नेत्रहीन चाँदनी
अभी चंद रोज पहले शरद पूर्णिमा थी। सफेद छड़ी का सहारा देते हुए वे उन्हें साथ लाए और ओस भीगी घास पर बिठा दिया। उन्होंने पूछा कि जानते हैं, आपको यहां क्यों लाया हूं? यह बताने के लिए कि जो कुछ कभी-कभार...
अभी चंद रोज पहले शरद पूर्णिमा थी। सफेद छड़ी का सहारा देते हुए वे उन्हें साथ लाए और ओस भीगी घास पर बिठा दिया। उन्होंने पूछा कि जानते हैं, आपको यहां क्यों लाया हूं? यह बताने के लिए कि जो कुछ कभी-कभार ऊपर से मिलता है, निस्संकोच बंटता है। मसलन बारिश, लू, धूप, सर्द हवाएं, बर्फबारी और यह चाँदनी। उन्होंने छड़ी से इर्द-गिर्द का माहौल टटोला और बोले- चाँदनी क्या होती है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं। वे जो रोशनी की दुनिया में जी रहे थे, बोले- अरे, आप चाँदनी नहीं जानते। ओह, आई एम सॉरी। मैं भूल ही गया था कि आप नेत्रहीन हैं। देख नहीं सकते। खैर मैं आपको उपमाओं के माध्यम से समझाता हूं। मसलन हम खुद भूखे रह कर पड़ोसी देश को अनाज बांटते हैं तो कहते हैं कि हम अपनी हरित क्रांति बांट रहे हैं। या किसी विदेशी को भाखड़ा नांगल दिखाने ले जाते हैं तो बचपने में ही उसके सीने पर चटखी दरारों पर खूबसूरत चिप्पियां चिपका कर कहते हैं- देखिए, यह हमारे ईमान का तीर्थस्थल है। उपमाएं हर चीज की हो सकती हैं, सिर्फ भूख, गरीबी और नंगे जिस्म को छोड़कर। क्योंकि अव्वल तो यह तीन चीजें हमारे यहां हैं नहीं..और कहीं हैं तो हमारे बड़े दिमाग कुर्सी से नीचे उतर कर इन छोटी चीजों की उपमाएं ढूंढने में वक्त नहीं गंवाते। खैर, समझ लीजिए कि चाँदी असली घी जैसी चिकनी होती है। इसका बिखराव उतना ही बेपनाह होता है, जितना एक कुर्सीनशीन लीडर का ईमान। किसी तंग तारीक सीलन भरी बदबूदार झाेपड़ी में जन्मे एक हृष्ट-पुष्ट बच्चों की सी मुस्कुराहट होती है। चाँदी उतनी ही बेदाग होती है, जैसे नेक दिल बीवी का यकीन। चाँदनी उतनी ही मासूम होती है, जितनी वे हथेलियां, जिन्हें बिना शक हथियार उठाने से परहेज हो। अब तो आप समझ गए न कि चाँदनी क्या होती है?
उन्होंने अपनी ज्योतिहीन आंखों से टकपे आंसू पोंछे और बोले- समझ गया कि अंधा, नाबीना, नेत्रहीन, ब्लाइंड..जो कुछ मैं हूं, मैं नहीं आप हैं। आज के युग में असली घी, झोपड़ी में हृष्ट-पुष्ट बच्चा, कुर्सीनशीन का ईमान, बीवी का यकीन, बिना शक हथियार उठाने से परहेज आपने खुद भी कभी देखे हैं? चाँदनी मासूम है, बेदाग है, पुरनूर है, मैं मान लेता हूं। पर इसे उपमाओं से गंदा मत कीजिए। चाँदनी में बैठकर खुद को धोखा देना अच्छा नहीं लगता। वे अपनी सफेद छड़ी से राह टटोलते हुए, आँख वाले को वहीं छोड़कर, पार्क से बाहर चले गए। शरद पूर्णिमा का चाँद भी आँखों वाले की बेबसी पर दुखी था कि क्या-क्या देख कर भी क्या-क्या कहना पड़ता है।