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भारत की कहानी, नेहरू की जबानी

मैं तीन में से कोई एक चीज करना चाहता था। या तो मैं रामायण पर धारावाहिक बनाना चाहता था, या महाभारत पर, या फिर भारत की कहानी पर एक लंबा सा धारावाहिक। वह एक ऐसा दौर था, जब इस देश में टेलीविजन का तेजी से...

भारत की कहानी, नेहरू की जबानी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 14 Nov 2009 12:24 AM
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मैं तीन में से कोई एक चीज करना चाहता था। या तो मैं रामायण पर धारावाहिक बनाना चाहता था, या महाभारत पर, या फिर भारत की कहानी पर एक लंबा सा धारावाहिक। वह एक ऐसा दौर था, जब इस देश में टेलीविजन का तेजी से विस्तार हो रहा था। तब तक कुछ निर्माताओं ने रामायण और महाभारत पर सीरियल को बनाना शुरू भी कर दिया था। इसलिए मैंने तय किया कि मैं भारत के इतिहास पर धारावाहिक बनाऊंगा। इसके लिए मैंने नेहरू के काम को चुना। इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि नेहरू की किताब ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ एक खास मकसद से लिखी गई थी। इस किताब में नेहरू भारत को एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करने की कोशिश कर रहे थे।
हमने समय-समय पर अपने देश को कई तरह से परिभाषित करने की कोशिश की है। 2300 साल पहले सम्राट अशोक से लेकर अब तक। इसके अलावा हमारे पास कई पौराणिक परिभाषाएं तो हैं ही। सम्राट अकबर के राज ने बाद में भारत को एक राजनैतिक परिभाषा भी देने की कोशिश की। नेहरू ने अपनी यह किताब तब लिखी, जब भारत आजाद नहीं हुआ था और इसकी आजादी की लड़ाई की वजह से वे जेल में थे। उनके लिए उस समय भारत को एक राष्ट्र के तौर पर परिभाषित करना काफी महत्वपूर्ण और जरूरी था। वह भी पश्चिम के इतिहास से एकदम अलग करके।
 
उस समय हमारे पास जो राष्ट्र का सिद्धांत था, वह मूल रूप में एक यूरोपीय सिद्धांत था। सैकड़ों साल के युद्ध के बाद यूरोप को देशों को एक राष्ट्र के रूप में नई पहचान मिली थी। उनकी यह पहचान जातीयता, भाषा और धर्म वगैरह कई चीजों पर आधारित थी। लेकिन भारत को इस तरीके से परिभाषित नहीं किया जा सकता। अगर आकार के हिसाब से देखें तो अपने आप में यह एक पूरे महाद्वीप की तरह ही है। इसमें अलग-अलग तरह की सभ्यता और संस्कृति वाले लोग रहते हैं। यहां आपको कई तरह की जातीय पहचान के लोग मिल जाएंगे। और उतनी तरह की भाषाएं मिल जाएंगी, जितनी तरह की किसी महाद्वीप में होती हैं। दुनिया में जितनी भी तरह के धर्म हैं उन सबके मानने वाले आपको कहीं न कहीं भारत में मिल सकते हैं।

नेहरू एक राष्ट्र के तौर पर भारत को एक परिभाषा देना चाहते थे। इस काम के लिए उन्हें इतिहास में जाने की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए उन्होंने इस देश की उत्पत्ति और इसके विकास का अध्ययन किया। इस पूरे देश में जो विभिन्नताएं हैं, वे दिमाग को चकरा देने वाली हैं। वे यह समझने और ढूंढने की कोशिश कर रहे थे कि वे कौन से कारण हैं, जिन्होंने इतने बड़े देश को अब तक एक बनाए रखा। और इसके साथ ही इसे कभी छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटने नहीं दिया। हमारा समाज कोई एकरस यानी होमोजीनियस किस्म का समाज नहीं है। इसमें कई तरह की विभिन्नताएं हैं, लेकिन इसके साथ ही इसमें हमेशा ही ऐसा कुछ भी है, जो इसे एकजुट बनाए रखता है। नेहरू की किताब इन्हीं कारणों को खोजती और तलाशती है। मुझे लगा कि यह एक अदभुत किताब है, जो भारत की कहानी कहने का आधार बन सकती है। इसी से बना ‘भारत एक खोज’, जिसका सीधा सा अर्थ ही है- भारत की खोज।
मैंने इसका नाम ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ नहीं रखा, भारत की खोज ही रखना पसंद किया। उनकी किताब में कोई संदर्भ नहीं दिए गए हैं, क्योंकि जब उन्होंने यह किताब लिखी वे जेल में थे। इतिहास के लिए ई. पी. थॉमसन जैसे लोग उनके सलाहकार थे। थॉमसन की राय काफी दिलचस्प भी हुआ करती थी। लेकिन नेहरू एक अलग तरह का इतिहास लिखने की कोशिश कर रहे थे। पहली बार एक ऐसा इतिहास जिसके नजरिये का केंद्र भारत था। हालांकि तब तक औपनिवेशिक काल में इतिहास एक अध्ययन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बन गया था, लेकिन उस समय जो भारत का इतिहास लिखा गया वह यूरोपीय नजरिये से लिखा गया। भारत के इतिहास को यूरोपीय लोगों की नजर से देखा गया। एक तो यह बहुत ही संक्षिप्त सा था। दूसरे यह संरक्षण देने वाले नजरिये से लिखा गया था। फिर सांस्कृतिक नजरिये से देखें तो कई बार इसमें एक तरह की घमंडभरी अक्खड़ता नजर आती थी।
नेहरू की कोशिश थी कि जब वे इतिहास की बात करें तो उसे यूरोपीय व्याख्याओं और रंगों से मुक्त कर दें। एक तरह से उनकी यह किताब प्रारंभिक और मूल किताब है। कई ऐसी चीजें थीं जिनके बारे में वे बहुत ज्यादा नहीं जानते थे, खासतौर पर दक्षिण भारत के बारे में।
और जब मैं अपना टेलीविजन सीरियल ‘भारत एक खोज’ बनाने लगा तो इसके लिए मैने 22 इतिहासकारों को नियुक्त किया। ये सब लोग किसी न किसी खास काल के विशेषज्ञ थे। तकरीबन इतने ही लोगों को मैंने सलाहकार और परामर्शदाता भी बनाया। हम किताब में छूट गई सारी खाली जगहों को भरना चाहते थे। इसके साथ ही हमने यह कोशिश भी कि जहां तथ्यों के मामले में नेहरू गलत थे वहां उन्हें ठीक भी कर दिया जाए। इसके बाद हमने ‘भारत एक खोज’ सीरियल बनाया। इसमें नेहरू सूत्रधार की तरह थे। जिसमें वे खुद भारत के इतिहास की कहानी कहते हैं। और अपनी किताब के लगातार उद्धरण भी देते हैं।
लेखक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता हैं
‘बॉलीवुड बेबीलोन’ से साभार

 

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