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बदले-बदले से नजर आते हैं सास-बहू के रिश्ते

सास शब्द का जिक्र आते ही आंखों के आगे एक कर्कश महिला की छवि कौंध जाती है जो अपनी बहू पर अत्याचार करते नहीं थकती। लेकिन बदलते समय के साथ अब सास की छवि बदल रही है और सास-बहू के रिश्ते भी नए रूप ले रहे...

बदले-बदले से नजर आते हैं सास-बहू के रिश्ते
एजेंसीFri, 23 Oct 2009 02:55 PM
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सास शब्द का जिक्र आते ही आंखों के आगे एक कर्कश महिला की छवि कौंध जाती है जो अपनी बहू पर अत्याचार करते नहीं थकती। लेकिन बदलते समय के साथ अब सास की छवि बदल रही है और सास-बहू के रिश्ते भी नए रूप ले रहे हैं।
   
कुछ टीवी धारावाहिकों में आदर्श बहू की भूमिका निभा चुकी स्मृति ईरानी कहती हैं कि रिश्ते निभाए नहीं जाते, रिश्ते जिए जाते हैं। अगर सास बहू को अपनी बेटी और बहू सास को अपनी मां समझ ले तो इस रिश्ते से अधिक मधुर रिश्ता दूसरा नहीं हो सकता। दोनों को ही समय के अनुसार समझ-बूझ से चलना चाहिए।
   
स्मृति के मुताबिक सास के पास पुराना अनुभव रहता है और बहू नए समय की चुनौतियों को समझती है। यह ध्यान में रखते हुए दोनों में अगर तालमेल बन जाए तो इस रिश्ते में कभी कड़वाहट नहीं आ सकती। सास और बहू दोनों का केंद्र वह व्यक्ति होता है जो एक का पुत्र और दूसरी का पति होता है। इस व्यक्ति के फर्ज दोनों के प्रति बराबर होते हैं। दोनों में से किसी को भी यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि यह व्यक्ति सिर्फ उसकी ओर ही ध्यान दे और दूसरे को नजरअंदाज करे।
   
अभिनेत्री और समाजसेविका नफीसा अली मानती हैं कि बहू को अधिक प्यार की जरूरत होती है क्योंकि वह अपने माता, पिता, भाई, बहन, घर सब कुछ छोड़कर ससुराल आती है। ऐसे में उसे हर बात प्यार से बताई जाए तो उसके लिए समझने में आसानी होती है।

नफीसा के अनुसार हर घर के रीति-रिवाज, परंपराएं अलग-अलग होती हैं। ऐसे में बहू को यह अहसास नहीं कराना चाहिए कि हमारे घर में ऐसा होता है और यही बेहतर भी है। हम लोगों में ऐसा गलत मानते हैं। वह कहती हैं इस बात का मतलब यह हुआ कि बहू के मायके में जो होता है, गलत होता है। हर बात पर अंकुश भी नहीं लगाना चाहिए। बहू को भी चाहिए कि वह सास का मन रखे, उनका मान करे।

पश्चिमी देशों में अक्तूबर के चौथे शनिवार को मदर इन लॉ डे मनाए जाने के बारे में नफीसा कहती हैं कि हमारे यहां इस रिश्ते को लेकर सोच बदलने में समय लगेगा। शुरूआत हो चुकी है पर लंबा सफर अभी बाकी है। अभी हमारे यहां ऐसे दिन की कल्पना बेमानी है।

राजधानी के एक पॉश इलाके में अपना बुटीक चला रही रचना सिंह बताती हैं कि पति के देहांत के बाद मेरे पास बच्चों को पालने के लिए खुद काम करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। मैं अधिक पढ़ी लिखी भी नहीं हूं। इसीलिए मैंने सिलाई का काम शुरू किया। मेरी बेटी और बेटे की पढ़ाई हो गई और आज दोनों ही अपने पैरों पर खड़े हैं। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि मेरी बहू अब मेरा काम संभाल रही है।

वह बताती हैं कि उनकी बहू गोपी ने विवाह के बाद केवल इसलिए फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया क्योंकि वह अपनी सास के काम में मदद करना चाहती थी। वह अब नए-नए डिजाइन बनाती हैं। मटीरियल के मामले में भी उसकी पसंद लाजवाब है। मुझे कई बार लगता है कि यह मेरी बेटी ही है, इसीलिए उसे मेरा इतना ध्यान रहता है।

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