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हथियार के बल पर सत्ता चाहते हैं माओवादी

अंडरग्राउंड रणनीति और ओवर ग्राउंड ऑपरेशन। रेड कोरिडोर के विस्तार के लिए यही है माओवादियों की रणनीति। पर, इसके लिए उनकी तैयारी जितनी व्यापक और नियमित है वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा खतरा है।...

हथियार के बल पर सत्ता चाहते हैं माओवादी
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 10 Nov 2009 10:53 PM
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अंडरग्राउंड रणनीति और ओवर ग्राउंड ऑपरेशन। रेड कोरिडोर के विस्तार के लिए यही है माओवादियों की रणनीति। पर, इसके लिए उनकी तैयारी जितनी व्यापक और नियमित है वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा खतरा है। माओवादी हमले, विस्फोट और हिंसा के जरिए सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करना नहीं चाहते हैं, बल्कि इसके पीछे उनकी मंशा हथियार के बल पर सत्ता पर काबिज होना है। कहा जा रहा है कि माओवादियों ने ‘ड्रीम 2050’ का टारगेट तय कर रखा है। यानी उनकी चाहत है कि आज से करीब 40 साल बाद सत्ता उनकी होगी।

जानकारों की मानें तो वर्ष 2009 तक का उनका लक्ष्य 35 फीसदी इलाकों में अपना दबदबा कायम कर लेने का है। आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और बिहार उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि सत्ता नहीं, लेकिन लगभग टारगेट के अनुसार माओवादियों ने कई इलाकों में अपना प्रभाव और उपस्थिति जरूर दर्ज करा दी है। बिहार के 15 जिले कभी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शुमार थे। इन जिलों को केन्द्र सरकार भी नक्सल प्रभाव के दायरे में मानती है और वहां के लोगों को माओवादियों के प्रभुत्व से निकालने और क्षेत्र के विकास के लिए सुरक्षा संबंधी व्यय की योजना के तहत राशि भी दे रही है, लेकिन बिहार की हकीकत अब चौंकाने वाली है।

राज्य के 33 जिले अब नक्सल प्रभावित हैं, जिसमें एक पुलिस जिला बगहा भी शामिल हो चुका है। हालांकि सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि उनकी यह मंशा पूरी तो नहीं होगी, मगर उनके प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। इस विस्तार के लिए माओवादियों की जबरदस्त रणनीति है। अत्याधुनिक हथियार, उपकरण और हमले के लिए तैयार दस्ते में शामिल सदस्यों को हाई क्वालिटी ट्रेनिंग। माओवादियों के पास वे सारे हथियार हैं, जो केन्द्र सरकार सुरक्षा एजेंसियों को मुहैया कराती है। कुछ ऐसे विस्फोटक भी उनके हाथ लगे हैं, पहली नजर जिनकी पहचान करने के लिए पुलिस के लिए मुश्किल है। टेस्ट के लिए उन्हें लैब भेजना पड़ता है।

जहां तक ट्रेनिंग की बात है तो संभवतः राज्य पुलिस के जवानों को ऐसी ट्रेनिंग कम से कम नियमित तो नहीं मिलती। रोप क्लांबिंग और सैन्य कर्मियों की तरह दूसरी ट्रेनिंग उनके लिए रोजमर्रा का हिस्सा है। यह उनकी गुरिल्ला आर्मी के फिटनेस का राज है। हाल ही में मुगेंर में उनके एक ट्रेनिंग कैम्प में सुविधाओं को देखकर पुलिस भी दंग रह गई। खास बात यह है कि माओवादियों को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए अब उन्हें योगा भी सिखाया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से बिहार में उनके लिए योग शिविर भी आयोजित किए जाते रहे हैं।

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