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हर वर्ष करोड़ो पी जाते हैं एनजीओ

सूबे में बाल श्रमिक स्कूलों के नाम पर हर वर्ष करोड़ों पी जाते हैं एनजीओ। इस बहती गंगा में हाथ धोने से बाज नहीं आते केन्द्र से लेकर जिला प्रशासन से जुड़े अधिकारी भी। फर्जी स्कूल, फर्जी बच्चाे और यहां...

हर वर्ष करोड़ो पी जाते हैं एनजीओ
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 18 Oct 2009 10:45 PM
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सूबे में बाल श्रमिक स्कूलों के नाम पर हर वर्ष करोड़ों पी जाते हैं एनजीओ। इस बहती गंगा में हाथ धोने से बाज नहीं आते केन्द्र से लेकर जिला प्रशासन से जुड़े अधिकारी भी। फर्जी स्कूल, फर्जी बच्चाे और यहां तक की इनके संचालन की जिम्मेदारी भी कई फर्जी संस्थाओं के हाथ में है। जो सही संस्थाएं काम करना भी चाहती हैं तो फर्जीवाड़े की इस भीड़ में उनका चल नहीं पाता। नतीजा यह है कि जब-जब जांच हुई गड़बड़ियां मिली हैं।


राज्य के 24 जिलों में संचालित केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत संचालित इन विशेष स्कूलों का बुरा हाल है। एनजीओ ही जिलों में बालश्रमिकों का सर्वे करते हैं और उसी सर्वे के आधार पर स्कूलों की संख्या तय कर एनजीओ को ही रुपया दे दिया जाता है। मतलब बिल्ली को मिली दूध की रखवाली।  गड़बड़ी का मूल आधार यही है। एनजीओ श्रमिकों की संख्या बढ़ाकर दिखाते हैं और ज्यादा स्कूल अपने नाम आवंटित कराकर कम छात्रों को पढ़ाते हैं। हद तो यह है कि कई बार जिलों से इस बावत सरकार को रिपोर्ट भी नहीं दी जाती। रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण ही कुछ दिन पहले केन्द्र सरकार ने साफ कह दिया था कि बिहार के 12 जिलो में ऐसे स्कूल चलते ही ही नहीं हैं। जानकारी के अनुसार जिन जिलों को केन्द्र ने चिह्न्ति किया था उनमें गया भी शामिल है। सबकि सच्चई यह है कि गया में देश के किसी भी दूसरे जिले से ज्यादा स्कूल संचालित हैं। इस जिले में 138 ऐसे बाल श्रमिक स्कूल हैं जिनकी क्षमता सौ छात्रों की है। शेष सभी जिलो में 50 छात्रों की क्षमता वाले स्कूल हैं। वहां 13800 छात्र ऐसे स्कूलों में नामांकित हैं। मुख्यालय और जिलों के अधिकारियों द्वारा भी कई बार गड़बड़ियां पाई गई हैं। अकेले कटिहार जिले में दो बार जांच हुई और दोनों बार स्कूलों में छात्रों की संख्या और कागज अंकित पर संख्या में भारी अंतर पाया गया। केन्द्र सरकार हर वर्ष इस योजना के तहत 40 करोड़ रुपये आवंटित करती है। बालश्रम से मुक्त कराये गये 9 से 14 वर्ष के श्रमिकों को तीन वर्ष तक इन विशेष स्कूलों में पढ़ाकर उनका दाखिला स्कूलों में करा दिया जाता है।

‘चयनित सभी जिलों में योजना चल रही है। योजना केन्द्र सरकार की है और इसके लिए राशि केन्द्र विभाग को देकर सीधे जिलाधिकारियों को भेज देता है। लिहाजा श्रम विभाग बहुत नियंत्रण नहीं कर पाता है। गड़बड़ियां हैं, रोकने के लिए उपाय किये जा रहे हैं। - अवधेश नारायण सिंह, मंत्री, श्रमसंसाधन विभाग, बिहार। ’

‘यह योजना ही अव्यवहारिक है। विशेष स्कूलों की जगह बाल श्रमिकों के लिए आवासीय स्कूलों की व्यवस्था होनी चाहिए। इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहा है। - रामदेव प्रसाद, अध्यक्ष, बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग’

बिहार में कुल जिलों की संख्या -    38
परियोजना के लिए चयनित जिलों की संख्या-  24
स्वीकृत विशेष स्कूलों की संख्या   1752
संचालित स्कूलों की संख्या-   1462
नामांकित बाल श्रमिकों की संख्या-  79826

जिलों में स्कूलों और छात्रों की संख्या
जिला  संचालित स्कूल नामांकित बाल श्रमिक
जमुई  40   2000
नालंदा  25   2500
पूर्णियां  40   2000
अररिया  90   4500
कटिहार  100   5000
खगड़िया  54   2700
किशनगंज  80   4000
समस्तीपुर  47   2350
दरभंगा  44   2180
सुपौल  66   3300
मुजफ्फरपुर  46   2300
सारण  77   3850
पटना  100   5000
पूर्वी चमपारण 50   2500
बांका  38    1891
गया   138   13800
बेगुसराय  56   1405
नवादा  88   4400
भागलपुर  92   4600
सीतामढ़ी  42   2100
सहरसा  39   1950
मधुबनी  10   500
प. चमपारण  100   5000
मधेपुरा  00   00

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