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मंत्री जी की डायरी

नोट- मंत्री जी सरकारी हैं लिहाजा, उनका डायरी लेखन भी सरकारी नोट-शीट पर ही दर्ज है। ‘राष्ट्र और जन-सेवा पर जीवन उत्सर्ग करनेवाला, हमारा आदर्श नेता, घर पर कम ही रहता है। अमूमन, शाम को थकान दूर...

मंत्री जी की डायरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 05 Oct 2009 12:35 AM
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नोट- मंत्री जी सरकारी हैं लिहाजा, उनका डायरी लेखन भी सरकारी नोट-शीट पर ही दर्ज है। ‘राष्ट्र और जन-सेवा पर जीवन उत्सर्ग करनेवाला, हमारा आदर्श नेता, घर पर कम ही रहता है। अमूमन, शाम को थकान दूर करने वह उस बंगले में जरूर जाता है, जो उसने अपनी प्रेमिकाओं के लिए बनाया है। कुछ ऊपरवाले की लीला है। नियति का खेला है कि उसकी हर लैला एक दो साल से ज्यादा उसका साथ नहीं निभा पाती है। कभी किसी को ट्रक ले डूबता है तो कोई अपने परिवार के र्दुव्यवहार से तंग आकर, ऐसों के बजाए भगवान के पास पलायन पसंद करती है। शायद, यही कारण है कि बूढ़ा, देश के युवाओं की प्रेरणा है। आदर्श है। हर नौजवान की तमन्ना है कि वह जिए तो बूढ़े नेता की तरह और उसकी प्रेमिका मरे, तो लीडर की रखैल के समान। जल्दी चल बसे, तो भी चलेगा।’
यह डायरी इसी ऐतिहासिक, हरे-भरे, इश्किया बंगले में लिखी गई है। एक प्रेमिका के त्रसद पलायन और दूसरी के अपेक्षित आगमन के अंतराल में। डायरी तारीख-वार नहीं है। बस, इसमें वर्ष का उल्लेख है। आशावादी मंत्री का स्वर यदि कहीं-कहीं निराशावादी है तो इसकी जड़ में एक और वियोग-विछोह की पीड़ा है, दूसरी ओर उनके इस बंगले में चोरी की वारदात का दर्द। इसी के कारण यह डायरी बिकी और चने का ठोंगा बन, हमारे हाथ आई। नीचे डायरी प्रस्तुत है- ‘हमारी आला-कमान नए-नए चोंचलों की विशेषज्ञ है। कभी आम-जन से जुड़ती है, कभी सादगी की जीवन-शैली से। इससे अधिक सादगी भरा रहन-सहन क्या होगा कि हमारी सरकारी कोठी के लॉन में खर-पतवार की हरियाली है, उसके शानदार, ऊंचे, बड़े कमरों की पपड़ी पड़ी दीवारों में उखड़ते पेंट के चेचक-दाग? बस हफ्ते-हफ्ते एकाध बड़का सूटकेस टहल आया तो बाकी दिनों पेट भरा-भरा सा रहता है। हम तो कमखर्ची में इतना यकीन रखते हैं कि एक्सक्यूटिव तो दूर, ‘कैटल-क्लास’ तक में सफर नहीं करते हैं। अपने मंत्रलय के पब्लिक-सेक्टर का एक नया-नवेला जहाज है। जहां जाना होता है, हम उसके अध्यक्ष-प्रबंध निदेशक के साथ चले जाते हैं। अक्सर यह भी होता है कि नाम उसका जाता है, सवारी हमारी। जन-हित में ऐसे छोटे-मोटे हेर-फेर तो लाजमी है।
पब्लिक सेक्टर का यह सर्वेसर्वा हमने ही नियुक्त करवाया है। हमारी ‘कन्या-कोठी’ की देखभाल उसका दायित्व है। वह जानता है कि महिला सशक्तीकरण में हमारा उल्लेखनीय योगदान गहन रुचि और जुनूनी यकीन है। इसी का नतीजा है कि खुद की पत्नी से अपनी बस औपचारिक ताल्लुकात है। बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के खारित ऐसे छोटे-मोटे त्याग तो करने ही पड़ जाते हैं।
 

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