वाम दलों ने मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों में दस प्रतिशत तक हिस्सेदारी बेचने के सरकारी फैसले को राष्ट्र विरोधी कदम बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।
चारों वाम दलों ने संयुक्त बयान में कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण का रोडमैप तैयार कर दिया है, क्योंकि सरकारी हिस्सेदारी को अल्पांश हिस्सेदारी (50 फीसदी से कम) बनाने के लिए अब केवल छोटा सा कदम उठाने की जरूरत होगी।
विनिवेश से मिलने वाली राशि को सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों में लगाए जाने की सरकार की दलील को आंख में धूल झोंकने वाला करार देते हुए माकपा, भाकपा, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक ने कहा कि सरकार नवरत्न कंपनियों का विनिवेश नहीं करने की अपनी पूर्व की प्रतिबद्धता से हट गई है।
इन दलों ने कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने का फर्जी बहाना लेकर ये कदम उठा रही है। सरकार ने राष्ट्रीय निवेश फंड में जमा विनिवेश से जुटने वाली रकम का इस्तेमाल नहीं करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी और केवल इसके ब्याज से मिलने वाली राशि का उपयोग होना था। लेकिन अब इसे तीन साल के लिए टाल दिया गया है ताकि विनिवेश से मिलने वाली राशि का उपयोग राजकोषीय घाटे को पूरा करने में किया जा सके।
चारों पार्टियों ने कहा कि यह दलील आंख में धूल झोंकने वाली है कि इस फंड का इस्तेमाल सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के लिए किया जाएगा।
वाम दलों ने कहा कि सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश के साथ-साथ सरकार विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को हटाने के उपाय कर रही है। साथ ही वह विदेशी पूंजी के लिए मीडिया सहित और अधिक क्षेत्रों को खोल रही है।
इन दलों ने सभी देशभक्त ताकतों और राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे विनिवेश के इस कदम को निरस्त करने की मांग करे। चारों वाम दलों ने कहा कि वे निजीकरण के इस कदम का कड़ा प्रतिरोध करने के लिए अपनी रणनीति बनाएंगे।
माकपा महासचिव प्रकाश कारात, भाकपा महासचिव एबी बर्धन, आरएसपी नेता टीजे चंद्रचूडन और फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता देवब्रत बिस्वास द्वारा हस्ताक्षरित संयुक्त बयान में कहा गया कि वाम दल विनिवेश के खिलाफ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्मचारियों को एकजुट करेंगी और उनके आंदोलनों का समर्थन करेंगे।