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साइकिल पर होकर सवार..

अरे, उसके पास कई गाड़ियां हैं, फिर भी वह साइकिल से चलता है... आजकल ऐसी बात आपको अक्सर सुनने को मिल सकती है। इसकी वजह यह है कि साइकिलें न सिर्फ फिटनेस की दृष्टि से बेहतरीन हैं, बल्कि अब स्टेटस सिंबल...

साइकिल पर होकर सवार..
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Dec 2009 01:56 PM
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अरे, उसके पास कई गाड़ियां हैं, फिर भी वह साइकिल से चलता है... आजकल ऐसी बात आपको अक्सर सुनने को मिल सकती है। इसकी वजह यह है कि साइकिलें न सिर्फ फिटनेस की दृष्टि से बेहतरीन हैं, बल्कि अब स्टेटस सिंबल की प्रतीक भी बन गई हैं। बाजार में सस्ती-महंगी साइकिलों के तमाम मॉडल उपलब्ध हैं।

एक जमाना था जब साइकिलें ही लोगों के लिए आने-जाने का मुख्य साधन थीं। चाहे बात दिल्ली की हो या फिर मुंबई या कोलकाता की, संभ्रांत लोग भी अपनी तमाम जरूरतों के लिए साइकिल का ही इस्तेमाल करते थे। पर जमाना बदला और मोटर गाड़ियों की चकाचौंध में साइकिल का प्रचलन खासकर महानगरों में कम होता गया। यहां पर धनाढय वर्ग साइकिल चलाना अपनी शान के खिलाफ समझने लगा।

पर जब लोगों में स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं बढ़ने लगीं तथा फिट रहने के लिए व्यायाम की आवश्यकता महसूस हुई तो साइकिलें फिर से अपना अस्तित्व कायम करने में सफल हुईं। समय के साथ अब साइकिलों का रूप बदल चुका है। कुछ हजार रुपये तक की मिलने वाली साइकिलें अब काफी महंगी हो चुकी हैं। साइकिल को जर्मनी, स्कॉटलैंड और जापान में काफी प्रमोट किया गया। अब भारत में भी इसकी जरूरत है।

पर्यावरण हितैषी
पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग की जोरों से चर्चा हो रही है। हर कोई कार्बन उत्सर्जन कम करने की बात कर रहा है। ऐसे में ये साइकिलें पर्यावरण की दोस्त साबित हो रही हैं। साइकिलों के प्रयोग से न सिर्फ हम अपने को स्वस्थ रख पाएंगे, बल्कि अपने वातावरण को भी स्वस्थ रख पाएंगे। इसी के मद्देनजर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर भी होटलों से आप साइकिल थोड़े दिन में किराए पर ले पाएंगे। पांडिचेरी जैसी जगहों पर तो काफी समय से साइकिलें किराए पर मिल रही हैं।

पिछले दिनों दिल्ली में अमेरिका के शुइन ब्रांड को भारत में उतारते हुए बीएस साइकिल्स ने भी इस बात की घोषणा की कि वह कई पर्यटन स्थलों के होटलों में अपनी साइकिलें देने जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय व मेट्रो स्टेशनों पर दिल्ली सरकार ने भी साइकिल सर्विस शुरू की है। यहां से आप घंटों के हिसाब से साइकिल हायर कर सकते हैं। इस बारे में बीकॉम (ऑनर्स) द्वितीय वर्ष के छात्र अंकुश जैन का कहना है कि यहां पर साइकिल की व्यवस्था होने से हमें रिक्शा वगैरह पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। दो-चार किलोमीटर की दूरी तय करने में इससे हमें आसानी हो जाती है। इससे भी बड़ी बात यह कि हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सफल हो रहे हैं। अगर हर कोई साइकिल का इस्तेमाल पूरे शहर में हर छोटी मोटी जरूरतों के लिए करे तो इससे हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अहम योगदान देंगे।

व्यायाम के लिए उपयोगी
अगर आप रोजाना पांच से दस किलोमीटर साइकिल चला लें तो फिर व्यायाम की जरूरत नहीं रह जाती। अक्सर लोग जिम में जाकर वजन कम करने के लिए घंटों साइकिलें चलाते हैं, पर इसमें और जिम की साइकिलिंग में यह फर्क होता है कि वहां आप एक छत के नीचे बैठे होते हैं, जबकि साइकिल चलाते हुए आप प्रकृति से सीधे तौर पर रू-ब-रू होते रहते हैं।

