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भारत इस साल एशिया का चौथा सबसे भ्रष्ट देश बना

सत्यम घोटाले की हलचल से 2009 की जो शुरुआत हुई, उसका जलजला लगभग पूरे साल महसूस किया गया और इस दौरान संचार मंत्रालय का स्पेक्ट्रम, झारखंड के पूर्व राज्यपाल सिब्ते रजी तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोडा,...

भारत इस साल एशिया का चौथा सबसे भ्रष्ट देश बना
एजेंसीSun, 27 Dec 2009 02:55 PM
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सत्यम घोटाले की हलचल से 2009 की जो शुरुआत हुई, उसका जलजला लगभग पूरे साल महसूस किया गया और इस दौरान संचार मंत्रालय का स्पेक्ट्रम, झारखंड के पूर्व राज्यपाल सिब्ते रजी तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोडा, पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह के बेटे स्वीटी तथा हाल के दिनों में संसद में भी गूंजे न्यायमूर्ति दिनाकरन के भूमि घोटाले जैसे कई बडे़ मामले सुर्खियों में रहे। इसी दौरान भारत भ्रष्ट देशों की सूची में एशिया में चौथे तथा दुनिया में 85वें स्थान पर आ गया।

साल की शुरुआत से पहले ही देश में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की चौथी सबसे बडी़ कंपनी सत्यम में हुए सात हजार करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। इस घोटाले से कारपोरेट जगत में अनिश्चितता का माहौल छा गया और मंदी से पीडि़त अर्थव्यस्था को एक गहरा झटका लगा। शेयर बाजार में सत्यम के शेयर एक ही दिन में ढहकर इतने नीचे चले गए कि अपने पहले के स्तर तक पहुंचना अब तक सत्यम के शेयरों के लिए संभव नहीं हो पाया है। इस घटना से अमेरिकी शेयर बाजार में सूचीबद्ध इस कंपनी के शेयर धारकों में हाहाकार मच गया।

देश में कारपोरेट जगत का यह सबसे बडा़ घोटाला उजागर होते ही प्रशासन ने उसकी छानबीन के लिए पहल शुरू कर दी। यह देश के चमचमाते सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की साख पर भी एक धब्बा था।

सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया में शीर्ष पर चमक रहे भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए यह साख बचाने का समय था और सरकार के लिए घोटाले की तह तक पहुंचने की चुनौती।

नौ जनवरी को सत्यम के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू तथा उसके भाई बी रामा राजू को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पहले कंपनी के कुछ अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राजू की गिरफ्तारी के साथ ही देश के इस सबसे बडे़ कारपोरेट घोटाले की सच्चाई सामने आने लगी। सरकार ने सत्यम को बचाने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी के नेतृत्व में समिति बनाई और सत्यम को फिर से उबारने के प्रयास शुरू हो गए।

सत्यम के संकट से अभी स्थिति उबरी नहीं थी कि देश में संचार मंत्रालय का 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला सामाने आ गया। इस घोटाले की बुनियाद में संचार मंत्रालय रहा जिसने कथित रूप से 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में करोडों रुपए की हेराफेरी की। एक अनुमान के अनुसार, 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन के इस घोटाले से राजकीय कोष को 600 अरब रुपए का नुकसान हुआ है।

विपक्ष का आरोप है कि मंत्रालय ने चौथे लाइसेंस को जारी करने तथा 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए बेहद लचीली- पहले आओ पहले पाओ, की नीति अपनाई और बहुत कम मूल्य पर इसका आवंटन किया है जिससे सरकार को बडा़ घाटा हुआ है और राजकोष को अरबों रुपए का चूना लगा है।

विपक्षी दलों में विशेषकर मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने 2001 के मूल्य स्तर पर स्पेक्ट्रम जारी किए हैं और इस मामले में पूरी तरह से हेराफेरी की गई है। पार्टी का कहना है कि संयुक्त अरब अमीरात की कंपनी एटीसलात तथा स्वान टेलीकाम और नार्वे की कंपनी यूनीटेक टेलीनार को यह स्पेक्ट्रम बहुत कम दाम पर आवंटित किया गया।

उसका आरोप है कि इस आवंटन के बाद अमीरात की कंपनी देश के 13 मंडलों में यह सेवा उपलब्ध करा रही है। इसी तरह की डील नार्वे की कंपनी के साथ की गई है और दोनों कंपनियों को लाइसेंस मुफ्त में दिए गए हैं। पार्टी का कहना है कि सरकार की इस नीति से करीब 60 हजार करोड़ रुपए का राजकोषीय घाटा हुआ है। पार्टी ने इस घोटाले के मद्देनजर सरकार को स्पेक्ट्रम के नए आवंटन में अपनी नीतियों में बदलावा लाने की सलाह दी है ताकि फिर इस तरह के घोटाले की स्थिति उत्पन्न नहीं हो। माकपा ने इसे सबसे बडा़ घोटाला बताया है।

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