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काफी इडियोटिक हैं 'थ्री इडियट्स' के गाने: स्वानंद किरकिरे

आजकल शायद आप कुछ गाने सुनकर बेहतर महसूस कर रहे होंगे, खास तौर पर 'ऑल इज वेल...' को सुनकर तो ऐसा ही लग रहा होगा आपको। 'थ्री इडियट्स' के गाने सभी जगह छाएं हैं चाहे वो 'ज़ूबी-डूबी..' हो या फिर 'गिव मी...

काफी इडियोटिक हैं 'थ्री इडियट्स' के गाने: स्वानंद किरकिरे
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Dec 2009 11:39 AM
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आजकल शायद आप कुछ गाने सुनकर बेहतर महसूस कर रहे होंगे, खास तौर पर 'ऑल इज वेल...' को सुनकर तो ऐसा ही लग रहा होगा आपको। 'थ्री इडियट्स' के गाने सभी जगह छाएं हैं चाहे वो 'ज़ूबी-डूबी..' हो या फिर 'गिव मी सम सनशाइन..'। इन सुपरहिट गानों को लिखा है गीतकार स्वानंद किरकिरे ने। वैसे स्वानंद गायक, एक्टर, डायलॉग राइटर, एसोसिएट डायेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर और थियेटर आर्टिस्ट भी हैं। फिल्म 'हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी..' के गाने 'बावरा मन' से बतौर गायक और गीतकार के रूप में अपना सफर शुरू करने वाले स्वानंद पा, लगे रहो मुन्नाभाई, खोया-खोया चांद, वेल्कम टू सज्जनपुर जैसी फिल्मों के गाने भी लिख चुके हैं। उन्हें लगे रहो मुन्नाभाई के 'बंदे में था दम..' के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। फिलहाल वो 'थ्री इडियट्स' और 'पा' के गानों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। आईए स्वानंद से जानते हैं अपने गानों को मिले रिसपॉन्स को लेकर वो बेहतर महसूस कर रहे हैं या नहीं।


जब पूरा देश आपके गाने गा और सुन रहा है, सुना है आप क्लासिकल म्यूजिक, बर्मन और गुलज़ार साहब के गाने सुन रहे हैं?
मैंने गाने लिख दिए, मेरा काम खत्म। जब बना रहा था तब मैंने काफी सुना। अब देश के हवाले है और जनता सुन रही है। फिलहाल मैं कुछ नया कर रहा हूं, जिसे आने वाले वक्त में देश सुनेगा। अच्छा लग रहा है कि मेरे गानों को देश भर में सराहा जा रहा है।

40 से पार के आमिर को एक ‘स्टूडेंट’ के रोल में और एक ‘इडियट’ के किरदार में आपके गानों ने कितना यंग और इडियोटिक दिखाया?
मैंने आमिर के लिए गाने नहीं लिखे, मैंने एक यंग किरदार के लिए गाने लिखे हैं। मैं किसी एक्टर या स्टार के लिए गाने नहीं लिखता, मैं डायरेक्टर और स्क्रिप्ट के लिए गाने लिखता हूं। जहां तक स्क्रिप्ट की बात है तो मैंने किरदारों को फिल्म की थीम के मुताबिक काफी इडियोटिक दिखाया है। आप ध्यान से गाने सुनेंगे तो पता चलेगा।

एक इंटरव्यू में आपने मजाकिया अंदाज़ में कहा था कि आपने ‘थ्री इडियट्स’ के गानों के लिए इतने कागज इस्तेमाल किए कि उन्हें तोलें तो वो आपके वेट से भी ज्यादा होंगे। ऐसा क्या मिस्टर परफेक्शनिस्ट के रोल की वजह से हुआ?
नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मैं तो हमेशा ऐसे ही काम करता हूं। हमें तो पहले पता भी नहीं था कि आमिर इस फिल्म में काम करेंगे। मैंने राजकुमार कुमार हिरानी के लिए गाने लिखे हैं। आमिर तो एक बार भी सीटिंग के दौरान नहीं आए।


‘थ्री इडियट्स’ के गाने

ऑल इज़ वेल… लगे रहो मुन्नाभाई के ‘टेंशन नहीं लेने का मामू’ और इस गाने में ‘चाचू ऑल इज़ वेज..’ यहां चाचू और मामू में क्या फर्क है? 
मैंने इंटरनेट पर एक कार्टून देखा था, जिसमें मुर्गी का एक बच्चा हाफ-फ्राई देख रहा है और पूछ रहा है- ‘ब्रदर इज़ दैट यू’ (भाई क्या ये तुम हो)। तो यही इस गाने की फिलॉसफी भी रही कि ‘मुर्गी क्या जाने अंडे का क्या होगा, लाइफ़ मिलेगी या तवे पे फ्राई होगा...’, ये बात एक स्टूडेंट के भविष्य के लिए भी फिट बैठती है कि ‘कोई ना जाने अपना फ्यूचर क्या होगा...होंठ घुमाओ, सीटी बजाओ..सीटी बजाके बोल भइया...ऑल इज़ वेल..’। जहां तक लगे रहो मुन्नाभाई की बात है तो उसका ‘मामू’ थ्री इडियट्स के ‘चाचू’ से काफी बड़ा है। उससे तुलना नहीं की जा सकती।

