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इस बार सबसे छोटा होगा मिलों का पेराई सत्र

किसानों का आंदोलन चीनी मिलों पर भारी पड़ने लगा है। कई चीनी मिलों का मुहूर्त होने के बाद भी वह गन्ने की पेराई नहीं कर पा रही है। इसकी वजह किसानों का मिलों को गन्ना नहीं देना है। वेस्ट यूपी की एक दजर्न...

इस बार सबसे छोटा होगा मिलों का पेराई सत्र
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 16 Nov 2009 07:23 PM
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किसानों का आंदोलन चीनी मिलों पर भारी पड़ने लगा है। कई चीनी मिलों का मुहूर्त होने के बाद भी वह गन्ने की पेराई नहीं कर पा रही है। इसकी वजह किसानों का मिलों को गन्ना नहीं देना है। वेस्ट यूपी की एक दजर्न चीनी मिल गन्ने ना मिलने से बंद पड़ी है। इस बार चीनी मिलों का पेराई सत्र सबसे छोटा होगा।

यूपी में गन्ना मूल्य को लेकर किसानों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है। चीनी मिलों के 15 रुपए प्रति कुंतल इंसेंटिव देने के प्रस्ताव को भी किसानों ने ठुकरा दिया है और 200 रुपए कुंतल से कम पर गन्ना बेचने से साफ इनकार कर दिया है। इस कारण चीनी मिलों में पेराई भी नहीं हो पा रही है। वेस्ट यूपी की करीब एक दजर्न चीनी मिलों में पेराई सत्र का उद्घाटन तो हो चुका है, मगर मिलों को गन्ना नहीं मिल पा रहा। इसमें गाजियाबाद की सिंभावली और बृजनाथपुर चीनी मिलें भी शामिल है। सिंभावली मिल का मुहूर्त हुए एक सप्ताह हो गया है। पर गन्ने की कमी के कारण पेराई शुरू नहीं हो पा रही। मिल को अभी तक केवल 15 हजार कुंतल गन्ना ही मिल पाया है। बृजनाथपुर चीनी मिल की हालत इससे भी अधिक खस्ता है।

गन्ना अधिकारियों के अनुसार, इस चीनी मिल को किसानों ने अभी तक केवल 1570 कुंतल गन्ना ही सप्लाई किया है। किसान शुगर मिल को गन्ना देने की बजाय क्रेशरों पर बेचना पसंद कर रहे हैं। जहां उन्हें नकद दाम भी मिल रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन ने तो केंद्र सरकार की विवादास्पद एफआरपी (लागत एवं उचित लाभकारी) नीति को वापस लिए बिना चीनी मिलों को नहीं चलने देने का ऐलान कर दिया है। गाजियाबाद की तीसरी चीनी मिल मोदीनगर ने भी 18 नवंबर से पेराई सत्र शुरू करने का ऐलान तो कर दिया है। लेकिन किसानों की मिलों को नहीं चलने देने की जिद के आगे मिल में पेराई हो पाना कठिन है। इस बार चीनी मिलों का पेराई सत्र सबसे छोटा होने के आसार बन गए हैं। पिछले सत्र में मिल केवल 120 दिन ही चली थी। इस पेराई सत्र में मिल 70 दिन भी चल पाना मुश्किल लग रहा है।

राकेश टिकैत (राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू) का कहना है कि केंद्र को अपनी एफआरपी नीति को वापस लेना होगा और किसानों को 200 रुपए कुंतल से ज्यादा का दाम देना पड़ेगा। इसके बाद ही चीनी मिलों में को चलने दिया जाएगा।

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