दशक के अंत में
भारत के नजरिए से पिछला दशक कई संदर्भो में याद किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति बीसवीं शताब्दी के शुरू के वर्ष और आज के भारत की तस्वीर की तुलना करे तो एक बड़ा फर्क दिखेगा। आज की तस्वीर में कई सारे लोग...
भारत के नजरिए से पिछला दशक कई संदर्भो में याद किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति बीसवीं शताब्दी के शुरू के वर्ष और आज के भारत की तस्वीर की तुलना करे तो एक बड़ा फर्क दिखेगा। आज की तस्वीर में कई सारे लोग मोबाइल पर बात करते हुए दिखेंगे। अगर पिछले वर्षो में सचमुच कोई क्रांति हुई है तो वह संचार क्रांति है।
मोबाइल नामक एक छोटे से खिलौने ने भारतीय आम आदमी को वह आजादी ओर सामर्थ्य दी है जो पिछले साठ साल क तमाम सरकारी सशक्तिकरण कार्यक्रम नहीं दे पाए। भारतीय आम आदमी ने मोबाइल को अपने रोजमर्रा की दिनचर्या ओर रोजगार के साथ इतनी कल्पनाशीलता के साथ जोड़ा कि देखते ही बनता है। हम यह कह सकते हैं कि अगर पहली औद्योगिक क्रांति के साथ पश्चिम का उदय हुआ था तो सूचना और संचार क्रांति ने भारत जैसे देशों को तरक्की की कई सीढ़ियां पार करवा दीं और भावी महाशक्ति बना दिया।
पिछले दशक ने भारतीय मध्यवर्ग का भी उदय देखा। आजादी के बाद लगभग 40-45 वर्ष तक मध्यवर्ग वह था जो सरकारी बाबू था, जिसकी भूमिका सिर्फ सरकारी मशीन के एक अस्तित्वहीन पुर्जे की थी। राजनैतिक और आर्थिक स्तर पर उसका खास मतलब नहीं था। गरीबों का महत्व इसलिए था कि उनके नाम पर गरीबी हटाने की भावुक अपीलें हो सकती थीं आर ताकतवर और संपन्न वर्ग को उसके वोट की भी जरूरत थी।
उदारीकरण के बाद और सूचना और संचार क्रांति के चलते भारतीय मध्यवर्ग अचानक भारत की आर्थिक प्रगति का इंजन बन गया। हमारे इंजीनियर, मैनेजर, तकनीकी ज्ञान रखने वाले लोगों की प्रतिभा की चमक दुनिया ने देखी और यह बाबू वर्ग अपनी धूल झाड़कर दुनिया से प्रतिस्पर्धा करने लगा। जिस पढ़ाई की हैसियत सिर्फ कलम घिसने की नौकरी पाने तक सीमित थी, सूचना और संचार क्रांति के बाद वही पढ़ाई भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने का आधार बन गई। और अगर पिछले वर्षो के संकेत पढ़े जाएं तो अगली बारी देश के विराट निम्नवर्गीय आम आदमी की है जो अपनी हिम्मत और मेहनत से अपने लिए अवसर बना रहा है। अगर भारत सरकार अन्न, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं को कुछ सहज उपलब्ध करवा दे तो अपने लिए और देश के लिए तरक्की के रास्ते यह वर्ग खुद खोज लेगा। यही रास्ता है जिस पर चलने से जाति, क्षेत्र, धर्म के भेदभाव और संकीर्ण झगड़े पीछे छूट जाएंगे, जो खामख्वाह हमारी ऊर्जा को नष्ट कर रहे हैं।