गिव मी सम सनशाइन… सुना है ये गाना आपने स्क्रिप्ट से पहले ही लिख दिया था। आप और शांतुनु दा स्क्रिप्ट से पहले ही गाने शुरू कर देते हैं जबकि ये बॉलीवुड का पॉपुलर ट्रेंड नहीं है?
जी हां.. बॉलीवुड में ये पॉपुलर ट्रेंड नहीं है, अक्सर गाने फिल्म की स्क्रिप्ट के बाद ही लिखे जाते हैं। हम उल्टा करते हैं इसलिए तो इडियट कहलाते हैं।

आपके गानों में ज्यादातर काव्यात्मक्ता और काफी भाषाई सौंदर्य देखने को मिलता है। जबकि इडियट में आपने हिंग्लिश में भी गाने लिखे?
दरअसल गाने फिल्म की स्क्रिप्ट के हिसाब से लिखे जाते हैं। जैसे ‘खोया-खोया चांद’ 1950 के आस-पास की फिल्म थी तो अल्फ़ाज़ भी वैसे ही ज़हीन थे। ‘परिणिता’ में बंगाल से जुड़ी कहानी थी तो गानों में भी काव्यात्मक्ता वैसी ही थी। ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ टपोरी और भाईगीरी पर थी, तो गाने भी वैसे ही टपोरीनुमा थे। एक एक्टर जैसे फिल्म की स्क्रिप्ट की तरह मेकअप बदलता है तो वैसे ही एक गीतकार भी फिल्म की थीम की तरह ही अपना रूप बदलता है। ‘थ्री-इडियट्स’ जींस और टी-शर्ट पहनने वाले आज के स्टूडेंट्स की कहानी है तो लफ़्ज़ भी जींस-टी शर्ट वाले होने चाहिए। वैसे ‘गिव मी..’ के लिए शांतुनु दा ने इंग्लिश पार्ट लिखा है।

ज़ूबी-डूबी…. के पीछे का क्या आइडिया है?
गाने में एक लाइन आती है- ‘जैसा फिल्मों में होता है.. हो रहा है हू-ब-हू..’, ये गाना बॉलीवुड के सभी रोमांटिक गानों को हमारी श्रद्धांजलि है। पूरी फिल्म इंजीनियरिंग कॉलेज के आस-पास घूमती है तो ये फिल्म में इकलौता गाना है, जो रोमांटिक है और इसमें श्रेया घोषाल ने भी आवाज दी। फिल्म के बाकी सभी गानों में सिर्फ मेल वॉयस ही है। ‘ज़ूबी-डूबी’ एक नॉन सेंस शब्द है जिसका कोई मतलब नहीं है।

जाने नहीं देंगे... शांतुनु दा के मुताबिक कंपोज़िंग के दौरान इस गाने में सबसे ज्यादा दिक्कतें आईं?
हां..लेकिन मुझे लिखने में दिक्कत नहीं हुई। सोनू निगम ने रिकॉर्डिंग के दौरान थोड़ी ज्यादा मेहनत की है। जब सोनू ने इस गाने को गाया तो वो काफी इमोशनल हो गए, उन्होंने रिकॉर्डिंग के बाद 3-4 घंटे तक रफी साहब के दर्द भरे गाने गाए।

इस गाने में दो बार ‘साला’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, आजकल बॉलीवुड को इस गाली से बहुत लगाव हो गया है?
‘थ्री इडियट्स’ आज के लड़कों की कहानी है जो अपनी हर बात में साला शब्द इस्तमाल करते हैं। तो मैंने कोई ट्रेंड फॉलो नहीं किया, ये तो स्क्रिप्ट के हिसाब से लिखा गया है।

बहती हवा सा... इस गाने को सुनकर ऐसा लगता है कि फिल्म में कोई किरदार या तो मर गया है या गुमशुदा है। क्या वाकई ऐसा है?
जी हां.. कुछ ऐसा ही है। इसलिए गाने की थीम भी ऐसी है- ‘कहां गया उसे ढूंढो...’

