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मेडिकल में मौके ही मौके, माइक्रोबायोलॉजी वालों की बल्ले-बल्ले

अगर आज की तारीख में बडे राष्ट्रों को किसी हथियार का सबसे ज्यादा डर है, तो वे हैं जैविक हथियार। ये जैविक हथियार विषैले सूक्ष्म जीवों की जैविक क्रियाओं पर ही आधारित होते है और सूक्ष्म जीवों से संबधित...

मेडिकल में मौके ही मौके, माइक्रोबायोलॉजी वालों की बल्ले-बल्ले
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 07 Dec 2009 10:02 PM
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अगर आज की तारीख में बडे राष्ट्रों को किसी हथियार का सबसे ज्यादा डर है, तो वे हैं जैविक हथियार। ये जैविक हथियार विषैले सूक्ष्म जीवों की जैविक क्रियाओं पर ही आधारित होते है और सूक्ष्म जीवों से संबधित विज्ञान को ही माइक्रोबायोलॉजी कहा जाता है, लेकिन माइक्रोबायोलॉजी के अध्ययन को केवल जैविक हथियारों से जोड़कर ही देखना सही नहीं होगा। स्वास्थ्य, पर्यावरण, सेवाओं और कृषि जैसे कई उपयोगी क्षेत्रों में इसका व्यापक उपयोग होता है। बायोलॉजी और केमिस्ट्री के मेल से बनी यह शाखा आज भी काफी लोकप्रिय है।

माइक्रोबायोलॉजी में काम
इसमें ऐसे सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है, जिन्हें बगैर सूक्ष्मदर्शी के देखना संभव नहीं है। मनुष्यों और पशुओं में होने वाली बीमारियों में इन सूक्ष्म जीवों की भूमिका अहम है और इनके उपचार में भी। सूक्ष्म जीवों की मदद से ही दवाओं का निर्माण किया जाता है। सूक्ष्म जीव कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे कृषि के सूक्ष्मजीव, भोजन में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव, इंडिस्ट्रयल सूक्ष्मजीव आदि।
  
यह सूक्ष्मजीव लाभदायक और हानिकारक दोनों हो सकते हैं। इसके अंतर्गत फिजियोलॉजी ऑफ माइक्रोब्स, माइक्रोब्स की जैविक संरचना, एग्रीकल्चर माइक्रोबायोलॉजी, फूड माइक्रोबायोलॉजी, बायोफर्टिलाइजर में माइक्रोब्स, कीटनाशक, पर्यावरण, मानवीय बीमारियों आदि में सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया जाता है। पर्यावरण में हम जो कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं, उससे उत्पन्न प्रदूषण को ये सूक्ष्मजीव ही नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा दवाओं का निर्माण, कीटनाशकों का निर्माण, विभिन्न खाद्य उत्पादों आदि में सूक्ष्मजीवों की उपयोगिता का अध्ययन भी इसमें किया जाता है।

पाठ्यक्रम
माइक्रोबायोलॉजी से संबधित विभिन्न पाठ्यक्रम विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों में चलाए जा रहे हैं। इनमें बीएससी व बीएससी ऑनर्स माइक्रोबायोलॉजी, बीएससी इंडस्ट्रियल व बीएससी ऑनर्स इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी, बीएससी मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, एमएससी व एमएससी ऑनर्स माइक्रोबायोलॉजी, एमएससी मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी प्रमुख है।

शैक्षिक योग्यता
बीएससी में दाखिले के लिए जहां 12वीं बायोग्रुप के साथ होना जरूरी है, वहीं एमएससी माइक्रोबायोलॉजी के लिए बीएससी माइक्रोबायोलॉजी एवं मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के साथ 55 प्रतिशत अंकों के साथ होनी चाहिए

कहां होता है उपयोग
पर्यावरण को संतुलित करने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। इसके अलावा खाद्य संरक्षण, दवाओं के उद्योग विशेषकर एंटीबायोटिक, फैक्ट्रियों, मेडिकल क्षेत्र, कृषि उत्पादन, पेय पदार्थों के निर्माण, रसायन फैक्ट्रियों, सुगंध बनाने आदि में इसका काफी उपयोग है।

यहां हैं संभावनाएं
इस क्षेत्र में युवा, दवा कंपनियों, लेदर एवं पेपर उद्योग, फूड प्रोसेसिंग, बायोटेक तथा बायोप्रोसेस संबंधी उद्योग, प्रयोगशालाओं एवं अस्पतालों, जनस्वास्थ्य के कामों में लगे गैर सरकारी संगठनों के अलावा अनुसंधान एवं अध्ययन के क्षेत्र में भी जा सकते हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में शिक्षण कार्य भी कर सकते हैं। बायोटेक एवं बायोप्रोसेस संबधी उद्योग के अलावा विभिन्न मेडिकल कॉलेज में भी अच्छे अवसर हैं।