इस तरह फिटनेस की चाहत ने साइकिलों को दोबारा लोकप्रिय बना दिया है। पावर हाउस जिम के ट्रेनर विजय का कहना है, ‘साइकिल चलाने से किसी और व्यायाम की जरूरत नहीं रह जाती। आधे घंटे की साइकिलिंग से एक व्यक्ति 200 कैलरी बर्न करने में सफल होता है।’ 

युवाओं के लिए एडवेंचर 
आजकल कंपनियां जो साइकिलें बना रही हैं, उनमें बहुत अच्छी तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। इसीलिए युवाओं के लिए ये साइकिलें एडवेंचर का काम कर रही हैं। आधुनिक साइकिलों से युवा स्टंट, रेसिंग, हिल रेसिंग आदि कर रहे हैं। इन साइकिलों को चलाने में लोगों को बुरा नहीं लगता, बल्कि गर्व का अहसास होता है। उत्तराखंड में ऐसे ईवेंट साइकिल कंपनियां करवाती रहती हैं। रेसिंग के शौकीन अविनाश अवस्थी बताते हैं कि नई साइकिलों से रेसिंग करना काफी दिलचस्प होता है।

स्टाइल और कीमत 
सामान्यत: जिस तरह की साइकिलें आजकल महानगरों में लोग इस्तेमाल कर रहे हैं, उनकी कीमतें 4 हजार से शुरू होती हैं। इन साइकिलों को स्पोर्ट्स साइकिल कहा जाता है। अब तो साइकिलों का कलर कॉम्बीनेशन और उसकी सीट का स्टाइल लाजवाब है। अब तो साइकिलों में टायर के पंचर होने का खतरा भी नहीं रहता। वाकई साइकिल की शान अब किसी गाड़ी से कम नहीं है। पहले की पारंपरिक साइकिलों में न तो शॉकर था, न ही डिश ब्रेक। बस उसमें आगे-पीछे के दो ब्रेक होते थे।
 
एनजीओ स्पेस के फाउंडर प्रेसीडेंट अमिताभ पांडे ने तो साइकिल चलाने का बेहतरीन उदाहरण उन लोगों के लिए पेश किया है, जो यह कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर या बड़े शहरों में साइकिल चलाना मुश्किल है। वह हफ्ते में दो-तीन दिन साइकिल से ही ऑफिस जाते हैं। उनका निवास मयूर विहार में है, जबकि ऑफिस जनकपुरी में है। उनके पास माउंटेन एंड ट्रैक साइकिल है, जिसकी कीमत करीब 30 हजार रुपए है। वह कहते हैं, ‘साइकिलिंग एक बेहतरीन एक्सरसाइज है और  ग्लोबल वार्मिग के मद्देनजर भी जरूरी है। साथ ही अब इसके साथ स्टेटस सिंबल भी जुड़ गया है।’


भारत में साइकिल का आयात 
भारत में साइकिल 1890 में देखी गई, हालांकि साइकिल का आयात भारत में 1905 में शुरू हुआ और यह 50 सालों तक चलता रहा। सरकार ने साइकिलों के आयात पर 1953 में पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और देश में ही साइकिलें बनने लगीं। इसके बावजूद 1961 तक भारत में साइकिलों का आयात होता रहा। 1890 में भारत में आयातित साइकिलों की कीमत लगभग 45 रुपए थी, पर 1917 में पहले विश्वयुद्ध के दौरान इसकी कीमत उछलकर एकदम से बढ़ गई थी। शुरू में भारतीय बाजार में एटलस और हीरो की साइकिलें खूब मशहूर थीं। 


कैसे शुरू हुआ साइकिल का सफर?
सबसे पहली साइकिल जर्मनी के बैरोन वान ड्रेस ने तैयार की। यह पूरी तरह से लकड़ी से तैयार की गई थी। 1817 में बनी इस साइकिल की रिकॉर्ड स्पीड 15 किलोमीटर प्रति घंटा थी। इसमें पैडल नहीं थे। इसे चलाने वाला सवार अपने पैरों से जमीन को दबाकर इसे आगे बढ़ाता था। 1842 में इसमें रबर के टायर लगाए गए। तब इसका नाम हॉबी हॉर्स था। इसके बाद साल्वो, कंगारू आदि नामों से गुजरते हुए यह साइकिल अब के साइकिल रूप में 1875 में आई। तब इसका नाम रोवर था। आज साइकिल विभिन्न आकारों और खूबसूरत मॉडलों में उपलब्ध है।

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