इन पांचों गानों में से आपका फेवरिट गाना कौन सा है?
ये तय करना तो बहुत मुश्किल है, ये तो आपको ही तय करना है। वैसे मुझे 'ऑल इज वेल..' ज्यादा पसंद है।


‘पा’ के गीत

इडियट्स के गाने जहां मस्ती से भरे और युवाओं के लिए थे, वहीं ‘पा’ के गाने उतने ही गंभीर और पोएटिक थे। कैसा रिसपॉन्स मिला आपको?
रिसपॉन्स काफी अच्छा रहा। मुझे अभी तक हर काम के लिए तारीफ मिली है। ‘मूड़ी-मूड़ी...’ और  ‘गुमसुम-गुम…’ को काफी पसंद किया जा रहा है।

अमिताभ बच्चन-इलियाराजा जैसे दिग्गजों और डायरेक्टर बाल्की के साथ कैसी रही आपकी जोड़ी?
अमिताभ जी के साथ काम करके काफी मजा आया। वैसे मैं डायरेक्टर और म्यूजिक डायरेक्टर के साथ जोड़ी बनाता हूं, स्टार के साथ नहीं। इलियाजा राजा जैसे सीनियर म्यूजिक डायरेक्टर और बाल्की के साथ काम करना काफी अलग अनुभव था। वो एक अलग ही दुनिया थी। चेन्नई में उनके स्टूडियो पर रिकॉर्डिंग की। उनका स्टूडियो एक मंदिर की तरह है, काफी मजेदार रहा ये अनुभव।

‘मेर पा…’ गाना अमिताभ जी ने गाया है, सुना है पहले आपने उन्हें ये गाना सुनाया। क्या रिएक्शन थी उनकी तब?
अमिताभ जी मुझे ‘एकलव्य’ के वक्त से जानते हैं। जब उन्होंने ‘मेरे पा..’ की रिकॉर्डिंग की तो वो काफी खुश थे। मैंने खुद रिकॉर्डिंग से पहले उन्हें गाना सुनाया और तब जैसा मैंने चाहा था, मुझे वैसा ही रिसपॉन्स मिला।

मैंने एक जगह पढ़ा कि रिकॉर्डिंग के दौरान इलियाराजा ने आपको कहा था कि जब तक आप शांत नहीं बैठोगे तब तक मैं रिकॉर्डिंग नहीं शुरू करूंगा। क्या आप उनके साथ इतने रोमांचित थे?
इलियाराजा दादा जी के जैसे हैं। उनके साथ काम करना बहुत बड़ी बात थी। वैसे मैं हमेशा एक जगह पर शांत नहीं बैठ सकता, मुझे कुछ करते रहना अच्छा लगता है। तो तभी उन्होंने मुझसे कहा कि जब तक शांत नहीं बैठोगे तब तक रिकॉर्डिंग शुरू नहीं होगी।


अभी तक आपका कोई ऐसा गाना नहीं आया है, जिसे डांस नंबर या पार्टी सॉन्ग कहें। अक्सर हम आपके गानों को सुनकर मस्ती में सिर हिलाते हैं, पैरों से थिरकते नहीं?
ऐसे नहीं कि मैं ऐसे गाने नहीं लिख सकता। दरअसल मुझे ऐसी स्क्रिप्ट नहीं मिली है। बाकी लोग ऐसे गाने लिख रहे हैं, तो वहीं मैं भी कुछ अलग करता हूं। तो हर चीज़ का मज़ा लीजिए। वैसे ‘थ्री इडियट्स’ का ‘ऑल इज वेल..’ भी पार्टियों में काफी ज्यादा चल रहा है और इससे पहले ‘लागा चुनरी में दाग’ का ‘कच्ची कलियां..’ भी शादियों में खूब चला।

शांतुनु दा और आपकी जोड़ी हिट रही है। कैसे बनी बंगाली बाबू के साथ आपकी जोड़ी?
‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी..’ में पहली बार हम दोनों ने साथ काम किया। इसके बाद परिणीता, लगे रहो मुन्नाभाई, खोया-खोया चांद, लागा चुनरी में दाग, वेल्कम टू सज्जनपुर और अब थ्री इडियट्स में हमने साथ काम किया। हम दोनों के बीच अच्छा ताल-मेल है और काम के वक्त हम सिर्फ काम से ही मतलब रखते हैं। शांतुनु दा और मुझमें काफी-कुछ एक सा है।


