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रेणु के औराही हिंगना में अद्भुत मिलन, गले मिल भावविह्वल हुईं लतिका और पद्मा रेणु

..और अंतत: अमर कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की दोनों पत्नियां पद्मा व लतिका रेणु मिलीं। रेणु के पुत्र अपनी छोटी मां को पटना से गुरुवार को अहले सुबह रेणु के गांव औराही हिंगना लाए तो वहां का माहौल ही बदल...

रेणु के औराही हिंगना में अद्भुत मिलन, गले मिल भावविह्वल हुईं लतिका और पद्मा रेणु
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 13 Dec 2009 08:55 PM
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..और अंतत: अमर कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की दोनों पत्नियां पद्मा व लतिका रेणु मिलीं। रेणु के पुत्र अपनी छोटी मां को पटना से गुरुवार को अहले सुबह रेणु के गांव औराही हिंगना लाए तो वहां का माहौल ही बदल गया।

जानकार बताते हैं कि 1950 में जब रेणु जी काफी बीमार रहे थे और पीएमसीएच में भर्ती थे लतिका तब वहां नर्स थीं। तब सेवा की ऐसी भावना फूटी कि दोनों ने 1951 में शादी रचा ली। शादी के बाद पद्मा रेणु तथा लतिका रेणु दूर-दूर ही रहती थीं मगर समय के आगे किसी की नहीं चलती। जब दोनों मिलीं तो सगी बहनों की तरह गले मिलीं।

अब तो खाना-पीना और रहना-सोना साथ-साथ हो रहा है। लतिका रेणु और पद्मा रेणु के इस मिलन से स्नोहासिक्त उद्गार कुछ यूं फूटते हैं.. जान दे दूंगी मगर जुदा नहीं होऊंगी। 58 वर्षो के पारिवारिक स्नेह को चंद लम्हों में समेटना है। अब हम सौतन नहीं सगी बहनें हैं। जिएंगे साथ-साथ और मरेंगे साथ-साथ।

लतिका जी कहती हैं, अब वे अपनी बची जिन्दगी रेणु जी की यादों के सहारे बच्चों के बीच बिताना चाहती हैं। पद्मा जी एवं अन्य परिजन भी लतिका जी को भरपूर प्यार और सम्मान दे रहे हैं। रेणु के ज्येष्ठ सुपुत्र पद्म पराग राय वेणु ने बताया कि यह उनके परिवार के लिए सुखद क्षण है।

उन्होंने बताया कि उनकी छोटी मां लतिका पटना के राजेन्द्र नगर स्थित अपने आवास में रह रही थीं। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। इसलिए वे हमारे साथ आ गईं।

इस दौरान रेणु के पुत्र एवं पुत्र वधुओं में पद्म पराग राय वेणु, श्रीमती वीणा राय, अपराजित राय अप्पू, श्रीमती रीता राय एवं दक्षिणेश्वर प्रसाद पप्पू, श्रीमती स्मिता राय समेत रेणु की पुत्रियों कविता राय, नवनीता सिन्हा, निवेदिता विश्वास, अन्नपूर्णा विश्वास, वाहिदा ने बताया कि ये क्षण उनके लिए काफी यादागार हैं। उन्हें अब लगता है कि सब कुछ मिल गया।

बंगला एवं संस्कृत में एमए की डिग्री प्राप्त करने वाली लतिका ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह रेणु के गांव रहने जाएंगी। 1950 में पीएमसीएच में रेणु जी की सेवा के दौरान उनकी चाहत इतनी बढ़ी कि उन्होंने अपनी बांह पर एफएनएम यानी फणीश्वरनाथ मुखर्जी गुदवा डाला था।

उनकी इस चाहत पर रेणु जी ने 1951 में उनसे विवाह कर मुहर लगा दी। लतिका जी 1951 में पहली बार औराही आई थीं और तुरंत वापस चली गई थीं। इसके बाद 1969 में जब रेणु जी बमार पड़े तो एक बार फिर वह फारबिसगंज आईं और डॉ. महानंद झा के क्लीनिक से रेणु जी को लेकर पटना चली गईं।

कहते हैं कि लतिका जी 58 वर्षो के बाद पहली बार खुले दिन से पद्मा रेणु से मिलीं। रेणु के कई पात्र व परिजनों की मानें तो यह मिलन रेणु के जीवन की सार्थकता है।

कभी रेणु ने इस क्षण की परिकल्पना की थी मगर उनके जीवन काल में यह साकार नहीं हो सका। इस मिलन से रेणु जी के परिवारीजन, गांव वाले और उनकी औपचारिक कृतियों के पात्र काफी खुश हैं।

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