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पूछो न कैसे मैंने..

कैसे रात बिताई एक बेहद निजी किस्म का सवाल है। अगर किसी दादा से कोई यह जानने की जुर्रत करे तो कान को गाली और गाल को थप्पड़ का खतरा है। दादा तो खैर, जाना-माना बदनाम बदमुजन्ना है। आज हर क्षेत्र जैसे,...

पूछो न कैसे मैंने..
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 01 Nov 2009 10:27 PM
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कैसे रात बिताई एक बेहद निजी किस्म का सवाल है। अगर किसी दादा से कोई यह जानने की जुर्रत करे तो कान को गाली और गाल को थप्पड़ का खतरा है। दादा तो खैर, जाना-माना बदनाम बदमुजन्ना है। आज हर क्षेत्र जैसे, सरकार, वकालत, सियासत, वजारत, पत्रकारिता, प्राध्यापन आदि-आदि में कृशकाय, मरियल, शरीफ दिखते तथाकथित मच्छर-दादा भी हैं। घर में भले यह डरे बकरे से रहें। बाहर निकले नहीं कि महिला विजय की अपनी मर्दाना बहादुरी के किस्से यह शेर से दहाड़-दहाड़ कर सुनाते हैं। हमें वाकई शक है। औरतों के बारे में पुरुषों के अवचेतन में कोई दबी-छिपी ग्रन्थि है। वह औरतों को अभी भी विज्ञापन, शरीर-प्रदर्शन, भोग-शोषण, चूल्हा-चक्की की चीज समझते हैं।

हमें कभी-कभी लगता है। दुनिया में तरक्की का मानक कहीं नारी-शरीर की नुमाइश और तिजारत तो नहीं है। वह भी उस जमाने में जब उस के सम्मान, योगदान और बराबरी की सब दुहाई देते हैं। गनीमत है कि भारत, फिलहाल, इतना विकसित नहीं हो पाया है।

हमें उस दिन ताज्जुब हुआ, जब अपने अखबार के दफ्तर में एक केन्द्रीय मंत्री के कार्यालय से फोन घनघनाया। उनके एक गाँव में रात बिताने के प्रत्यक्षदर्शी होने को हमें निमंत्रित कर रहे थे वह। बाद में उनके प्रचार तंत्र ने सूचित किया कि नेता का इरादा गाँव के दलित, गरीब, उपेक्षित लोगों की स्थिति का जायजा लेना है।

हमने सोचा कि मंत्री अपने युवा आका की नकल में लगा है। आका गाँव अकेले जाता है। झोपड़ी में रात बिताता है। जो पका हो, वही खाता है। बड़के की नकल कर, छुटके द्वारा उसके विश्वास पात्र बनने की प्रतिभा से ही आज लोग सियासत के प्रतियोगी क्षेत्र में कामयाबी की मंजिल पाते हैं। हमें हैरत हुई गाँव पहुँचकर। ठाठ हों तो इस छुटके ऐसे। भाड़े के वर्कर, गद्दे, जेनरेटर, रसोइये, बर्तन, गैस, पंखों के साथ वह पधारा। भाड़े की भीड़ ने फर्जे-दिहाड़ी के एवज में गला फाड़ा। उस की जयकार की। गाँव जागा। सहभोज हुआ। 

मंत्री ने युवा आका की शान में कसीदे पढ़े। एक खाली झोपड़ी में गद्दे बिछे। जेनरेटर लगा। पंखे चले। एक समर्पित सेवक ने उनके बदन पर मच्छर निरोधक क्रीम मली। गाँव-वालों को मच्छर, मक्खी, सुअर, गंदगी की आदत है। नेता कटा तो क्या होगा। नेता ने रात भर खर्राटे भर कर दलित सेवा की। सुबह-तड़के ऐसे भागे गाँव से कि क्या पुलिस वाले नक्सल क्षेत्र से भागेंगे! जैसे उन्होंने वर्षों से जन-सेवा का नाटक सफलता से किया है, एक रात दलित-सेवक की भूमिका भी निभा ली! मुल्क मंत्रियों की असली योग्यता-प्रतिभा से परिचित नहीं है। हर मंत्री, अपने आप में, एक अदद अमिताभ बच्चान है।

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