फोटो गैलरी

Hindi Newsझारखंड में खंडित जनादेश

झारखंड में खंडित जनादेश

दोनों राष्ट्रीय गठबंधनों को उम्मीद थी कि झारखंड विधानसभा चुनावों में उन्हें बहुमत मिल जाएगा और स्थानीय ताकतों, निर्दलीय वगैरह के भरोसे आखिर सरकार नहीं बनेगी। दोनों गठबंधनों के इरादे पूरे नहीं हुए।...

झारखंड में खंडित जनादेश
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 23 Dec 2009 10:16 PM
ऐप पर पढ़ें

दोनों राष्ट्रीय गठबंधनों को उम्मीद थी कि झारखंड विधानसभा चुनावों में उन्हें बहुमत मिल जाएगा और स्थानीय ताकतों, निर्दलीय वगैरह के भरोसे आखिर सरकार नहीं बनेगी। दोनों गठबंधनों के इरादे पूरे नहीं हुए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को जितनी उम्मीद थी उसके मुकाबले उसका प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा, शायद बाबूलाल मरांडी के साथ गठबंधन करने का खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा। कांग्रेस और संप्रग की स्थिति थोड़ी बेहतर है लेकिन वह भी अपने बूते या थोड़े बहुत समर्थन के साथ सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। अब झारखंड में सत्ता की चाबी गुरुजी यानी शिबू सोरेन के पास है।

चुनाव परिणामों से यह साफ है कि तमाम विवादों के बावजूद आदिवासी इलाकों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता शिबू सोरेन ही हैं। यह भी साफ है कि शिबू सोरेन किसी के साथ भी सरकार बनाएं, मुख्यमंत्री बनने का दावा उनका ही होगा। ऐसे में कांग्रेस के लिए बेहतर स्थिति इसलिए है, क्योंकि शिबू सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा उनका पुरानी सहयोगी रही है। गठबंधन सरकार की स्थिति में लालू यादव की राजद भी उपयोगी होगी और वह भी भाजपा और राजग के साथ नहीं जाएगी। कांग्रेस के लिए एक मुख्य मुद्दा शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी के बीच तालमेल बिठाना होगा, इन दोनों महत्वाकांक्षी नेताओं का एक साथ होना जरा मुश्किल है। फिर भी राजनीति में लचीलेपन का अपना महत्व है और कांग्रेसी ऐसे तालमेल बिठाने के पुराने खिलाड़ी हैं। यानी मौजूदा घटनाक्रम में सारे पासे शिबू सोरेन के पक्ष में जा रहे हैं।

झारखंड में मामला सिर्फ राजनैतिक समीकरणों का नहीं है, उन वादों और घोषणाओं का भी है, जिनके आधार पर यह राज्य बना था। झारखंड पिछले दिनों तमाम गलत वजहों से चर्चा में रहा है। उसके साथ बने छोटे राज्यों उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में राजनीति अपेक्षाकृत स्थिर रही है और विकास भी ठीक ठाक हुआ है। उसके उलट झारखंड को ऐसे उदाहरण की तरह देखा जा रहा है, जहां छोटा राज्य होना विकास की गारंटी नहीं है। अकूत प्राकृतिक संपदा वाला यह राज्य गरीबी, शोषण, राजनैतिक अवसरवाद, भ्रष्टाचार और नक्सलवाद  के लिए ही चर्चा में रहा है। इस बार के चुनाव हालात को बेहतर बनाएं, इसके लिए राजनेताओं को ज्यादा जिम्मेदारी और ईमानदारी दिखानी होगी, क्योंकि सरकार अब भी जोड़-तोड़ की ही होगी।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें