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माइक्रोचिप की नजर

वैज्ञानिकों ने उन आंखों को भी रोशनी देने का तरीका खोज निकाला है जिन्हें कुदरत ने बस अंधेरा ही दिया था। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने आंखों के रैटिना में चिप लगाकर जो कामयाबी हासिल की है उसने दुनिया के...

माइक्रोचिप की नजर
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 21 Dec 2009 11:17 PM
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वैज्ञानिकों ने उन आंखों को भी रोशनी देने का तरीका खोज निकाला है जिन्हें कुदरत ने बस अंधेरा ही दिया था। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने आंखों के रैटिना में चिप लगाकर जो कामयाबी हासिल की है उसने दुनिया के करोड़ों नेत्रहीनों उम्मीद की किरण दे दी है। अभी तक जो आंखों की विकलांगता के कारण खुद को पूरे समाज से अलग थलग पाते थे अब वे बाकी लोगों की तरह से सामान्य जिंदगी जी सकेंगे। विज्ञान जब किसी असाध्य रोग का इलाज ढूंढता है या फिर वैज्ञानिकों की कोई खोज जब निर्बलों का बल बनती है तो हर बार विज्ञान की संभावनाओं में एक विश्वास बनता है।

हम भले ही इसे उम्मीद की किरण कहें लेकिन यह उम्मीद कतई नहीं है कि ऐसे अत्याधुनिक इलाज अगले कुछ साल तक सभी जरूरतमंद लोगों तक पंहुच पाएंगे। नई तकनीक की वजह से यह इलाज मंहगा तो खैर होगा ही, लेकिन हमारे पास वे व्यवस्थाएं भी नहीं हैं जो महंगे और अत्याधुनिक इलाज को जरूरतमंद लोगों तक पंहुचा सकें। मुमकिन यह है कि यह तकनीक आने वाले कुछ समय में सस्ती भी हो जाए और आसानी से उपलब्ध भी हो लेकिन फिर भी यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि तब भी यह देश के हर जरूरतमंद तक पंहुच सकेगी।

अगर हमारे पास हर जरूरतमंद तक इलाज पंहुचाने की व्यवस्था होती तो शायद हमारे देश में दुनिया के सबसे ज्यादा नेत्रहीन न होते। हमारे देश में बहुत से लोग सिर्फ इसलिए नेत्रहीन हैं क्योंकि बचपन में उन्हें ठीक से पोषण नहीं मिल सका। ऐसे नेत्रहीनों की संख्यां भी काफी ज्यादा है जिन्होंने अपनी आंखें किसी दुर्घटना में गवां दीं और ठीक से इलाज न हो पाने के कारण उनकी आंखों में रोशनी लौट नहीं सकी।

फिर नेत्रहीनों की इस संख्या में हर साल वे लोग भी जुड़ जाते हैं जो मोतियाबिंद का इलाज नहीं करवा सके। इन सब की आंखें बिना किसी अत्याधुनिक माइक्रोचिप के भी ठीक हो सकती थीं लेकिन पोषण और समुचित इलाज के अभाव ने उन्हें ताउम्र का अंधेरा दे दिया। ऐसे लोग कम हैं जिनकी नेत्रहीनता तंत्रिकातंत्र से जुड़ी है इस दुनिया को देखने के लिए माइक्रोचिप की जरूरत है। मुमकिन है कि जल्द ही माइक्रोचिप वाला यह इलाज भारत समेत पूरी दुनिया में उपलब्ध हो जाए। लेकिन हम उनके लिए क्या कर रहे हैं जिनके अंध निवारण की व्यवस्थाएं हमारे पास पहले से ही मौजूद हैं।

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