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देसी फ्यूजन से सजे सुर

इस साल के फिल्मी संगीत में एक खास बात यह देखने में आई कि लोगों ने लगभग सब कुछ पसंद किया। सॉफ्ट-रोमांटिक गाने तो हमेशा से ही पसंद किए जाते रहे हैं, इधर कुछ समय से सूफियाना शैली भी लोगों को भाने लगी...

देसी फ्यूजन से सजे सुर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Dec 2009 04:09 PM
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इस साल के फिल्मी संगीत में एक खास बात यह देखने में आई कि लोगों ने लगभग सब कुछ पसंद किया। सॉफ्ट-रोमांटिक गाने तो हमेशा से ही पसंद किए जाते रहे हैं, इधर कुछ समय से सूफियाना शैली भी लोगों को भाने लगी है। जमीन से जुड़े फोक अंदाज वाले गीतों पर प्रयोग से संगीतकारों  को भी सराहना मिली। प्रीतम ने ‘लव आजकल’, ‘बिल्लू’, ‘न्यूयॉर्क’, ‘दिल बोले हड़िप्पा’, ‘तुम मिले’, ‘दे दनादन’, ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ से देसी फ्यूजन के साथ रॉक का अच्छा इस्तेमाल किया। एक आम श्रोता को उनके गाने बहुत भाए। प्रीतम ने इस साल वैरायटी भी खूब परोसी। उन्हें इरशाद कामिल और जयदीप साहनी जैसे गीतकारों का खूब सहारा मिला। ‘जय हो’ से ए़ आऱ रहमान पूरी दुनिया में छाए नजर आये। ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गीतों ने पूरी दुनिया को चौंकाया। फिर ‘दिल्ली 6’ में भी उन्होंने अपने सुरों का जादू फैलाया। असल में संगीतकार सफल भी वही होता है, जो किसी एक शैली के दायरे में बंध कर रहने की बजाय खुल कर खेले। शंकर-अहसान-लॉय की तिकड़ी के साथ यह समस्या अक्सर रहती है कि ये लोग लगभग एक-सा ही संगीत देते हैं। ‘लक बाय चांस’, ‘लंदन ड्रीम्स’ और ‘चांदनी चौक टू चाईना’ में उनकी यही कमी देखने को मिली। अनु मलिक केवल ‘कम्बख्त इश्क’ में पसंद किए गए। हिमेश रेशमिया ‘रेडियो’ में बेहतरीन संगीत के साथ दिखाई दिये। रेखा भारद्वाज और कैलाश खेर जैसी अलग आवाजों से उन्होंने ‘पिया जैसे लाडू’ गीत गवाए।  साजिद-वाजिद ने ‘वॉन्टेड’ में थिरकाने वाला मसालेदार संगीत दिया।  सलीम-सुलेमान ‘कुर्बान’ में अपने पुराने स्टाइल से हटे और ‘शुक्रन अल्लाह.’ को दिलों में उतारते चले गए। विशाल भारद्वाज ने ‘कमीने’ में ‘ढैन टणैण’ से जो हल्ला मचाया, उसे परिचय की जरूरत नहीं है। इलैयाराजा ने ‘पा’ में चाशनी सरीखा संगीत दिया। शांतनु मोइत्र ‘3 ईडियट्स’ में अपने चिर-परिचित स्टाइल में लुभा गए। ‘ऑल इज वैल’ लोगों की जुबान पर चढ़ता हुआ दिखाई दिया। इस साल तोशी-शरीब ने ‘जश्न’ और ‘राज-द मिस्ट्री कन्टिन्यूज’ में अच्छा संगीत दिया, लेकिन इन पर भट्ट कैंप की छाप साफ दिखी। कृष्णा ने ‘जुगाड़’ जैसी फ्लॉप फिल्म में भी अपनी आवाज और संगीत से ‘तू है रब मेरा रब जाणदा है.’ में असर छोड़ा। कैलाश-परेश-नरेश की तिकड़ी ने ‘चांदनी चौक टू चाईना’  में प्रभावित किया। अमित त्रिवेदी ने ‘देव डी’ में ‘इमोशनल अत्याचार’ से धूम मचाई, फिर ‘वेकअप सिड’ में संगीत देकर अपनी रेंज से परिचित कराया। पीयूष मिश्र ने भी ‘गुलाल’ में अच्छा संगीत दिया, जो काफी पसंद किया गया।  

छाए रहे नगमे
तेरा इमोशनल अत्याचार.. ‘देव डी.’
गेंदा फूल और मसकली मसकली.. ‘दिल्ली 6’
जय हो.. ‘स्लमडॉग मिलेनियर’
तुङो मिल के लगा है ये.. ‘राज 2’
मरजाणी मरजाणी.. ‘बिल्लू’
है जुनून सा सीने में.. ‘न्यूयॉर्क’
ट्विस्ट और कदी ते हंस.. ‘लव आजकल’
रात के ढाई बजे, आजा आजा दिल.. ‘कमीने’
लव मी लव मी और मेरा जलवा.. ‘वॉन्टेड’
दुनिया फिरंगी स्यापा है.. ‘दिल बोले हड़िप्पा’
गूंजा सा है कोई इकतारा.. ‘वेकअप सिड’
प्रेम की नैया है.. ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’
क्यों पैसा पैसा करती है.. ‘दे दना दन’

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