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हवा में घुलते जहर के निशाने पर हैं दिल्ली के बच्चों

दिल्ली की आबोहवा बच्चों को बीमार बना रही है। वाहनों की बढ़ती भीड़, निर्माण गतिविधियों के तेज होने, घटते पेड़-पौधे और उस पर पटाखों का प्रदूषण। इससे बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। फेफड़े...

हवा में घुलते जहर के निशाने पर हैं दिल्ली के बच्चों
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 19 Oct 2009 12:52 AM
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दिल्ली की आबोहवा बच्चों को बीमार बना रही है। वाहनों की बढ़ती भीड़, निर्माण गतिविधियों के तेज होने, घटते पेड़-पौधे और उस पर पटाखों का प्रदूषण। इससे बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। फेफड़े संक्रमित हो रहे हैं। मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के प्रोफेसर जुगल किशोर के अनुसार यदि हवा यूं ही प्रदूषित होती रही तो बच्चों में रेस्पेरेटरी बीमारियां और बढ़ सकती हैं।


कुछ समय पूर्व केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने एक स्टडी की। इसमें दिल्ली के स्कूलों के 11628 बच्चों (4-17 साल) और इसी उम्र के उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के गांवों के बच्चों के दो ग्रुपों को शामिल किया। बाहरी बच्चों की तुलना में दिल्ली के बच्चों में फेफड़ों का संक्रमण और सांस संबंधी बीमारियां दोगुनी पाई गई।
स्टडी के अनुसार दिल्ली के 23.1 फीसदी बच्चों अपर रेस्परेटरी सिंड्रोम से जुड़ी बीमारियों की जद में हैं जिसमें मुख्य रूप से साइनोसाइटिस, नाक बहना, गला खराब होना, छींक आना तथा जुकाम शामिल है। जबकि बाहरी बच्चों मे यह संक्रमण 14.6 फीसदी था। दिल्ली के 17 फीसदी बच्चों में लोअर रेस्पेरेटरी सिंड्रोम जिसमें सूखी खांसी, बलगमयुक्त खांसी, सांस लेते समय गला बजना, छाती में दर्द, थकान, नींद में बाधा के लक्षण मिले। जबकि 8 फीसदी बाहरी बच्चाे ही इससे प्रभावित थे।


इसी प्रकार दिल्ली के 4.6 तथा बाहर के 2.5 फीसदी बच्चों को अस्थमा निकला। दिल्ली के 15 फीसदी बच्चाे आंखों में जलन, 27.4 फीसदी सिरदर्द, 11.2 फीसदी जी मितलाने, 7.2 फीसदी घबराहट के लक्षणों से भी ग्रस्त थे जबकि बाहरी बच्चों में उपरोक्त लक्षणों का प्रतिशत क्रमश 4, 11.8, 5.6 तथा 3.3 निकला।


फेफड़ों की जांच संबंधी एक अन्य स्टडी में दिल्ली के 58 बच्चों के फेफड़ों में संक्रमण निकला। इनमें दो कंपोनेंट न्यूट्रोफिल्स, एसिनोफिल्स बढ़े हुए थे जो दर्शाता है फेफड़ों में श्वेत रक्त कणिकाओं में संक्रमण और एलर्जी को दर्शाता है। इतना ही नहीं, दिल्ली के 4.8 फीसदी और बाहर के 1.9 फीसदी बच्चाे उच्च रक्तचाप की चपेट में थे। मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के प्रोफेसर जुगल किशोर के अनुसार यह अध्ययन बताता है कि प्रदूषण का असर बच्चों के फेफड़ों से लेकर पूरे श्वसन तंत्र पर पड़ रहा है। उनके अनुसार, ‘हवा जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बगैर हम जी नहीं सकते लेकिन हवा की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है जो बच्चों, बड़ों सभी में बीमारियों के बढ़ने की वजह है।

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