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निर्यातकों के लिए सबसे बुरा दौर

मंदी के कारण पश्चिमी बाजारों में मांग में कमी के कारण भारत का निर्यात 2009 में बुरे दौर से गुजरा और इस दौरान निर्यात कारोबार में भारी गिरावट आई। 13 साल में सबसे बुरे हाल पूरे साल निर्यातकों की हालत...

निर्यातकों के लिए सबसे बुरा दौर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 27 Dec 2009 03:38 PM
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मंदी के कारण पश्चिमी बाजारों में मांग में कमी के कारण भारत का निर्यात 2009 में बुरे दौर से गुजरा और इस दौरान निर्यात कारोबार में भारी गिरावट आई।

13 साल में सबसे बुरे हाल
पूरे साल निर्यातकों की हालत खस्ता रही और मई में उनकी परेशानी हद पर पहुंच गई जबकि निर्यात में 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। पिछले 13 साल में निर्यात में इतनी बड़ी गिरावट नहीं देखी गई थी। हालांकि नवंबर में 18.3 फीसदी की वृद्धि से निर्यात उद्योग के लिए आशा की किरण दिखी है।

भारतीय निर्यात संगठनों के परिसंघ (एफआईईओ) के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कि हम संकट का दौर नहीं भूल सकते, लेकिन साल के अंत में उम्मीद की कुछ किरण दिखी है। हालांकि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से नवंबर की अवधि में निर्यात गिरकर 104.25 अरब डालर रह गया, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 134. 2 अरब डॉलर था। अंकटाड को निर्यात क्षेत्र में करीब 13 लाख लोगों के बेरोजगार होने का अनुमान है।

नई विदेश व्यापार नीति
इस साल पंचवर्षीय विदेश व्यापार नीति पेश की गई, जिसमें नए बाजारों -जो पश्चिमी देशों की तरह मंदी से बुरी तरह प्रभावित नहीं हुए हैं- में निर्यात बढ़ाने की योजनाओं पर विशेष बल दिया गया है। निर्यातक अमेरिका और यूरोप के पारंपरिक बाजारों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं जहां से उन्हें करीब एक तिहाई आय होती है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2008-09 में 185 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था। वर्ष के दौरान भारत के निर्यातकों को यह बात और अच्छी तरह समझ में आई कि वे केवल कुछ अमीर देशों के बाजार पर ही निर्भर नहीं रह सकते।

बाजार के प्रमुख परिधान निर्यातक शक्तिवेल ने कहा कि हमें सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहिए। भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के विशेषज्ञ आरएम जोशी को लगता है कि निर्यातकों ने समस्या की गंभीरता को कम करके बताया।

देश के निर्यात बास्केट में मुख्य भूमिका इंजीनियरिंग उत्पाद, कपड़ा और परिधान, रत्न एवं आभूषण और पेट्रोलियम उत्पादों की होती है और इनमें से ज्यादातर अमेरिका और यूरोप जाता है।
  
मंदी से बुरी तरह प्रभावित इन क्षेत्रों की निर्यात इकाइयों में करीब आठ करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। हालांकि अगस्त से कुछ क्षेत्रों में निर्यात में गिरावट थमी है जबकि मई में यह चरम पर था। उनकी मुश्किल 2008 से शुरू हुई थी। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने हाल में कहा कि निर्यात की गिरावट में कमी आई है।

अच्छा होगा नया साल!
वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा इस खंड में बेहतर भविष्य की उम्मीद कर रहे हैं। नीति निर्माताओं की चिंता को दरकिनार करते हुए शर्मा ने कहा कि उन्हें अगले कुछ महीने में हालात में सुधार की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान उन्हें निर्यात में 15 फीसदी वृद्धि का अनुमान है।

जोशी ने कहा कि जून 2010 में हालात अच्छे होंगे। डॉलर में मजबूती निर्यातकों के लिए संतोष का विषय रहा, जिन्हें घरेलू मुद्रा में बेहतर मुनाफा मिल रहा था।

रुपए-डॉलर की रस्साकशी
मार्च में डॉलर 50 रुपए को पार कर गया जो बाद में दिसंबर के मध्य में 46.5 रुपए पर वापस आ गया था। हालांकि मोटे तौर पर जनवरी से दिसंबर के बीच रुपए में तेजी की ही स्थिति रही लेकिन समीकरण कुछ ऐसे बने कि निर्यातकों के लिए यह फायदेमंद रहा।

सरकार ने अपनी ओर से प्रोत्साहन पैकेज दिया जिससे निर्यातकों की परेशानी कुछ हद तक कम हुई। इसमें बैंकों से रियायती दर पर ऋण दिया जाना और बेहतर ड्राबैक के जरिए कर रीफंड की दरों में सुधार शामिल है।

अगस्त में पेश विदेश व्यापार नीति में वाणिज्य मंत्री ने अफ्रीका, ओसियानिया के नए बाजारों के प्रति निर्यातकों को प्रोत्साहित करने के लिए कई रियायतों की घोषणा की।

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