लीडा बने नोएडा तो जमीन दें किसान!
लखनऊ और कानपुर के बीच औद्योगिक कॉरिडोर बनाने की राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत गठित लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) ने लखनऊ से लेकर जाजमऊ (उन्नाव) तक के करीब सौ गाँवों में जमीन के...
लखनऊ और कानपुर के बीच औद्योगिक कॉरिडोर बनाने की राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत गठित लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) ने लखनऊ से लेकर जाजमऊ (उन्नाव) तक के करीब सौ गाँवों में जमीन के अधिग्रहण का फैसला किया है। लेकिन इसमें कई अड़चनें आ रही हैं।
गाँव वालों के विरोध के कारण अधिग्रहण की कार्रवाई थम गई है। अलबत्ता शासन ने ग्राम समाज की एक हजार एकड़ जमीन लीडा के नाम दर्ज की है। किसान बाजार मूल्य पर भूमि की मुआवजा माँग रहे हैं। उनकी एक माँग नोएडा की तर्ज पर लीडा में लगने वाले कारखानों में नौकरी और कुछ शेयर दिए जाने की भी है।
सरकार ने अधिग्रहण के लिए धारा नौ की कार्रवाई शुरू की तो शुरुआती चार गाँवों के बाद ही किसान भड़क गए। उनका तर्क है कि इन गाँवों की जमीन का मामला भूमि प्रबन्धक समिति ने तय नहीं किया है। प्रशासन सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकता।
इससे संविधान की मंशा को ठेस पहुँचेगी क्योंकि मामला पंयाचती राज व्यवस्था से भी जुड़ा है। अब मामला कोर्ट ही तय करेगा। लीडा को जिन ग्राम समाज की जमीन दी गई उनमें मिरानपुर तीनवत, नटकुर, कुरौनी, बंथरा शामिल हैं। यह ऊसर, बंजर और आबादी की जमीन है। यहाँ की कृषि उपयोग वाली जमीन देने के लिए किसान तैयार नहीं हैं।
किसानों का तर्क है कि वे वे कोई बड़े कृषक नहीं हैं। जीविका चलाने के लिए खेती पर ही भरोसा है। किसान संघर्ष मोर्चा के संयोजक जगनायक सिंह चौहान ने बताया कि किसानों की जमीन अगर ली जाए तो उसका मूल्य नोएडा और गुजरात की तर्ज पर बाजार रेट पर लगाया जाए।
यहाँ लगने वाली फैक्ट्रियों में ग्रामीणों का शेयर हो और उनके परिवार के लोगों को नौकरी दी जाए। श्री चौहान का कहना है कि ग्रामीण इसलिए आशंकित हैं क्योंकि अमौसी, बेहसा, चिल्लावाँ, अलीनगर सुनहरा गाँव के किसानों का हश्र वे देख रहे हैं। इन गाँवों के लोग जमीन देने के बाद मजदूर बनकर रह गए हैं।