धुएं से लड़ने कूदा भारत
सदी के अंत तक धरती के छह डिग्री और गर्म होने के अनुमान व उसके चलते होने वाले भयानक नुकसान को भांपते हुए भारत ने प्रदूषण से दो-दो हाथ करने के लिए कमर कस ली है। केंद्र ने बुधवार को प्रदूषण मानकों को और...
सदी के अंत तक धरती के छह डिग्री और गर्म होने के अनुमान व उसके चलते होने वाले भयानक नुकसान को भांपते हुए भारत ने प्रदूषण से दो-दो हाथ करने के लिए कमर कस ली है। केंद्र ने बुधवार को प्रदूषण मानकों को और कड़ा करने का ऐतिहासिक फैसला लिया।
औद्यौगिकी क्षेत्र में ज्यादा प्रदूषण होने के कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि कानूनी तौर पर औद्यौगिक इलाकों में प्रदूषण के मानक बेहद ढीले रखे गए थे, जिस कारण औद्यौगिक क्षेत्रों तथा इनके आस-पास रहने वाले लोगों तथा यहां काम करने वाले लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे थे।
कोपेनहेगेन क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस से ठीक पहले एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए अब केंद्र सरकार ने औद्यौगिक क्षेत्रों के लिए हवा की गुणवत्ता के मानकों को बेहद कड़ा कर दिया है। नए नियमों के अनुसार हवा जितनी शुद्ध रिहायशी इलाकों में रहनी चाहिए उतनी ही औद्यौगिक इलाकों में भी रखनी होगी।
केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने आईआईटी कानुपर और सीएसई के विशेषज्ञों की मदद से हवा की गुणवत्ता के नए मानक घोषित किए हैं, वे यूरोपीय यूनियन के मानकों की तरह ही कड़े हैं। पहले तीन श्रेणी के मानक थे। एक-आवासीय, दूसरे औद्यौगिक तथा तीसरे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए मसलन ताजमहल क्षेत्र आदि। अब इन्हें दो श्रेणियों में रखा गया है, एक-आवासीय और औद्यौगिक, दूसरे अति संवेदनशील क्षेत्र।
पहले सिर्फ छह प्रदूषणकारी तत्वों सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, एसपीएम, आरएसपीएम, अमोनिया, कार्बन मोनोऑक्साइड के लिए मानक बनाए गए थे। अब इसमें-लैड, ओजोन, बेंजीन, बेंजो, आर्सेनिक तथा निकल भी शामिल हैं। मानकों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ मुकेश शर्मा का मानना है कि सरकार के इस फैसले के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारक हैं।
नए मानकों को लागू करने की जिम्मेदारी एनवायरमेंट प्रोटेक्शन अथॉरिटी की होगी, जिसका गठन जल्द होगा। यह अथॉरिटी प्रदूषण फैलाने वाली औद्यौगिक इकाइयों की पहचान करेगी तथा उन पर भारी जुर्माना लगाएगी।