और भी हैं विकल्प
एंथ्रेक्स और सार्स जैसी खतरनाक बीमारियां भी इन सूक्ष्मजीवों यानी माइक्रोआर्गेनिज्म की देन है। इसके तहत विषाणु, जीवाणु, शैवाल, कवक, प्रोटोजोआ आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। इनसे होने वाले हानि और लाभ के अलावा संरचना और वातावरण में इनकी भूमिका पर भी अध्ययन किया जाता है। कृषि एवं औद्योगिक विकास में उनके उपयोग का भी अध्ययन किया जाता है।

माइक्रोबायोलॉजी की दो अन्य शाखाएं हैं, जिनमें इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी एवं मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के तहत औद्योगिक क्षेत्र जैसे लेदर, पेपर, एसिड सभी तरह के कार्बनिक रसायन आदि और मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के तहत पशुओं और मनुष्यों में सूक्ष्मजीवों से होने वाली बीमारियों और उनके निदान का अध्ययन किया जाता है।

संस्थान
-दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
-डा. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा
-चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ
-पुणे विश्वविद्यालय, पुणे
-हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला
-पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़

सर्जन: दर्द करे पर मर्ज मिटाए
सजर्री कई तरह की होती है। जिनमें प्लास्टिक सजर्री, न्यूरो सजर्री, कार्डियो सजर्री, वास्कुलर सजर्री, यूरोलॉजी, एंडोक्राइन सजर्री, कैंसर सजर्री, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, जनरल सजर्री प्रमुख है। भारत में डॉक्टरों और मरीजों की संख्या का अनुपात गड़बड़ है। तकरीबन 1500 से 2000 प्रोफेशनल प्रतिवर्ष पास होते हैं। लेकिन जिस अनुपात में देश की जनसंख्या है, उसे देखते हुए यह नाकाफी है। इस क्षेत्र में मौके तेजी से बढ़ रहे हैं।

सर्जन
सर्जन, शरीर को ऑपरेट करता है। सर्जन बनने के लिए कड़ी मेहनत जरूरी है। सुश्रुत को भारतीय सजर्री के जनक के तौर पर जाना जाता है। हजारों वर्ष पहले सर्जिकल इंस्ट्रुमेंट पत्थर से बना करते थे और सजर्री को बिना बेहोश किए किया जाता था। जो  रोगी के लिए बेहद दुखदायी होता था। आज स्टेनलेस स्टील से बने इंस्ट्रुमेंट मौजूद है और स्टिरलाइजेशन की तमाम तकनीक मौजूद हैं। साथ ही बेहोश करने के भी नई तरीके ईजाद हो गए हैं। ऐसी तकनीक ईजाद कर ली गई है कि जिनसे दर्द कम से कम हो, साथ ही शरीर में चीर-फाड़ भी कम होती है और रिकवरी भी जल्दी होती है। मोटे शब्दों में कहा जाए, तो अब सजर्री पहले की तुलना में दुखदायी नहीं रही है।

कौन से कोर्स
पहला चरण : 12वीं की परीक्षा बायोलॉजी विषय के साथ उत्तीर्ण। मेडिकल की प्रवेश परीक्षा आप 12वीं के बाद दे सकते हैं। जो प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होते है, वह एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त कर सकते है। छह वर्ष की ट्रेनिंग आपको सर्जन  बनाती है। ट्रेनिंग के खत्म होने के बाद आप चाहें तो सरकारी नौकरी में जा सकते हैं या फिर अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं।

संस्थान
-आल इंडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज
-पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल एजूकेशन एंड रिसर्च
-क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर
-मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली
-संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ
-किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई


क्लीनिकल रिसर्च
क्लीनिकल रिसर्च में किसी मेडिकल उत्पाद के फायदे, नुकसान, जोखिम, किस सीमा तक प्रभावशीलता का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। मोटे तौर पर कहा जाए, तो किसी दवाई को बाजार में लांच करने से पहले उसका वैज्ञानिक अध्ययन क्लीनिकल रिसर्च के अंतर्गत ही आता है। क्लीनिकल शोधकर्ताओं रोग के कारण और रोग के बढ़ने की प्रक्रिया, रोगी का बेहतर इलाज कैसे हो सकता है, इसका आकलन करना के बारे में भी जानकारी दी जाती है। सामान्यत: क्लनिकल रिसर्च की प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है। 

संभावनाओं की कमी नहीं  
कई फॉर्मा और बायोटेक कंपनियां रिसर्च और डेवलपमेंट के क्षेत्र में तेजी से प्रवेश कर रही है। ऐसे में क्लीनिकल रिसर्च में प्रशिक्षित लोगों के लिए संभावनाओं की कमी नहीं है। इंडस्ट्री को क्वालिटी एश्यूरेंस, क्वालिटी कंट्रोल, बिजनेस डेवलपमेंट, क्लिनिकल ऑपरेशन, मेडिकल राइटिंग, बायोस्टेस्टिक्स, डाटा मैनेजमेंट और रेगुलेटरी अफेयर्स से जुड़े प्रशिक्षित लोगों की काफी दरकार है। फॉर्मा उद्योग में प्रशिक्षित मैनेजर स्किल प्रोफेशनल की काफी जरूरत है। एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के लिए कंपनियां वाजिब कीमतों में अपने उत्पाद बाजार में उतार रही है। इसके लिए क्लीनिकल रिसर्च,रेगुलेटरी अफेयर्स, बायोमैट्रिक्स, मेडिकल अफेयर्स, क्वालिटी एश्यूरेंस और फॉर्मेकोविजिलेंस में विशेषज्ञता की जरूरत है।

