सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की ताज कोरिडोर मामले में अपने खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज करने की दलीलों को खारिज कर दिया।
उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका को इस आधार पर खारिज करने की मांग की थी कि विपक्षी पार्टी इस मुद्दे पर उनकी सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर सकती है।
न्यायमूर्ति बीएस सिरपुरकर और न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वे याचिका को कायम रखने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पास जाएं। अदालत ने कहा, सरकार को अस्थिर करने की विपक्ष की मांगों से हमारा सरोकार नहीं हैं।
न्यायाधीशों की यह टिप्पणी तब आई जब वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि पीआईएल में सरकार को अस्थिर करने की प्रवृत्ति है। उन्होंने कहा कि अगर जनहित याचिका को सुनने की अनुमति दी जाती है तो यह विपक्ष को सिर्फ उनकी सरकार का इस्तीफा मांगने का बहाना देगा। पीठ ने कहा, अस्थिरता। क्यों हम इन बातों में पड़ें।
अदालत उत्तर प्रदेश सरकार की उन दलीलों से भी सहमत नहीं हुआ कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर इसी तरह की चार अन्य याचिकाएं पहले भी खारिज की जा चुकी हैं।
न्यायाधीशों ने कहा कि उन्हें इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी दलीलों को हाई कोर्ट के समक्ष रखने की अनुमति दी।
मायावती सरकार ने यह अपील इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर की थी जिसमें उसने कमलेश वर्मा और दो अन्य द्वारा राज्यपाल टीवी राजेस्वर की तरफ से मायावती के खिलाफ इस मामले में अभियोग चलाने की सीबीआई को अनुमति देने से मना करने के फैसले को लेकर दाखिल जनहित याचिका को विचारार्थ स्वीकार कर लिया गया था। ताज कोरिडोर मामला ताज महल के पास जनता के पैसे से शापिंग मॉल और अन्य मनोरंजन केंद्रों का निर्माण करने की अनुमति देने से संबंधित है।