बोकारो के कुर्मीडीह में एक छोटे से कच्चे मकान में रहने वाले देवन मांझी पिछले 29 सालों में लोकसभा और विधान सभा के 10 चुनाव लड़ चुके हैं। अब-तक एक भी चुनाव नहीं जीत पाने का मलाल है। उससे भी अधिक मलाल उन्हें इस बात का है कि इस बार का चुनाव पैसों की कमी के कारण नहीं लड़ पा रहे हैं।
देवन मांझी ने पहली दफा वर्ष 1980 में लोक सभा का चुनाव लड़ा था। चुनावी जंग में कूदने का ऐसा जुनून समाया कि निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े तथा पीठ पर बोरा ढोकर और रिक्शा खींचकर कमाए गए एक लाख रुपए को उस चुनाव में खर्च कर दिया। देवन बताते हैं कि कई वर्षों की मेहनत से एक लाख रुपए कमा पाया था। उनकी इच्छा एक गाड़ी खरीदने की थी। इसी बीच वह कांग्रेस के संपर्क में आए और धनबाद जाकर सदस्यता ग्रहण कर ली।
1980 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी की दावेदारी करने वालों में योगेश्वर प्रसाद योगेश के अलावा वह भी थे। किंतु, टिकट योगेशजी को मिल जाने पर वह निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े। कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि स्वयं वह भी साइकिल से घूम-घूम कर तथा पीठ पर बैनर लटका कर वोट मांगने निकलते थे। किंतु, एक लाख से अधिक वोट लाने के बावजूद चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद 1984, 1989, 1991 एवं 1992 के लोकसभा चुनाव तथा 1985 से 2005 तक विधान सभा के चुनावों में भी भाग्य आजमाते रहे। किंतु, जीत का स्वाद चखने का मौका कभी नहीं मिल पाया। देवन मांझी कहते हैं कि बोकारो स्टील प्लांट की उत्पादन क्षमता 10 मिलियन टन करना ही उनका एकमात्र सपना और लक्ष्य रहा है। चुनाव भी इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए लड़ता आया हूं, वह भी अपने दम पर। किसी चुनाव में कभी एक पैसा भी किसी से चंदा नहीं लिया।
इस बार पैसा नहीं होने के कारण चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। लेकिन, अगला लोकसभा चुनाव अवश्य लड़ेंगे। मांझी आगे बताते हैं, फिलहाल उनके परिवार की जीविका जनवितरण प्रणाली की दुकान से चलती है। लगभग 12 सौ रुपए की कमाई प्रतिमाह हो जाती है। अब चुनाव पैसे वालों का खेल हो गया है।