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संघ का दरवाजा सबके लिए खुला: भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सबके लिए अपना दरवाजा खोल दिया है। देश के सभी नागरिकों को स्वयंसेवक बनने का आह्वान करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ के विरोधी हो सकते हैं लेकिन हम किसी का विरोध...

संघ का दरवाजा सबके लिए खुला: भागवत
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Dec 2009 08:37 PM
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सबके लिए अपना दरवाजा खोल दिया है। देश के सभी नागरिकों को स्वयंसेवक बनने का आह्वान करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ के विरोधी हो सकते हैं लेकिन हम किसी का विरोध नहीं करते।

संघ को जाने बिना उसका विरोध ठीक नहीं और इसे दूर से नहीं जाना जा सकता। किसी से तुलना कर भी इसे नहीं समझा जा सकता। संघ समाज में संगठन नहीं बनाता है बल्कि समाज को संगठित करता है। हम हिन्दुत्व मानते हैं, आज यह एक वैश्विक जरूरत है। लेकिन यह भी सच है कि हिन्दुत्व सारी विविधताओं को भी स्वीकारता है।

हिन्दू चेतना ही देश की एकता का मूल मंत्र है। इसका गौरव धारण कर ही सभी एकता के सूत्र में बंध सकते हैं। स्वयंसेवकों में ब्राम्हण और हरिजन से लेकर मुसलमान तक सभी जाति और संप्रदाय के लोग शामिल हैं। नेताओं को अपना हित साधना होता है इसलिए वे भेदों को चौड़ा करते हैं।

यहूदी और पारसी को छोड़ दें तो देश में कोई भी अल्पसंख्यक नहीं। यह सिर्फ उनकी कल्पना है जो तुष्टिकरण की नीति अपनाकर भेद पैदा करते हैं और फिर मिलजुलकर रहने की सलाह भी देते हैं।

गांधी मैदान में आयोजित अभिनंदन समारोह में सरसंघचालक श्री भागवत ने पर्यावरण संकट से लेकर देश की सीमा विवाद तक चर्चा की। उन्होंने कहा कि बंगालादेशी घुसपैठियों को हटाने की बात सुप्रीम कोर्ट कह चुका है। उन्होंने कहा कि गलत नीतियों के कारण आज चीन आंख दिखाने लगा है।

अरुणाचल प्रदेश पर उसने हक जताना शुरू कर दिया है तो कश्मीर को भी वह भारत का अंग नहीं मान रहा है। उन्होंने कहा कि चीन द्वारा हड़पी गई भारत की एक-एक इंच भूमि को वापस लाने और पाक अधिकृत कश्मीर पर अपना कब्जा बहाल करने संबंधी प्रस्तावों को संसद पहले ही पास कर चुकी है। लेकिन अब तक इस पर कार्रवाई नहीं हो रही है।

पाकिस्तान की ऐंठन रस्सी जैसी है। हम शांति के पुजारी हैं इसका मतलब यह नहीं कि युद्ध के लिए चीन की इच्छा होने तक चुप बैठे रहें। पर्यावरण की चर्चा करते हुए श्री भागवत ने कहा कि हम जड़वादी हो गये हैं। विज्ञान को हथियार बनाकर हम प्रकृति पर विजय पाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हम भूल रहे हैं कि प्रकृति के ही अंग है। इसका दोहन करें लेकिन शोषण नहीं।

श्री भागवत ने कहा कि बिहार में शाखाओं और स्वयंसेवकों दोनों की संख्या बढ़ी है। देश में 40 हजार शाखाओं में 1 लाख 57 हजार स्वयंसेवक हैं। प्रखंड स्तर तक इनका विस्तार हो चुका है। यह संघ का प्रभव नहीं संस्कारों का प्रभाव है। संघ अपने नाम को नहीं काम को आगे बढ़ाना जानता है। काई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां संघ काम नहीं करता है। वह भी बिना किसी सरकारी सहायता के। अपनी कट्टरता और स्वार्थ का त्याग करने वाला हर व्यक्ति इससे जुड़ सका है।

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