नए प्रोजेक्ट

आपकी आने वाली फिल्मों के बारे में बताइए कुछ?
अभी सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘दिल दर बदर’ के लिए गाने लिख रहा हूं। डायरेक्टर ब्रह्मानंद सिंह की फिल्म ‘सुरमई शाम’ के गाने, डायलॉग और स्क्रीनप्ले लिखा है। ( इस फिल्म में नसरूद्दीन शाह और माही गिल काम कर रहे हैं और ये फिल्म अलज़ाइमर रोग पर आधारित है)
इसके अलावा श्याम बेनेगल की फिल्म ‘वेल डन अब्बा’ में मेरे दो गाने हैं। (पहले इस फिल्म का नाम ‘अब्बा का कौन’ रखा गया था।) यशराज बैनर की प्रदीप सरकार निर्देशित फिल्म के गाने और विधु विनोद चोपड़ा के लिए फिल्म की स्क्रिप्ट लिख रहा हूं।

मैंने डेढ साल पहले थियेटर में विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘तालिस्मान’ का टीज़र देखा था। आपने इसके गाने लिखे हैं, क्या हुआ इस फिल्म का?
‘तालिस्मान’ मंदी के कारण अटक गई है। इस फिल्म में फंड की दिक्कतें आ रही हैं। अक्सर बॉलीवुड में ऐसा होता रहता है। इसलिए मुझे अपने नए प्रोजेक्ट के बारे में तब तक बात करना अच्छा नहीं लगता जब तक कुछ हो ना जाए।

टीवी सीरियल ‘उतरन’ का टाइटल सॉन्ग आपने गाया है, वीज़ा कार्ड और ब्रिटानिया के विज्ञापन में आप दिखाई दिए। ‘चांदनी चौक टू चाइन टाउन’ में भी आपका जिंगल था, तो क्या अभी भी ऐसा काम करने की जरूरत पड़ती है?
मैं साल में ज्यादा से ज्यादा दो फिल्में ही करता हूं तो इतना वक्त तो रहता है कि ऐसे काम के लिए समय निकाल सकूं।

‘बावरा मन देखने चला’ आपका पहला गाना है, जिसे आपने लिखा भी है और गाया भी। कैसे पूरा हुआ आपका ये सपना?
मैं सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी..’ में बतौर एसोसिएट डायरेक्टर काम कर रहा था। शूटिंग के दौरान कुछ लोगों ने मुझसे अपनी कविता सुनाने को कहा जो फिल्म के एक्टर केके मेनन को काफी पसंद आई। केके ने सुधीर से इस कविता को गाने के रूप में अपनी फिल्म में शामिल करने की गुजारिश की। तो इस तरह मुझे ये ब्रेक मिला।

अमूमन हिंदी और उर्दू के शायर ही बॉलीवुड में गीतकार बनते आए हैं। मराठी गीतकार होने के बावजूद भी आज आप फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने गीतकार बन चुके हैं? 
हिंदी फिल्म के गीतों में मेरी रूचि पहले से ही थी। मैं इंदौर में पला-बढ़ा और वहीं से काफी कुछ सीखा। वैसे मुझसे पहले भी मराठी गीतकार वसंत दवे ‘उत्सव’ फिल्म के गाने लिख चुके हैं। मैं ऐसा करने वाला कोई पहला शख्स नहीं हूं।

आप मजरूह सुल्तानपुरी और शैलेंद्र के फैन रह चुके हैं। बतौर गीतकार इन दोनों ने आप पर कैसी छाप छोड़ी?
इन दोनों से मुझे काफी प्रेरणा मिली। अगर इन दोनों के गीत ना होते तो शायद गीतकार के तौर पर मेरा भी वजूद नहीं होता। मेरा अपना कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है, मैंने मजरूह और शैलेंद्र से काफी कुछ सीखा है।

गाने लिखते वक्त डायरेक्टर-प्रोड्यूसर कितना परेशान करते हैं, क्या कभी लिखने की आजादी पर बंदिशें महसूस होती है?
फिल्म इंडस्ट्री में अक्सर जब कोई गीतकार गाना लिखता है तो उससे पूछा जाता है कि क्या ये गाना हिट हो पाएगा या फिर ये गाना मोबाइल रिंगटोन बन पाएगा। लेकिन मैंने अभी तक जिन लोगों के साथ काम किया है उन्होंने मुझ पर कोई ऐसा दबाव नहीं डाला। यही वजह है कि मैं अच्छा काम कर पा रहा हूं।

सुना है आप ‘बंदिनी’ फिल्म के गाने ‘मेरे साजन है उस पार..’ को गाने की ख्वाहिश रखते हैं। और ऐसे कौन-कौन से गाने हैं जिन्हें आप अपनी आवाज देना चाहते हैं?
मैं एसडी बर्मन के सभी गाने गाना चाहता हूं लेकिन मैं अभी इतना काबिल नहीं हूं कि ऐसी हिमाकत कर सकूं।

 

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