फोटो गैलरी

Hindi Newsशहरों के संतुलित विकास के लिए नई सोच जरुरी: पीएम

शहरों के संतुलित विकास के लिए नई सोच जरुरी: पीएम

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शहरी क्षेत्र के संतुलित विकास को समग्र विकास का एक अभिन्न अंग बताते हुए कहा कि देश के शहरों के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी है कि हम बड़ी- बड़ी योजनाएं बनाएं और एक नई सोच...

शहरों के संतुलित विकास के लिए नई सोच जरुरी: पीएम
एजेंसीThu, 03 Dec 2009 03:37 PM
ऐप पर पढ़ें

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शहरी क्षेत्र के संतुलित विकास को समग्र विकास का एक अभिन्न अंग बताते हुए कहा कि देश के शहरों के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी है कि हम बड़ी- बड़ी योजनाएं बनाएं और एक नई सोच कायम करें।

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन की चौथी वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बहुत से विकासशील देशों के लिए 21वीं सदी में अर्थव्यवस्था का आधार ग्रामीण के बजाय शहरीकृत हो जाएगा। इनमें से कई देशों में आधी से अधिक आबादी पहले से ही शहरों और कस्बों में रह रही है। यह पलायन भारत में कुछ धीमी गति से हो रहा है। लेकिन अगले बीस सालों में संभव है कि हमारी शहरी आबादी दोगुनी हो जाए। यह एक चुनौती भी है और अनूठा मौका भी। यदि हम इस चुनौती का प्रभावी रूप से सामना करना चाहते हैं तो हमें अपने संपूर्ण संघीय ढांचे के सभी चरणों से एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता होगी।

उन्होंने कहा कि आज मिशन के चार वर्ष पूरे होने के मौके पर वह शहरी क्षेत्र के सतत एवं समन्वित विकास की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहना चाहते हें कि शहरी क्षेत्र का संतुलित विकास हमारी समग्र विकास की नीति का एक अभिन्न अंग है। यही कारण है कि हम केवल इस मिशन और इस मिशन की उपलब्धियों पर ही निर्भर नहीं रह सकते। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें बड़ी- बड़ी योजनाएं बनानी होगी। बड़ा सोचना होगा तथा देश के शहरों के उज्जवल भविष्य के लिए एक नई सोच कायम करनी होगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण के साथ पैदा होने वाली समस्याओं को केवल जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन से हल कर पाना कठिन होगा। मांग के हिसाब से ढांचागत विकास की गति न होने के कारण शहरों की भीड़ भाड़ और भागमभाग की जिन्दगी का एक हिस्सा बनती जा रही है। हमारे शहरों और कसबों का स्वरूप तेजी से बढ़ते आधुनिकीकरण और विकसित होती अर्थव्यवस्था के साथ बेहतर तालमेल नहीं बैठा पा रहा है। बेहतरी के लिए हमें इसे बदलना होगा इसमें परिवर्तन लाना होगा।

उन्होंने कहा कि इन्हीं कस्बों से जो प्रयास आज किए जा रहे हैं वे हमारी अर्थव्यवस्था के भविष्य, विकास की हमारी क्षमता तथा देश के शहरों के समग्र विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि शहरीकरण की चुनौतियों को बेहतर ढांचागत प्रावधानों के माध्यम से निपटने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के शहरी ढांचागत विकास पर होने वाले खर्च का अनुमान लगाने के लिए विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा है लेकिन अभी से यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यह राशि कम नहीं होगी। इसीलिए शहरी ढांचागत विकास के लिए आर्थिक प्रबंधन पर आने वाले सालों में विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए हमें संसाधन प्रबंधन तथा शहरी ढांचागत विकास से जुड़ी योजनाओं के लिए बाजार से धन प्रबंधन में आने वाली परेशानियों पर ध्यान देना होगा।

मिशन के चार सालों के कामकाज का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मिशन ने ऐतिहासिक प्रयासों से जुडी अनेक अपेक्षाओं को पूरा किया है तथा हमारे नीति निर्माताओं का ध्यान शहरी नवीकरण पर केन्द्रित किया है जैसा पहले कभी नहीं था।

उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने शहरी नवीकरण के लिए पर्याप्त धन मुहैया कराया है तथा राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। शहरी विकास एवं आवास तथा शहरी गरीबी उन्मूलन दोनों मंत्रालयों ने शहरी परिवहन एवं बस सेवाओं से संबंधित 103462 करोड़ रुपए की योजनाओं को मंजूरी दी है और इसके लिए केन्द्र ने 55625 करोड़ रुपए की सहायता देने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि मिशन की स्वीकृत योजनाओं के अंतर्गत जल आपूर्ति, सीवेज एवं ड्रेनेज, ठोस कचरा प्रबंधन, झोंपड़ पट्टियों की हालत में सुधार लाना तथा शहरों में रहने वाले निर्धन लोगों के लिए आवास निर्माण जैसी मूलभूत सेवाएं शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि इस मिशन से शहरी क्षेत्र के विकास के नियोजन में व्यापक बदलाव आया है। प्रधानमंत्री ने मिशन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसके अंतर्गत स्थानीय निकायों के सुधार की प्रक्रिया को और व्यापक बनाना होगा और उन्हें शहरी गरीबों की जरुरतों तथा उनकी देखभाल के प्रति अधिक संवेदनशील बनना होगा। इसके अतिरिक्त नगर पालिकाओं की वित्तीय हालत को भी सुधारना होगा क्योंकि केवल आर्थिक रुप से मजबूत स्थानीय निकाय ही निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित कर सकेंगे या फिर बहुराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से सहायता हासिल कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि हमारे शहरों के विकास के लिए वित्तीय सहयोग के ए दोनों ही अपरिहार्य स्रोत हैं। इससे सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में भागीदारी पीपीपी की संभावनाओं का पता लगाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें