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अराजक मुल्क में आतंक

पाकिस्तान में होने वाली आतंकवादी वारदात की खबरें अब ज्यादा चौंकाती नहीं हैं। वहां हर रोज होने वाली वारदात और मरने वालों की संख्या को उंगुलियों पर गिनना अब मुमकिन नहीं। पाकिस्तान में पिछले 11 दिन में...

अराजक मुल्क में आतंक
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 15 Oct 2009 10:11 PM
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पाकिस्तान में होने वाली आतंकवादी वारदात की खबरें अब ज्यादा चौंकाती नहीं हैं। वहां हर रोज होने वाली वारदात और मरने वालों की संख्या को उंगुलियों पर गिनना अब मुमकिन नहीं। पाकिस्तान में पिछले 11 दिन में 150 से ज्यादा लोग आतंकवादियों के शिकार बन चुके हैं। और आप जब यह संपादकीय पढ़ रहे होंगे उस समय तक यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। ये 11 दिन महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि इनमें एक नया ट्रेंड दिखाई दिया है।

अब वे पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र पर हल्ला बोल रहे हैं। कल उन्होंने पाकिस्तानी पुलिस की खुफिया एजेंसी के मुख्यालय पर धावा बोला, इसके अलावा पुलिस चौकियों पर भी हमला किया। अभी चंद रोज पहले तो वे रावलपिंडी में पाकिस्तानी फौज के मुख्यालय पर काबिज हो गए थे और कई अधिकारियों तक को बंधक बना लिया था। यह वही फौज है, जिसके बारे में हर कोई यह अच्छी तरह जानता-मानता है कि उसने ही पाकिस्तान में आतंकवादियों को पाला-पोसा और खड़ा किया।

भारत और अफगानिस्तान में धीमी जंग के लिए विदेशी नीति के एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया। कुछ समय पहले तक ही यह कहा जाता था कि ये आतंकवादी चाहे किसे भी निशाना बनाएं, वे पाकिस्तानी फौज पर हमला नहीं बोलते। पाकिस्तान की राजनीति का एक हिस्सा बन चुके आतंकवादियों को यह संयम अगर टूट गया है तो इसके कई अर्थ हैं।

शायद यह कि पाकिस्तान पर पड़ने वाला अमेरिकी दबाव उसकी फौज को आतंकवादियों पर कार्रवाई के लिए जिस तरह मजबूर कर रहा है, उसके बाद से फौज और तालिबान अब पहले की तरह दोस्त नहीं रह गए। और यह भी कि आतंकवादियों ने अब वह ताकत बटोर ली है कि उनमें फौज से सीधी छापामार टक्कर लेने का दुस्साहस आ गया है। यह आतंकवादियों का दुस्साहस बढ़ने की निशानी तो है ही, साथ ही यह पाकिस्तानी हुकूमत के पस्त हौसले का संकेत भी हो सकता है।

किसी भी तरह से भारत के लिए यह एक बहुत बुरी खबर है। पाकिस्तान में आतंकवादी जितने ज्यादा मजबूत होंगे भारत के लिए खतरा उतना ही बढ़ेगा। अभी तक हमारे पास एक उम्मीद बनी हुई है कि किसी भी तरह से हम अंतरराष्ट्रीय दबाव डलवाकर पाकिस्तान को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए राजी कर ही लेंगे। बहुत से लोगों को इस सोच के कारगर होने पर संदेह हो सकता है, लेकिन इस उम्मीद का कोई विकल्प भी नहीं है। पाकिस्तान का निजाम जैसे-जैसे कमजोर होगा यह उम्मीद भी टूटती जाएगी।

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