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ऐसे तो रिश्ते नहीं सुधर सकते

पिछले साल 26 नवंबर को पाकिस्तान के दस लोगों ने मुंबई में तबाही मचाई थी। उसके बारे में पाकिस्तान का आम आदमी आखिर क्या सोचता है? इस सवाल के उठने की एक वजह है। दरअसल, अच्छे-खासे सबूत देने के बावजूद...

ऐसे तो रिश्ते नहीं सुधर सकते
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Oct 2009 10:19 PM
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पिछले साल 26 नवंबर को पाकिस्तान के दस लोगों ने मुंबई में तबाही मचाई थी। उसके बारे में पाकिस्तान का आम आदमी आखिर क्या सोचता है? इस सवाल के उठने की एक वजह है। दरअसल, अच्छे-खासे सबूत देने के बावजूद पाकिस्तान की सरकार कुछ करने को तैयार नहीं है। सब जानते हैं कि मुंबई हमले की तमाम साजिश पाकिस्तानी धरती पर रची गई थी। उसमें उन्हींके लोग शामिल थे। फिर उसे अंजाम देने वाले भी वही थे। कोई भी सरकार जो दावा करती हो कि लोगों की चुनी हुई है, इस तरह की हरकत नहीं कर सकती।

सबसे पहले तो पाकिस्तान का सीधा खंडन आया कि उनके देश के किसी भी शख्स का उसमें कोई हाथ नहीं है। इसके पीछे शायद यह वजह थी कि कहीं हिंदुस्तान उसी तरह की कोई जवाबी कार्रवाई न कर दे। और दोनों देशों में कहीं जंग न हो जाए। लेकिन जब उनका डर निकल गया, तो उनका अंदाज बदल गया। वे कुछ इस तरह बात करने लगे कि कोई बड़ा कारनामा कर डाला हो। भई वाह, उनके यहां के लोग भी इस तरह के काम को अंजाम दे सकते हैं। कसाब के इकबालिया बयान पर जरा गौर फरमाइए। उसने बताया कि वह किस तरह इस जुर्म में शामिल था। और किस तरह उसने पूरे ऑपरेशन को अंजाम दिया। उसके बयान के बाद तो कोई शक नहीं रह गया था कि उसके पीछे कौन था? या हमले के पीछे असल मकसद क्या था? लेकिन पाकिस्तानी सरकार कहां मानने को तैयार थी। उस हमले में 40 मुसलमान भी मारे गए थे। उसका भी कोई उसर उन पर नहीं हुआ। एक किस्म के फख्र का एहसास उनके अंदाज में चलता रहा। कमाल है उस भयानक काम में भी फख्र महसूस करना।

हफीज मोहम्मद सईद तो बाद की खोज है। हमारे आधिकारिक प्रवक्ता ने उसे साजिश के पीछे का दिमाग बताया। मैंने उस बारे में जानने की कोशिश की। अपने कुछ पाकिस्तानी दोस्तों को टटोला। मैं यह बता दूं कि इन लोगों का हिंदुस्तान को लेकर कोई खिलाफत भाव नहीं है। ये लोग दशहरा मनाने के लिए दिल्ली आए हुए थे। उन तमाम लोगों का यही मानना था कि इस हमले में उसका कोई हाथ था या नहीं, यह तो तय नहीं है। लेकिन इतना जरूर तय है कि उसके पास दिमाग ही नहीं है। वह तो इधर-उधर करने वाला कुछ हो सकता है। एक का कहना था कि ज्यादा से ज्यादा वह पैसा इकट्ठा कर सकता है। जुर्म के लिए लोगों को उकसा सकता है। लेकिन इतने बड़े ऑपरेशन को अंजाम नहीं दे सकता। लेकिन हफीज मोहम्मद सईद का रुतबा बढ़ा दिया गया है। अब उनका दर्जा सेलिब्रिटी का हो गया है। उनके बारे में कुछ भी साफ-साफ नहीं है। वह कहां हैं? इस पर अच्छा-खासा मजाक हो रहा है। एक दिन बताया जाता है कि वह गिरफ्तार कर लिए गए हैं। दूसरे दिन कहा जाता है कि वह तो घर में नजरबंद हैं। तीसरे दिन उनका वकील टीवी और रेडियो पर चिल्ला-चिल्ला कर कहता है कि वह आजाद हैं।

अब हम किस बात पर यकीन करें। हम जो भी सबूत पेश करते हैं, उन्हें वे अधकचरा बता देते हैं। इस गैर भरोसेमंद माहौल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे सुधर सकते हैं? आखिर हिंदुस्तान और पाकिस्तान की बातचीत तब हो सकती है, जब वे मुंबई के मुजरिमों को सजा दें। और उसके लिए पाकिस्तान की कोई कोशिश नजर नहीं आती।

अरुणाचल
कुछ वक्त पहले तक अरुणाचल प्रदेश के बारे में मेरी कुल जानकारी एक रसीदी टिकट पर सिमट सकती थी। मैं बस इतना ही जानता था कि वह हिंदुस्तान के धुर पूरब में है। वहां के रहने वाले मंगोल वंश के हैं। वे अलग-अलग जुबान बोलते हैं। कुछ बौद्ध हैं। कुछ ईसाई और कुछ और मजहब को मानने वाले हैं। चीन की सीमा उसे छूती है। और उसी वजह से अक्सर चर्चा में बना रहता है। शायद इसीलिए अपने पूर्व आर्मी जनरल जे. जे. सिंह को वहां का राज्यपाल बनाया गया है।
 
अब मेरी जानकारी काफी बढ़ गई है। उसकी वजह अरुणाचल पर लिखी एक टेबल कॉफी बुक ‘अरुणाचल प्रदेश: द हिडन लैंड’ है। उसे खूबसूरत अरुणाचली महिला पत्रकार ममांग देई ने लिखा है। यह किताब उन लोगों के लिए मददगार हो सकती है जो इस प्रदेश की विरासत को जानना चाहते हैं। वहां की खूबसूरती में खो जाना चाहते हैं। यह किताब एक ऐसा म्यूजियम है जिसमें आप अरुणाचल की संस्कृति और सभ्यता की एक झलक पा सकते हैं। उसमें आप नक्शे, चित्र और पेंटिंग वगैरह से आप अरुणाचल के खजाने से रू-ब-रू हो सकते हैं।

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