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अफगानिस्तान : जरूरी था गतिरोध को तोड़ना

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गहन समीक्षा के बाद फैसला किया कि अफगानिस्तान में गतिरोध तोड़ने के लिए तीस हजार अतिरिक्त बलों की तैनाती जरूरी है। भले ही इस पर भारी खर्च आ रहा हो, पर इस बारे में उनकी...

अफगानिस्तान : जरूरी था गतिरोध को तोड़ना
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 07 Dec 2009 10:56 PM
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अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गहन समीक्षा के बाद फैसला किया कि अफगानिस्तान में गतिरोध तोड़ने के लिए तीस हजार अतिरिक्त बलों की तैनाती जरूरी है। भले ही इस पर भारी खर्च आ रहा हो, पर इस बारे में उनकी सोच स्पष्ट है कि यह आवश्यकता की लड़ाई है। क्योंकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच का जो पहाड़ी इलाका है, वह अल-कायदा के हिंसक अतिवाद का केंद्र है।

राष्ट्रपति ओबामा ही क्यों इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि अफगानिस्तान में हमारे सामने चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। दशकों की लड़ाई ने उसे तोड़ कर रख दिया है और जो कुछ बचा है, वह गरीबी में डूबा हुआ है। इस दौरान बारूदी सुरंगों और सड़क किनारे चलाए जाने वाले बमों से माध्यम से तालिबान जो गुरिल्ला लड़ाई लड़ रहा है, उससे बेगुनाह अफगानों और अंतरराष्ट्रीय सेना का भारी नुकसान हो रहा है। हालांकि 2010 में जो संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं, उससे बगावत की कमर तोड़ने का सुअवसर उपलब्ध होगा। अतिरिक्त अमेरिकी बल नए साल के आरंभ से पहुंचने लगेगा। इसके अलावा ग्रेट ब्रिटेन का वादा है कि वह साल भर के भीतर 1500 अतिरिक्त बल भेजेगा। उम्मीद करनी चाहिए कि इससे दूसरे देशों को भी सहयोग बढ़ाने की प्रेरणा मिलेगी। उसके बाद अफगान नेशनल आर्मी है, जो इस साल के अंत तक 94,000 से 1,34,000 तक पहुंच जाएगी।

इस रणनीति का केंद्रीय तत्व यह है कि अफगानिस्तान में कामयाबी पाने के लिए विचारधारा से संचालित होने वाले कट्टरपंथी तालिबानियों को अफगानी जनता से अलग-थलग करना होगा। क्योंकि यह जनता उनका समर्थन या तो सुरक्षित रहने के लिए या फिर धन कमाने के लिए करती है। अगर विद्रोह को जीता लिया जाए तो अफगानिस्तान की सरकार को इतना मजबूत बनाया जा सकता है कि कट्टर तालिबानियों को दरकिनार किया जा सकता है। वे लोग अल-कायदा से जुड़े हैं और उन्हें समर्थन व पनाह देते हैं।

इस काम के लिए अतिरिक्त बलों का इस्तेमाल आबादी की हिफाजत करने और कट्टर तालिबानियों को दरकिनार करने में तीन तरह से किया जा सकता है। सबसे पहले हमें जनता का विश्वास जीतने में अफगानिस्तान सरकार की मदद करनी चाहिए। अफगानिस्तान के ज्यादातर लोगों का कहना है कि वे तालिबानियों की वापसी नहीं चाहते। लेकिन अफगानिस्तान के गांवों और घाटियों में सरकार न तो सुरक्षा दे पा रही है, न ही बुनियादी सुविधाएं। वहां तालिबानियों के पलटवार की संभावनाएं इतनी ज्यादा हैं और लोगों के पास उन्हें पीछे करने की कोई तैयारी नहीं है। इस दौर की लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए हमें अफगानियों को यह समझाना होगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनके साथ तब तक रहेगा, जब तक वहां की सरकार उन्हें सुरक्षा, इंसाफ और विकास दे पाने की स्थिति में न आ जाए। इसीलिए वहां सुरक्षा बलों और सरकार की क्षमता बढ़ाना महत्वपूर्ण है।

इस लड़ाई में कामयाबी के लिए प्रांतीय और जिले के गवर्नरों को सही तरह से काम करने देना काफी अहम है। इस काम में तालिबानियों के सैडो गवर्नर और क्रूर परंतु तेज फैसले करने वाली अदालतें बड़ी चुनौती हैं। इसें करजई प्रशासन के न सिर्फ पराजित होने, बल्कि खराब प्रशासन इकाई साबित होने का भी खतरा है।
इसके अलावा जो उग्रवादी अपना लक्ष्य शांतिपूर्ण तरीके से संवैधानिक दायरे में हासिल करना चाहते हैं, उन्हें मुख्यधारा में लाने में हमें अफगानिस्तान सरकार की भी मदद करनी होगी। जो लोग हिंसा का रास्ता छोड़ कर अफगानिस्तान के सामान्य समाज में आना चाहते हैं, उन्हें लाने में अफगानिस्तान सरकार की मदद भी हमें करनी होगी। मुख्यधारा में लोगों को लाए जाने का कोई भी कार्यक्रम अफगानियों के नेतृत्व में होना चाहिए, लेकिन उसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आर्थिक सहायता देनी चाहिए। तीसरी बात यह है कि अफगानिस्तान इस इलाके के अन्य देशों के साथ नए संबंध चाहता है। लंबे समय से यह देश भू-राजनीतिक शतरंज का चौपड़ रहा है, जहां दूसरों की लड़ाई लड़ी जाती रही हैं।

अफगानिस्तान की चुनौतियां जटिल हैं और उसे हल करने में समय लगेगा। वहां महज ज्यादा सैनिकों की ही नहीं, बल्कि पुलिस, जजों, प्रशासकों, विकास सहायकों, मुख्यधारा में लाने वाले कोष और कृषि विशेषज्ञ भी चाहिए। इस समय हम लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी ताकत और संसाधनों को तौलें और यह सोचें कि हम और क्या कर सकते हैं। इस संदर्भ में हम अफगानिस्तान सरकार और समाज की क्षमता बढ़ाने में भारत की तरफ से दिए जा रहे योगदान का तहेदिल से स्वागत करते हैं। हम चाहते हैं कि आने वाले समय में भारत के साथ इस काम को ज्यादा सघनता के साथ किया जा सकेगा।

लेखक ब्रिटेन के विदेशमंत्री हैं

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