल किए...
पहले ही डॉक्टरों की तंगी झेल रहे देश को इस साल करीब तीन हजार मेडिकल सीटों से हाथ धोना पड़ेगा। कॉलेजों के मानकों पर खरे नहीं उतरने का खामियाजा छात्रों और अंतत: समाज को भुगतना पड़ता है। जांच-पड़ताल किए बगैर दरियादिली से प्राइवेट प्रोफेशनल कॉलेजों को मंजूरी देने और फिर मौका ताड़कर उसे निरस्त करने का यह खेल बड़ा रहस्यमय है।
संभव है इसमें भी बड़े-बड़े घोटाले और करोड़ों के वारे-न्यारे होते हों। मगर उन छात्रों को कौन जवाब देगा, जो सड़क छाप कॉलेजों से मेडिकल, इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट की डिग्रियां लेकर मारे-मारे फिर रहे हैं। विशुद्ध कमाई के लिए बनीं प्रोफेशनल डिग्रियों की ये दुकानें मानव श्रमशक्ति की, भविष्य की जरूरतों के लिहाज से आत्मघाती साबित हो सकती हैं।