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शरीयत के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप गवारा नहीं

ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने केन्द्र सरकार और न्यायपालिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मुद्दे दो हैं-अदालतों से पर्सनल लॉ से सम्बंधित मामलों में कथित तौर पर शरीयत के खिलाफ दिए जा रहे फैसले...

शरीयत के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप गवारा नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 20 Dec 2009 08:16 PM
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ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने केन्द्र सरकार और न्यायपालिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मुद्दे दो हैं-अदालतों से पर्सनल लॉ से सम्बंधित मामलों में कथित तौर पर शरीयत के खिलाफ दिए जा रहे फैसले और केन्द्र सरकार द्वारा लाया रहा साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक। लखनऊ के नदवा कॉलेज में रविवार को हुई बोर्ड कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि हाल के महीनों में सरकारी अदालतों में पर्सनल लॉ से सम्बंधित कई फैसले हुए जो शरीयत के प्रावधानों का खुला उल्लंघन करते हैं।

प्रस्ताव के मुताबिक अदालतों के ऐसे फैसले शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 में दी गई उस ज़मानत की भी मुखालफत कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि अगर दोनों पक्ष मुस्लिम हैं तो फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत होगा।

बोर्ड ने अपने तर्क के पक्ष में बहुचर्चित शाहबानो मामले का हवाला देते हुए कहा है कि 1985 के शाहबनो केस के बाद  मुस्लिम वीमेंस डाइवर्सिस एक्ट 1985 में  यह बात साफ कर दी गई थी कि तलाक देने के बाद पूर्व पति को सिर्फ इद्दत की अवधि यानि 3 महीने 10 दिन तक ही अपनी छोड़ी गई पत्नी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी है और अगर बच्चों हैं तो जवान होने तक उनकी परवरिश की जिम्मेदारी भी पूर्व पति की ही है अगर वह माँ के पास रह रहे हैं तो।

मगर वह औरत जिससे मर्द का ताल्लुक खत्म हो गया उसे छोड़ी गई औरत की पूरी जिन्दगी तक गुजारा भत्ता दिलवाया जाना पति पर जुर्म है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्रावधान है कि इद्दत की अवधि के बाद उक्त तलाकशुदा औरत के भरण पोषण की जिम्मेदारी उसके मायके वालों पर आती है और अगर मायका सक्षम नहीं है तो वह वक्फ बोर्ड से गुजारे की मदद पा सकती है।

बैठक के बाद बोर्ड के महासचिव मौलाना निजामुद्दीन ने कहा कि इसी दिसम्बर महीने के पहले हफ्ते में राजस्थान के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक मुस्लिम महिला को तलाक के बाद उसके पूर्व पति को जीवनर्पयत गुजारा भत्ता देने के आदेश दिया है। इसे पर्सनल लॉ बोर्ड शरीयत में दखलंदाजी मानता है।

उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा तैयार किए गए साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक में पुलिस-प्रशासन को सीधे जिम्मेदार न ठहराए जाने पर भी बोर्ड को सख्त एतराज है। साम्प्रदायिक हिंसा क्या है विधेयक में यह स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार होगी फिर यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विधि मंत्री से बोर्ड का प्रतिनिधि मण्डल मुलाकात करेगा।

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