जेनेटिक फसलें
देश की बायोटेक नियामक संस्था द जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी बीटी (बायोटेक) बैंगन को मान्यता देने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा हुआ तो यह देश में पहला जेनेटिक मॉडिफाइड फूड होगा। हालांकि इसे लेकर कई...
देश की बायोटेक नियामक संस्था द जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी बीटी (बायोटेक) बैंगन को मान्यता देने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा हुआ तो यह देश में पहला जेनेटिक मॉडिफाइड फूड होगा। हालांकि इसे लेकर कई लोग एतराज कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे स्वास्थ्य प्रभावित होगा। अब तक भारत में सिर्फ बीटी कॉटन ही कमíशयल प्रमाणित फसल थी।
जेनेटिक मॉडिफाइड फूड या फसलों में जेनेटिक मैटीरियल (डीएनए) में बदलाव किया जाता है। कहने का मतलब ये कि ऐसी फसलों की उत्पत्ति अनुवांशिकीय रूपांतरित बनावट से की जाती है। इनका डीएनए जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार होता है। इससे फसलों का उत्पादन अधिक और आवश्यक तत्वों की मात्र बढ़ जाती है। ऐसी फसल पहली बार 1990 में आई थी। टमाटर को सबसे पहली इस विधि से रूपांतरित किया गया था। कैलिफॉर्निया की कंपनी कैलगेने ने टमाटर के धीरे-धीरे पकने के गुण को खोजा था। इसी तरह का प्रयोग अब जानवरों पर भी हो रहा है। 2006 में सूअर पर प्रयोग किया गया, जिसके बाद विवाद उठा था। उत्तरी अमेरिका अनुवांशिकीय रूपांतरित फसलों का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि विश्व भर में खाद्य पदार्थो में कमी का कारण खराब वितरण है न कि उत्पादन में कमी। फिर ऐसी फसलों के उत्पादन पर जोर क्यों, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों? हंगरी, वेनेजुएला जैसे देशों ने ऐसी फसलों के उत्पादन और आयात पर रोक भी लगा दी है। बढ़ती जनसंख्या और खाद्यानों की बढ़ती मांग को देखते हुए विश्व भर में अब कई फसलों और जानवरों पर ऐसे प्रयोग हो रहे हैं।