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पंचचूली पर्वत - पांच चोटियों का समूह

हम तुम्हें हिमालय की पर्वतमालाओं के ऊंचे-ऊंचे पर्वतों के विषय में बता रहे हैं। यह पढ़ कर तुम जान गये होगे कि उन पर्वतमालाओं में कितने सारे ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़ होते हैं। जब तुम किसी मध्यम ऊंचाई...

पंचचूली पर्वत - पांच चोटियों का समूह
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 09 Dec 2009 12:23 PM
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हम तुम्हें हिमालय की पर्वतमालाओं के ऊंचे-ऊंचे पर्वतों के विषय में बता रहे हैं। यह पढ़ कर तुम जान गये होगे कि उन पर्वतमालाओं में कितने सारे ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़ होते हैं। जब तुम किसी मध्यम ऊंचाई वाले पर्वतीय स्थल पर जाते हो तो वहां से दूर तुम्हें ऐसे पहाड़ों की लम्बी श्रृंखला दिखाई देती होगी। सच कितना रोमांचक लगता है इन्हें देखना! यदि किसी दूरबीन से देखते हैं तो यह पहाड़ एकदम स्पष्ट और निकट प्रतीत होते हैं और मन करता है वहां उड़ कर पहुंच जायें। लेकिन हम तुम्हें पहले ही बता चुके हैं कि यह बड़े साहस का काम है। बड़े होकर तुम पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेकर पर्वतरोही बनोगे, तब तुम उन ऊंचे शिखरों तक पहुंच सकोगे। आओ हम तुम्हें ऐसे ही एक और ऊंचे शिखर के बारे में बतायें। उत्तराखंड राज्य के उत्तरी कुमाऊं क्षेत्र में पंचचूली नाम का एक मनमोहक हिमशिखर है। वास्तव में यह शिखर पांच पर्वत चोटियों का समूह है। समुद्रतल से इनकी ऊंचाई 6,312 मीटर से 6,904 मीटर तक है। इन पांचों पीक्स को पंचचूली-1 से पंचचूली-5 तक नाम दिये गये हैं। इनको पंचचूली क्यों कहा गया, इसका पौराणिक आधार है। जानते हो महाभारत युद्घ के उपरांत वर्षों तक पांडवों ने सुचारू रूप से राज्य सम्भाला। जब वह वृद्घ हो गये तो उन्होंने स्वर्गारोहण के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान किया। मान्यता है कि हिमालय में विचरण करते हुए इस पर्वत पर उन्होंने अंतिम बार अपना भोजन बनाया था। इसके पांच उच्चतम बिंदुओं पर पांचों पांडवों ने पांच चूल्ही अर्थात छोटे चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह स्थान पंचचूली कहलाया। पंचचूली के पूर्व में सोना ग्लेशियर और मेओला ग्लेशियर स्थित हैं तथा पश्चिम में उत्तरी बालटी ग्लेशियर एवं उसका पठार है।

 पंचचूली पर्वत की उत्तर-पश्चिम की चोटी पंचचूली-1 कहलाती है। यह चोटी समुद्रतल से 6,355 मीटर ऊंची है। पंचचूली प्रथम पर पहली बार 1972 में पर्वतारोहण हुआ था। यह सफल अन्वेषण हमारे देश के भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने पूरा किया था, जिसका नेतृत्व हुकुमसिंह द्वारा किया गया था। उन्होंने इसके लिए उत्तरी बालटी ग्लेशियर की दिशा का मार्ग अपनाया था। जानते हो एक ही पहाड़ पर कई दिशाओं से चढ़ा जा सकता है, लेकिन पर्वतारोही यह देखते हैं कि कौन सा मार्ग ऐसा है, जो शिखर तक चढ़ने योग्य है। मार्ग में उन्हें कई स्थानों पर कैम्प लगाने पड़ते हैं। पंचचूली पर्वत के पांच शिखरों में पंचचूली-2 सर्वोच्च शिखर है। यह शिखर सागरतल से 6,904 मीटर ऊंचा है। इस शिखर पर भी पहला सफल अभियान भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस ने 1973 में कर दिखाया था। महेन्द्रसिंह के नेतृत्व में यह अभियान बालटी पठार की ओर से शुरू किया गया था। सागरतल से 6,312 मीटर ऊंची पंचचूली-3 पर 2001 में दक्षिणपूर्व रिज की ओर से फतह पाई गई थी, जबकि पंचचूली-4 पर 1995 में न्यूजीलैंड के पर्वतारोहियों ने पहली बार विजय प्राप्त की। इसकी ऊंचाई 6,334 मीटर है। दक्षिणपूर्व में स्थित शिखर पंचचूली-5 है। 6,437 मीटर ऊंचे इस शिखर पर 1992 में इंडोब्रिटिश टीम ने दक्षिण रिज की ओर से पहली बार कदम रखा था। यह तो तुम जानते हो कि इतने ऊंचे पहाड़ों पर अनेक बार बर्फीले तूफान आते हैं। तूफान के साथ कई बार ‘एवलांच’ अर्थात् हिमस्खलन भी आ जाते हैं।

सितम्बर 2003 में भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के 9 सदस्य ऐसे ही एक एवलांच में फंस गये थे। पता है ऐसी विकटताओं के बावजूद भी पहाड़ों पर फतह पाने का जुनून लोगों में कम नहीं होता। पंचचूली पीक पर चढ़ाई के लिए पर्वतारोही पहले पिथौरागढ़ पहुंचते हैं। वहां से मुन्स्यारी और धारचूला होकर सोबला नामक स्थान पर जाना पड़ता है। वैसे हम तुम पंचचूली पीक को कुमाऊं के चौकोड़ी एवं मुन्स्यारी जैसे छोटे से हिल स्टेशनों से देख सकते हैं। वहां से नजर आती पर्वतों की कतार में इसे पहचानने के लिए तुम्हें पर्वतों की जानकारी रखने वाले किसी व्यक्ति से पूछना पड़ेगा। धीरे-धीरे तुम भी इन्हें पहचानना सीख जाओगे।

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