कई कंपनियां हैं बाजार में
सिपला, रैनबेक्सी, फाइजर, जोनसन एंड जोनसन, असेंचर, एक्सेल लाइफ इंश्योरेंस, पैनेसिया बायोटेक, जुबलिएंट, परसिस्टेंट जैसी बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में मौजूद है। एमबीए फॉर्मा उद्योग विशेष आधारित कोर्स है। इसमें फॉर्मास्यूटिकल मैनेजमेंट प्रोफेशनल तैयार किए जाते हैं।

कौन-कौन से हैं कोर्स
इस इंडस्ट्री में प्रवेश के लिए आपके पास बीएससी डिग्री होनी चाहिए। मुख्यत: कोर्स में दाखिले के लिए स्नातक स्तर पर आपके पास फॉर्मेसी, मेडिसन, लाइफ साइंस और बायोसाइंस विषय होने चहिए। क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े कई डिप्लोमा कोर्स विभिन्न संस्थानों द्वारा कराए जाते हैं जिनमें पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल डाटा मैनेजमेंट, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फॉर्मेकोविजिलेंस कर सकते हैं।  

संस्थान
-इंस्टीटय़ूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च, नई दिल्ली
-क्लीनिकल रिसर्च एंड क्लीनिकल डाटा मैनेजमेंट, पुणे
-इंस्टीटय़ूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च इंडिया, देहरादून

नर्स : बनें नाइटिंगेल जैसी
भारत में नर्स और व्यक्तियों की आबादी का अनुपात 1:2250 है जबकि यूरोप में यही अनुपात 1:1150 है। ऐसे में इस करियर में संभावनाएं अपार हैं साथ ही समाज सेवा का मौका भी। वैसे इस पेशे को 1850 में ही नाइटिंगेल द्वारा किए गए कामों की वजह से मान्यता मिल गई थी। उन्हें मॉर्डन प्रोफेशन ट्रेनिंग का संस्थापक भी माना जाता है। ये ऐसा क्षेत्र है, जो आपको नौकरी की गारंटी देता है।

अवसरों की कमी नहीं
नर्सिंग में बीएससी के बाद क्लीनिकल के क्षेत्र में और विभिन्न नर्सिंग के स्कूलों और कॉलेजों में काम कर सकते हैं। एमएससी करने के बाद आपको प्रशासनिक पद मिल सकता है। आप किसी नर्सिंग कॉलेज में प्रिंसिपल बन सकते हैं या किसी स्टेट काउंसिल या इंडियन नर्सिंग स्कूल में रजिस्ट्रार बन सकते हैं। एम.फिल और पी.एच.डी करने के बाद आप शोधकर्ता या रिसर्च कॉआर्डिनेटर के रूप में काम कर सकते हैं।

एएनएम (ऑक्जिलरी नर्सिंग मिडवाइफरी) या जीएनएम (जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी) जैसे डिप्लोमा कर आप हैल्थकेयर सेंटर या अस्पतालों में मल्टीपरपज वर्कर और केयर प्रोवाइडर्स के रूप में काम कर सकते हैं। नर्स रेडक्रॉस सोसाइटी, नर्सिंग काउंसिल में भी काम कर सकती हैं। इसके अलावा आप सीएचईबी (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हैल्थ एजूकेशन), टीएनएआई (ट्रेंड नर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) में सेक्रेटी के रूप में काम कर सकते हैं। इसके अलावा वे नर्स ब्यूरो चला सकते हैं या स्वरोजगार कर सकते हैं।

नर्स
नर्स रोगी की रोजमर्रा की देखरेख करती है। उन्हें दवाइयां नियत समय पर देती हैं। वह रोगी की शारीरिक स्थिति में हो रहे सुधार, मानसिक अवस्था, दवाइयों के असर और अन्य ट्रीटमेंट का ख्याल रखती हैं।
 
शैक्षिक योग्यता 
10वीं के बाद आप एएनएम (ऑक्जिलरी नर्सिंग मिडवाइफरी) कर सकते हैं। यह दो वर्षीय डिप्लोमा है। चाहें तो साढ़े तीन वर्ष का जीएनएम (जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी) भी कर सकते हैं। इसको आप 12वीं के बाद कर सकते हैं। 4 साल का बीएससी नर्सिंग प्रोगाम करने के लिए 12वीं में विज्ञान और बायोलॉजी विषय होने चाहिए। इसके बाद आप एम.एस.सी, पी.एच.डी कर सकते हैं।

इंस्टीटय़ूट
-सीएमसी, वेल्लूर
-एम्स, दिल्ली
-आरएके कॉलेज ऑफ नर्सिंग, दिल्ली
-एएफएमसी, पुणे
-सेंट स्टीफन अस्पताल, दिल्ली

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