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डायबिटीज का रोग बड़ा बुरा, बचने के रास्ते जानें जरा

यूं तो डायबिटीज दुनिया भर में फैली है, मगर भारत आज उसका सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण 21वीं सदी की जीवनशैली है। यह सोच सरासर गलत है कि डायबिटीज अधिक मीठा खाने से होती है। डायबिटीज उपज...

डायबिटीज का रोग बड़ा बुरा, बचने के रास्ते जानें जरा
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 10 Nov 2009 10:52 PM
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यूं तो डायबिटीज दुनिया भर में फैली है, मगर भारत आज उसका सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण 21वीं सदी की जीवनशैली है। यह सोच सरासर गलत है कि डायबिटीज अधिक मीठा खाने से होती है। डायबिटीज उपज की षड्यंत्री कड़ियों में आधुनिक पुश-बटन लाइफस्टाइल का सबसे बड़ा हाथ है। जीवन पर जैसे-जैसे यांत्रिकता का वर्चस्व बढ़ा है, शारीरिक मेहनत-मशक्कत घटी है, खानपान के स्वाद बदले हैं, वैसे-वैसे डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ती गई है। गांववासियों की तुलना में शहरियों में डायबिटीज के पांच गुना अधिक होने के पीछे भी दोषयुक्त जीवनशैली ही कसूरवार है।

डायबिटीज रोकथाम के जन-अभियान में अगर हमें कामयाबी पानी है तो पहली शर्त इन षड्यंत्रकारी कड़ियों के बाबत साफ-सुथरी समझ विकसित करने की है। नवीनतम वैज्ञानिक शोध के अनुसार डायबिटीज की उपज में निम्न

जोखिमकारी तत्व प्रमुख रूप से जुड़े हैं :
सबसे बड़ा कारण शारीरिक निष्क्रियता जैसे-जैसे जीवन रिमोट कंट्रोल, कॉर्डलैस और मोबाइल फोन, लैपटॉप और डेस्कटॉप, ऐलिवेटर और ऐस्केलेटर का गुलाम बनता गया है, वैसे-वैसे जीवन में न सिर्फ मेहनत-मशक्कत बल्कि शारीरिक हलचल के अवसर भी घटते जा रहे हैं। इसके फलस्वरूप शरीर में बनने वाला इंसुलिन अपना पैनापन खो देता है, वजन बढ़ते समय नहीं लगता और नतीजतन ब्लड शुगर पर से नियंत्रण छूटने का रिस्क लगातार बढ़ता है।

स्वास्थ्य और सौंदर्य का दुश्मन मोटापा
डायबिटीज उपज की जैव-रासायनिक कड़ियों में वजन बढ़ने का बड़ा हाथ है। टाइप-2 डायबिटीज के 80 प्रतिशत रोगी स्थूल शरीर के होते हैं। अध्ययनों में पुष्टि हुई है कि बॉडीमास इंडेक्स (बी़एम़आई़) के 25 से अधिक होने पर डायबिटीज उपजने की आशंका बढ़ती है। मोटापा इंसुलिन की ताकत घटाता है। शरीर में बनी इंसुलिन हमारी कोशिकाओं के द्वार पर ग्लुकोज के लिए लगे तालों को ठीक से खोल नहीं पाती। इसी से खून में ग्लुकोज का स्तर बढ़ता है। डायबिटीज के शुरू में वजन घटाने मात्र से शुगर पर नियंत्रण पाया जा सकता है। 

भूमिका ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की
अगर ब्लड प्रेशर बढ़कर 140/90 से ऊपर चला जाए, अच्छे स्वास्थ्य का सूचक एच़डी़एल़ कोलेस्ट्रॉल घटकर 35 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम रह जाए, ट्राइग्लिसराइड बढ़कर 250 मिलीग्राम प्रतिशत से ऊपर चला जाए तो समझ लें कि डायबिटीज दस्तक दे रही है। 

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी!
वर्तमान जीवनशैली में अगर कुछ दूसरी षड्यंत्री कड़ियां भी जुड़ जाएं तो डायबिटीज का जोखिम और बढ़ जाता है। इन पर किसी का वश तो नहीं चलता, लेकिन इनकी उपस्थिति में व्यक्ति को डायबिटीज के प्रति अतिरिक्त रूप से सावधान रहने की जरूरत होती है :

रक्त संबंधियों में डायबिटीज : परिवार में माता-पिता या भाई-बहन को डायबिटीज हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को डायबिटीज होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। इस जोखिम से निबटने का यही तरीका है कि जीवनशैली के प्रति थोड़ी अतिरिक्त चौकसी बरतें।

स्त्रियों में जोखिम के विशेष चिह्न् : अगर किसी स्त्री को पूर्व में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज रही हो, गर्भवती होने पर ब्लड शुगर बढ़ गया हो या उसने नौ पाउंड से अधिक वजन के बच्चों को जन्म दिया हो, तो उसे जीवनभर डायबिटीज के प्रति चौकस रहना जरूरी है।

निजात पाएं कैसे
डायबिटीज से बचने के लिए सबसे कारगर तो यही है कि रक्त की जांच में शुगर के स्तर की तत्काल जांच कराई जाए। समय रहते विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह मिलने पर आप खानपान और जीवनशैली में मामूली बदलाव करके ज्यादा बड़े खतरों को टाल सकते हैं।

