दो टूक (04 दिसंबर, 2009)
दिल्ली को संवारने-सुधारने की मुहिम बार-बार सवालों से घिर जाती है। कभी मेट्रो की मुसीबतें तो कभी लो फ्लोर बसों की आग सांसत में डाल देती है। इन बहु प्रचारित बसों में आग लगने के अब तक हुए तीन वाकयों को...
दिल्ली को संवारने-सुधारने की मुहिम बार-बार सवालों से घिर जाती है। कभी मेट्रो की मुसीबतें तो कभी लो फ्लोर बसों की आग सांसत में डाल देती है। इन बहु प्रचारित बसों में आग लगने के अब तक हुए तीन वाकयों को क्या डीटीसी की बदइंतजामी का नमूना समझा जाए। लगता है इन्हें खरीदते वक्त बुनियादी बातों का भी खयाल नहीं रखा गया।
गर्मियों भर यात्री भारी-भरकम शीशों की वजह से धूप झेलते रहे। अब आग लगने की घटनाओं से इनकी एक और दिक्कत का पता चला है। दुर्घटनाग्रस्त होते ही बस के दरवाजे लॉक हो गए और सवारियों को खिड़कियों से कूदना पड़ा। दिल्ली को बदलने की तमाम कोशिशों के प्रचार के साथ-साथ अगर गुणवत्ता पर ध्यान न दिया गया तो फिर शहर को पुरानी जगह पहुंचते देर नहीं लगेगी।