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बेटे से मांगी आर्थिक मद्द, नसीब हुई मौत

एक बुजुर्ग अपने बेटे से प्रतिमाह सात सौ रुपये पाने की आस में ही चल बसे। 74 साल की उम्र में अस्थमा और हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी से पीड़ित बुजुर्ग दो साल तक अदालत में बेटे से गुजाराभत्ता पाने के लिए...

बेटे से मांगी आर्थिक मद्द, नसीब हुई मौत
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 18 Dec 2009 09:04 PM
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एक बुजुर्ग अपने बेटे से प्रतिमाह सात सौ रुपये पाने की आस में ही चल बसे। 74 साल की उम्र में अस्थमा और हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी से पीड़ित बुजुर्ग दो साल तक अदालत में बेटे से गुजाराभत्ता पाने के लिए कानूनी जंग लड़ते रहे। अदालत ने बुजुर्ग की जरुरतों को समझा और बेटे को पिता के इलाज व खाने के खर्चे के रूप में सात सौ रुपये देने के निर्देश दिए। मगर बेटे ने कानून की एक न सुनी। यहां तक की अदालत ने बेटे की संपति कुर्की के आदेश भी जारी किए। जिससे डरकर उसने पिता को एक बार पांच सौ रुपये दे दिए। उसके बाद फिर चुप्पी साध ली। बुजुर्ग बार-बार अदालत में अपनी लाचारी का रोना रोते रहे। लेकिन बेटे के कान पर जू नहीं रेंगी। बेटे से निराश और अदालत से आस लिए बुजुर्ग की सांसों ने आखिकार कुछ दिन पूर्व उनका साथ छोड़ दिया।


कड़कड़डूमा स्थित मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट शुचि शाहमीरी की अदालत में आज भी बुजुर्ग के खर्च का मुकदमा लंबित है और उस पर 18 जनवरी को अगली सुनवाई होनी है। पेश मामले के अनुसार भजनपुरा निवासी सोमनाथ वाधवा ने अपने अधिवक्ता एन के सिंह भदौरिया और मनीष भदौरिया के मार्फत अदालत में 27 जुलाई 07 को गुजाराभत्ता याचिका लगाई थी। उनका कहना था कि उन्होंने चार बेटों को पाल-पोसकर बड़ा किया। अच्छी शिक्षा और कारोबार के गुर सिखाए, लेकिन अब वे बुढ़ापे में औलाद के सामने पाई-पाई को मोहताज हो गए। मुश्किल यह है कि एक बेटा असमय मौत का शिकार बन गया व विधवा पत्नी और दो अबोध बच्चाों को पीछे छोड़ गया। दो अन्य बेटों के आर्थिक संकट में फंसने के चलते उन्हें बड़े बेटे अनिल कुमार से ही गुजारा रकम पाने की उम्मीद थी। अनिल उनकी सहायता करने को तैयार नहीं था। अदालत ने इस मामले में 20 नवंबर 07 को बेटे को सात सौ रुपये गुजाराभत्ता देने के निर्देश दिए थे। लेकिन बेटे ने अदालत की बात बुजुर्ग की आखिरी सांस तक नहीं मानी।

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