खुद बनिए अपने शिक्षक : डायबिटीज़ का मरीज़ अगर इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी रखता है, तो वह इससे लड़ने की ज्यादा कूवत रखता है। इसलिए बीमारी के बारे में पढ़ना हमेशा फायदेमंद ही साबित होगा। जब एक जागरूक मरीज़ अपने इलाज में पूरी रुचि रखेगा, तो  उसमें बीमारी से मात न खाने की हिम्मत बनी रहेगी। ये बहुत अहम है।

वज़न घटाइए : अगर आप मोटापे के शिकार हैं, तो वज़न घटाइए। आमतौर पर जो लोग शारीरिक श्रम कम करते हैं, उनमें वज़न बढ़ने की प्रवृत्ति और फिर डायबिटीज़ का शिकार होने का खतरा ज्यादा होता है। कोई शख्स अगर अपने कुल वज़न का 5.7% भी कम कर ले, तो उसे डायबिटीज़ होने का खतरा 50% तक कम हो जाता है। लेकिन ये भी याद रखिये कि डायबिटीज़ मोटे-पतले, बच्चों, युवा, वृद्ध हर किसी को हो सकती है। 

सक्रिय रहिएः अगर हर दिन आधे घंटे भी कसरत करेंगे, तो डायबिटीज़ की संभावना न के बराबर रह जाएगी। घर का छोटा मोटा काम खुद करने, सीढ़ी चढ़ने-उतरने या पैदल जाकर आसपास के काम निपटाने की आदत हो, तो अतिरिक्त समय देकर पार्क में जाने या जॉगिंग करने की खास जरूरत नहीं रह जाएगी। नहीं, तो सुबह की सैर पर जाने और पार्क में व्यायाम करने का नियम बनाकर सख्ती से उस पर अमल करना चाहिए। 

शुगर लैवल की मॉनिटरिंग : जिन लोगों के परिवार में बुजुर्गो को डायबिटीज़ होती रही है, उन्हें इससे बचने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है। उन्हें खून की नियमित जांच करवाकर शुगर लैवल को नियंत्रित रखने का जतन करना चाहिए। शुगर लैवल की मॉनिटरिंग से ये संभव है। शुगर लैवल का चार्ट देखकर आप विशेषज्ञ से या मेडिकल जर्नल्स और वेबसाइट्स से खुद ही, इसे नियंत्रित रखने के टिप्स ले सकते हैं। 

ये न समझें कि इंसुलिन का स्तर ऊंचा होने पर डायबिटीज़ नहीं होगी। असल में डायबिटीज़ का होना या न होना इंसुलिन के लैवल पर नहीं, बल्कि उसकी प्रभावशीलता पर निर्भर करता है। इंसुलिन का स्तर अक्सर उन लोगों में गड़बड़ा जाता है, जिन्हें खुद को अलग जीवनशैली में ढालना पड़ता है। ऐसे लोगों को समय समय पर शुगर टेस्ट कराते रहना चाहिए।

गर्भवती महिलाएं क्या करें : गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज़ होने पर, कुल कैलोरी का 15 से 20 % वसायुक्त भोजन से ग्रहण करना चाहिए। इस लिहाज से खाने में जैतून और सरसों तेल, बादाम और अखरोट शामिल करना चाहिए। लेकिन तर-भोजन, घी, तला-भुना खाना, पेस्ट्रीज़ वगैरह से परहेज़ करना चाहिए। डायबिटीज़ से बचने के लिए गर्भवती महिलाओं को हर तीन घंटे बाद कुछ न कुछ खाना चाहिए। मतली और मॉर्निग सिकनैस का असर घटाने के लिए सुबह-सुबह काबरेहाइड्रेट से भरपूर स्नैक्स लेने चाहिए।

गर्भवती महिलाओं में डायबिटीज़ का असर होने वाले शिशु पर भी पड़ सकता है। इसका पता अक्सर गर्भधारण के 28वें सप्ताह तक चलता है। इसका डॉक्टरी इलाज तो है ही, साथ-साथ खानपान में बदलाव और नियमित सैर से भी  फायदा होता है। इस दरम्यान भ्रूण के विकास के लिए अतिरिक्त इनर्जी की जरूरत भी होती है। इसके लिए ठोस आहार की मात्र बढ़ानी चाहिए। फाइबर युक्त भोजन को तवज्जो देनी चाहिए। फल, सब्जी और दालों के संतुलित आहार से ब्लड शुगर और ग्लूकोज़ का लैवल सही रहता है। प्रोटीन की अतिरिक्त ज़रूरत के लिए दूध, अंडा, मीट, मछली, दाल, सोयाबीन, और मूंगफली लेना चाहिए।

योग की भूमिका : डायबिटीज़ से पार पाने में योगासन का योगदान है। व्यायाम से शरीर में ग्लूकोज़ का समावेश संतुलित और बेहतर रहता है। नियमित योगासन से शरीर का मेटाबॉलिज्म, अंत:स्नवी तंत्र और नर्वस सिस्टम फिट रहता है।  योगमुद्रासन से पेट की कसरत होती है, जो  कब्ज मिटाने और पाचन में मदद करती है। मेरु-चक्रासन और धनुरासन भी कारगर हैं।

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