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घाटी में प्री-पेड

आतंकवाद पर लगाम लगाना एक उलझा हुआ काम है। आतंकवादी हर उस सुविधा के दुरुपयोग करते हैं, जो समाज की जीवन रेखा हैं। आतंक पर काबू पाने की रणनीति आमतौर पर यह रहती है कि जीवन रेखाओं को अपने ढंग से चलने दिया...

घाटी में प्री-पेड
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 02 Nov 2009 09:37 PM
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आतंकवाद पर लगाम लगाना एक उलझा हुआ काम है। आतंकवादी हर उस सुविधा के दुरुपयोग करते हैं, जो समाज की जीवन रेखा हैं। आतंक पर काबू पाने की रणनीति आमतौर पर यह रहती है कि जीवन रेखाओं को अपने ढंग से चलने दिया जाए और इनके वे सारे छेद बंद किए जाएं, जिनसे दुरुपयोग के अवसर निकलते हैं।

यह आसान नहीं है, क्योंकि दुरुपयोग करने वाले हर बार इसका एक नया अवसर, एक नया तरीका निकाल लेते हैं। लेकिन उन्हें रोकने के लिए जरूरी सेवाओं को रोकने की सलाह आमतौर पर नहीं दी जाती। लेकिन कश्मीर घाटी में जिस तरह से प्री-पेड मोबाइल फोन पर पाबंदी लगाई गई है, वह कदम इस सोच के विपरीत जाता दिख रहा है। तर्क यह  है कि मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां अपने प्री-पेड ग्राहकों की तस्दीक ठीक से नहीं करतीं और इसलिए कई कनेक्शन आतंकवादियों के हाथ पहुंच जाते हैं।

इस तरह प्री-पेड फोन पर पाबंदी से आतंकवादियों को रोकने में कितनी कामयाबी मिलेगी, यह हमें नहीं पता लेकिन कंपनियों की करनी की सजा आम उपभोक्ताओं को देना किसी भी तरह से जायज नहीं है। पूरे देश की तरह ही कश्मीर को लोगों ने भी मोबाइल फोन को तरक्की के एक औजार की तरह अपनाया है। कुछ आतंकवादियों की करतूत के लिए लाखों लोगों को इस औजार से वंचित किया जाना अच्छी रणनीति नहीं हो सकती।

बेहतर होता कि मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों पर दबाव डालकर और स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्री-पेड मोबाइल फोन के नए-पुराने ग्राहकों की तस्दीक की कोई पुख्ता व्यवस्था की जाती। आतंकवाद के इसी खतरे के चलते काफी समय तक कश्मीर घाटी को मोबाइल सेवाओं से वंचित भी रखा गया था, लेकिन बाद में यह पाया गया कि सीमावर्ती इलाकों में कई जगहें ऐसी भी हैं, जहां पाकिस्तानी मोबाइल सेवाओं के सिग्नल काफी आसानी से रिसीव किए जा सकते हैं।

तब इन इलाकों से पाकिस्तानी सिम कार्ड इस्तेमाल होने की खबरें भी आईं थीं। ऐसा खतरा अभी भी हो सकता है। भारतीय सेवाओं के सिग्नल की निगरानी तो संभव है, लेकिन पाकिस्तानी सेवाओं के सिग्नल की निगरानी शायद उस तरह से मुमकिन भी न हो। फिर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मोबाइल सिग्नल की निगरानी करके ही हमने संसद भवन पर आतंकी हमले के षड़यंत्र का भंडाफोड़ किया था। प्री-पेड मोबाइल पर रोक से ज्यादा जरूरी इस निगरानी व्यवस्था को ज्यादा आधुनिक और सटीक बनाना है।

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