कुत्तों की बढ़ती आबादी बनी विस्फोटक समस्या
प्रशासन की नाकामी से बढ़ती कुत्तों की आबादी शहर के लिए विस्फोटक समस्या बनती जा रही है। दो साल में कुत्तों की संख्या 60 हजार से बढ़कर एक लाख से ज्यादा हो गई। रैबिज के मामले कम नहीं हो रहे। इस वर्ष...
प्रशासन की नाकामी से बढ़ती कुत्तों की आबादी शहर के लिए विस्फोटक समस्या बनती जा रही है। दो साल में कुत्तों की संख्या 60 हजार से बढ़कर एक लाख से ज्यादा हो गई। रैबिज के मामले कम नहीं हो रहे। इस वर्ष सितंबर तक दो हजार लोगों को कुत्ते अपना शिकार बना चुके हैं। पॉश या फिर स्लम, सभी बस्तियों से कुत्ते के काटने के मामले आ रहे है।
राष्ट्रमंडल खेलों से पहले बधियाकरण अभियान चलाकर दिल्ली को आवारा कुत्तों से मुक्त करने की दिल्ली सरकार की पहल से भी जिला प्रशासन सबक नहीं ले रहा। आवारा पशुओं को पकड़ने को लेकर नगर निगम अभी तक बॉयलाज नहीं बना पाया है। 15 से 20 लोग रोज कुत्तों की समस्या से निजात पाने के लिए निगम में शिकायत दर्ज करवाने आ रहे हैं। ऐसे में कार्रवाई की गाईडलाइन न होने पर निगम कर्मचारी भी ठोस कार्रवाई करने से बचते हैं।
बुजुर्ग, महिला व बच्चे इनसे ज्यादा भयभीत हैं। रिहायशी क्षेत्र, सरकारी दफ्तर, मार्केट में इनका आतंक है। कुत्तों को एंटी रैबिज के इजेंक्शन लगाने, बधियाकरण करने या फिर इनकी कालोनी बसाने की सभी योजनाएं फ्लॉफ शो रहीं। गृह मंत्रालय की इजाजत से फरीदाबाद पहुंचे ऑस्ट्रेलिया के डॉक्टर डग्लस भी कुत्तों को काबू नहीं कर पाए। देश भर से बुलाए पशु चिकित्सक सजर्नों को ट्रेनिंग देकर औपचारिकता पूरी करके चले गए। पैसों के अभाव में गैर सरकारी संगठन भी नाकाम होकर लौट गए।
निगम ने पिपल फॉर एनीमल और एक दूसरे गैर सरकारी सगंठन को आवारा कुत्तों को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है। बीमार कुत्तों को पकड़कर फिलहाल यह संगठन उनका इलाज कर रहा है। संगठन के प्रधान रवि दुबे का कहना है कि कुत्तों को काबू करने की पूरी कोशिश की जा रही है। उम्मीद है, जल्द ही इनके आतंक से निजात मिल जाएगी।
कुत्ते काटने के मामलों पर एक नजर
वर्ष मामले
2008 2910
2009 (सितंबर तक) 1968
अब तक चलाई योजनाओं पर एक नजर
-जिले में एक लाख से ज्यादा आवारा कुत्ते
-आस्ट्रेलिया के गैर सरकारी संगठन के डॉक्टर डग्लस ने कुत्तों का ऑपरेशन करने की ट्रेनिंग वेटनरी सजर्नों को दी
-कुत्तों को पकड़कर हाइवे स्थित सिकरी के पास एक ऑपरेशन थियेटर में लेकर गए, जहां कुत्तों का बधियाकरण करकेपुरानी जगह छोड़ा गया
-पशुपालन विभाग के साथ नगर निगम द्वारा चलाया बधियाकरण अभियान सिरे नहीं चढ़ा
-गैर सरकारी संगठन आरपीजी ऑफ इंडिया को आवारा कुत्ते पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी थी। सही काम न होने पर निगम ने उसके साथ अनुबंधन तोड़ दिया
-संगठन को कुत्तों का पहचान पत्र बनाने, उनका बधियाकरण करने, एंटी रैबिज इंजेक्शन लगाने की योजना पर अमली जामा पहनाना था
-पहचान पत्र कुत्ते के कान में लटकाया जाता, जिसमें उसका मोहल्ला, उम्र, रंग आदि अंकित होता
-एनिमल बर्थ कंट्रोल कानून के तहत बधियाकरण करके कुत्तों को वापस उसी मोहल्ले में छोड़ने का प्रावधान था।
-डॉक्टरों के अभाव में बधियाकरण अभियान नाकाम रहा
-नगर निगम सदन में प्रस्ताव पारित करवाकर कुतों की कॉलोनी स्थापित करने का फैसला किया गया। इसके लिए अभी तक जमीन की तलाश पूरी नहीं हुई है।
कुत्तों का यहां हैं आतंक--
एनएच-एक से लेकर एनएच-पांच के रिहायशी क्षेत्र व उनकी मार्केट, एसजीएम नगर, डबुआ कालोनी, जवाहर कालोनी, पर्वतिया कालोनी, एसी नगर, सुभाष कालोनी, चावला कालोनी, सेक्टर-14,15,16,17,18,19, गांव बड़खल, अनखीर, नवादा, भांखरी, डबुआ, सारन, मुजेसर, जनता कालोनी आदि में आवारा कुत्तों का आतंक है।