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देखा, कितना कुछ बदला दस साल में

इंटरनेट की खिड़की से देश में ऑनलाइन यूजर्स बेस चार करोड़ के करीब है। कस्बों से लेकर छोटे शहरों तक में साइबर कैफे की भरमार हो रही है। पिछले दस सालों में इंटरनेट ने भी तेजी से लोगों के जीवन में दखल दी...

देखा, कितना कुछ बदला दस साल में
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 19 Dec 2009 11:50 AM
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इंटरनेट की खिड़की से

देश में ऑनलाइन यूजर्स बेस चार करोड़ के करीब है। कस्बों से लेकर छोटे शहरों तक में साइबर कैफे की भरमार हो रही है। पिछले दस सालों में इंटरनेट ने भी तेजी से लोगों के जीवन में दखल दी है। गूगल इंडिया के आंकड़े कहते हैं कि देश में ऑनलाइन यूजर्स बेस चार करोड़ के करीब है। यह पिछले दस सालों की उपलब्धि कही जा सकती है कि कस्बों से लेकर छोटे शहरों तक में साइबर कैफे की भरमार हो रही है। नैतिकता के झंडाबरदार भले ही इससे खुलापन बढ़ने की चेतावनी दें, इस बात से वे भी इनकार नहीं कर सकते कि इससे लोगों की जानकारी का स्तर भी बढ़ रहा है। तकनीक और तरक्की, हमारे-आपके कहने-चाहने से रुकने वाली है भी नहीं। इंटरनेट ग्रामीण इलाकों को कृषि और मौसम से संबंधित नई जानकारियां उपलब्ध करा रहा है। इसके अतिरिक्त सामाजिक जागरुकता भी बढ़ा रहा है। इलाहाबाद में बाल विवाह के खिलाफ काम करने वाली एक सामाजिक संस्था संगिनी की संस्थापक अनुष्का शर्मा कहती हैं, हम कई ऐसी जगहों पर जाते हैं, जहां लोगों के पास टीवी तक नहीं है। वहां इंटरनेट के माध्यम से हम उन्हें ऐसे लोगों से मिलवाते हैं जो बाल विवाह के नुकसान लोगों को समझा सकें।

विदेशी खाना, देसी स्वाद
ऋषिकेश जैसे शहर में तवे पर, पिज्जा बनाने वाली एक महिला दामिनी पंत को मैं जानती हूं। इसी तरह बनारस में मैदे की पोटिलों में सब्जियां भरकर मोमो बनाने वाली कांति सिंह को भी मैं अच्छी तरह पहचानती हूं। -फूड एक्सपर्ट मानिक मेहता पहनावे में, जीवन शैली में जिस तरह पिछले दस सालों में बदलाव हुआ है, वैसा ही बदलाव खान-पान में भी हुआ है। बेशक, बड़े शहरो में पैकेज्ड फूड का चलन बढ़ रहा हो लेकिन छोटे शहर और कस्बे इस बदलाव से अछूते हैं। हां, लोगों ने अपने खान-पान में कुछ छोटे-मोटे बदलाव जरूर कर लिए हैं। हफ्ते-दस दिनों में एक बार बाहर खाना, या अपने खान-पान में नूडल, पिज्जा और चिप्स को शामिल कर लेना। कोल्ड ड्रिंक्स की पहुंच भी लगभग हर कस्बे, हर शहर तक हो गई है। फूड एक्सपर्ट मानिक मेहता कहती हैं, ज्यादातर छोटे शहरों में विदेशी फूड ब्रांड्स पहुंच गए हैं। जहां नहीं पहुंचे हैं, वहां भी लोगों ने टीवी, इंटरनेट और समाचार पत्रों से इन फूड आइटम्स की जानकारी हासिल कर ली है। ऋषिकेश जैसे शहर में तवे पर, पिज्जा बनाने वाली एक महिला दामिनी पंत को मैं जानती हूं। इसी तरह बनारस में मैदे की पोटिलों में सब्जियां भरकर मोमो बनाने वाली कांति सिंह को भी मैं अच्छी तरह पहचानती हूं। नूडल को सस्ते में घर-घर तक पहुंचाने के लिए नेस्ले को धन्यवाद दिया जाना चाहिए जिसने मैगी को हर वर्ग के लोगों की पसंद बनाया। इसी नूडल में सब्जियां मिलाकर, इसे भारतीय जायका देने वाले भी अब खूब मिल जाते हैं। कुल मिलाकर, पिछले दस सालों में खान-पान ने तेजी से अपना स्वाद बदला है और लोगो ने व्यंजनों के अपने मेन्यू में इन्हें शामिल किया है।

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