पूर्वांचल में आठ हजार शिक्षकों का वेतन रुका
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही के चलते लगभग आठ हजार शिक्षक नौकरी करने के बाद भी अंकपत्र सत्यापन के अभाव में वेतन से वंचित हैं। विभिन्न प्रदेशों व जिलों के बीएसए कार्यालय...
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही के चलते लगभग आठ हजार शिक्षक नौकरी करने के बाद भी अंकपत्र सत्यापन के अभाव में वेतन से वंचित हैं। विभिन्न प्रदेशों व जिलों के बीएसए कार्यालय व डायट द्वारा सरकार के जरिए सत्यापन के लिए कुल 17 हजार अंकपत्र भेजे गए थे। चार माह बीत जाने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन इन शिक्षकों के अंकपत्रों का सत्यापन नहीं कर सका।
इस लापरवाही से दीपावली पर्व पर नवनियुक्त शिक्षकों के सामने आर्थिक संकट की स्थिति है। हैरत की बात तो यह है कि विश्वविद्यालय का अभिलेख विभाग कोई आंकड़ा नहीं दे सका कि किस जनपद से कितने अंकपत्र सत्यापित होने के लिए आये हैं।
उत्तर-प्रदेश सरकार वर्ष 2007-08 में विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से चयनित शिक्षकों से पठन-पाठन करवा रही है। ज्वाइन करने के बाद शिक्षक भी शिक्षण कार्य में लगे हैं। उनके अंकपत्रों को सत्यापित करने के लिए संबंधित विश्वविद्यालय भेजा गया है, उसी के तहत पूर्वाचल विश्वद्यालय में भी प्राइमरी के शिक्षकों के अंकपत्र सत्यापित होने के लिए आए हैं।
विश्वविद्यालय सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश के विभिन्न जनपदों के बीएसए कार्यालय से लगभग 4200 तथा डायट से लगभग 2700 विशिष्ट बीटीसी शिक्षकों के अंकपत्र पूर्वांचल विश्वविद्यालय में सत्यापित होने के लिए आए हैं। यह सभी अभ्यर्थी वर्ष 2007-08 में चयनित किए गए थे। अब तक केवल 2900 अंकपत्र ही सत्यापित हो सके हैं, जबकि चार माह से सत्यापन में लगे कर्मचारी चाहते तो सभी अंकपत्र अब तक सत्यापित हो गए होते। सूत्रों की माने तो कर्मचारी इंतजार करते हैं कि कोई आए और सुविधा शुल्क दे, तब उसका सत्यापन करें।
इसके अलावा शासन ने भी विभिन्न प्रदेशों में रह रहे लोगों के लगभग 10 हजार से अधिक अंकपत्र सत्यापन के लिए भेजे हैं। इन लोगों ने भी पूर्वांचल विवि से ही या तो बीए किया है या फिर बीएड। शासन द्वारा बीएड के 3500, बीए के 4000, बीएससी के 1600 व बीकॉम के 900 अंकपत्र भेजे गए हैं। इसमें में भी अभी तक अभिलेख विभाग द्वारा मात्र चार हजार अंकपत्रों का सत्यापन किया गया है।
बाकी लोगों का सत्यापित किए जाने का दावा किया जा रहा है। शासन द्वारा बिहार, दिल्ली, मुम्बई, गुजरात आदि प्रदेशों से लोगों के अंकपत्र सत्यापित होने के लिए भेजे गए हैं। लेकिन लापरवाही का आलम यह है कि, वर्ष 2004 में जो लोग चयनित हुए थे, उनमें से भी कुछ लोगों के अंकपत्र जांच के लिए अब भी पड़े हैं।
इस बाबत जब अभिलेख विभाग के अधीक्षक फतेह बहादुर पाल से पूछा गया तो उन्होंने कहा, जैसे-जैसे अंकपत्र मिल रहे हैं, वैसे-वैसे सत्यापन हो रहा है। लापरवाही की बात से उन्होंने इंकार किया। आठ हजार अंकपत्र रुके होने की बात से इंकार करते हुए उन्होंने यह स्वीकार किया कि लगभग पांच हजार अंकपत्र अभी सत्यापित होने के लिए पड़े हैं, जो सत्यापित किए जा रहे हैं।