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हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगीः मनमोहन

माओवादियों की लगातार बढ़ रही हिंसक गतिविधियों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को चेतावनी दी कि हिंसा कतई बर्दाश्त नहीं की जएगी क्योंकि आदिवासी इलाकों में बंदूक के साए में कोई आर्थिक गतिविधि...

हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगीः मनमोहन
एजेंसीWed, 04 Nov 2009 06:37 PM
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माओवादियों की लगातार बढ़ रही हिंसक गतिविधियों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को चेतावनी दी कि हिंसा कतई बर्दाश्त नहीं की जएगी क्योंकि आदिवासी इलाकों में बंदूक के साए में कोई आर्थिक गतिविधि चालू रखना संभव नहीं है। उन्होंने माना कि आदिवासियों के दशकों तक शोषण से स्थिति ने अब खतरनाक मोड़ ले लिया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आदिवासियों के हितों के प्रति संवेदना की कमी रही है और वनों पर उनके परंपरागत अधिकारों को मान्यता देने की बजाय उन पर सैकड़ों मुकदमे ठोंक कर उन्हें परेशान किया गया है। इसके साथ ही उन्होंने चरमपंथी वाम हिंसा के प्रति आगाह किया, बंदूक के साए तले किसी तरह की सतत आर्थिक गतिविधि संभव नहीं है। हिंसा लोगों की मुश्किलों को और बढ़ाएगी ही। हमें इस खतरे का पूरी शिद्दत से मुकाबला करना होगा। हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया ज सकता है।

विकास प्रक्रिया में जनजातीय समुदायों को शामिल करने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को राज्य सरकारों से व्यवस्था की वजह से शोषण के शिकार लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने का आग्रह किया।

मनमोहन सिंह ने कहा कि राज्यों को जनजातीय समुदायों के जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास करना चाहिए। विकास प्रक्रिया से उनको जोड़ना बहुत महत्वपूर्ण है। परंतु यह शोषण का एक साधन नहीं बनना चाहिए न ही यह उनकी विशिष्ट पहचान या संस्कृति की कीमत पर होना चाहिए।

राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा वन और जनजातीय विकास मंत्रियों के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि मध्य भारत के जनजातीय समुदाय शोषण का शिकार बनते आए हैं।

सम्मेलन का आयोजन वन अधिकार कानून, 2006 और जनजातीय विकास और कल्याण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए किया गया है।

आदिवासियों के प्रति और अधिक प्रबुद्ध दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल के समय में बहुत सारे आदिवासियों को कानून के जरिए परेशान किया गया है। हालांकि, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश सरकारों ने आदिवासियों के पर थोपे गए मामलों को वापस लिया है। इस संबंध में एक नई शुरुआत करने की जरूरत है।

इसके साथ ही उन्होंने चरमपंथी वाम हिंसा के प्रति आगाह किया कि बंदूक के साए तले किसी तरह की सतत आर्थिक गतिविधि संभव नहीं है। हिंसा का मत लोगों की मुश्किलों को और बढ़ाएगा ही।

उन्होंने कहा कि आधुनिक आर्थिक व्यवस्था में आदिवासियों के हितों की अनदेखी और दशकों से उनके व्यवस्थागत तथा सामाजिक-आर्थिक शोषण का समाप्त करना होगा। सिंह ने हालांकि, इस बात पर प्रसन्नता जताई कि आदिवासी मामलों का मंत्रालय राष्ट्रीय आदिवासी नीति पर सर्वानुमति बनाने की ओर अग्रसर है। लेकिन साथ ही कहा कि इस नीति में हमारे विशाल देश के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे सभी आदिवासियों की विशिष्टताएं समाहित होनी चाहिए।

उन्होंने सुझाव दिया कि इसके लिए आदिवासी मामलों का मंत्रालय व्यापक पैमाने पर लोगों से सलाह मशविरा करें, ताकि इसके आधार पर तैयार होने वाला दस्तावेज आमतौर पर स्वीकार्य हो सके।

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