दूसरों की भी सुनकर सुलझ सकते हैं मुद्दे: अमर्त्य
नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद और एड्स जैसे मुद्दों का समाधान खोजने के लिए दूसरों की आवाज सुनना और सहभागिता प्रक्रिया को मजबूत करना उपयोगी होगा। कार्नेजी...
नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद और एड्स जैसे मुद्दों का समाधान खोजने के लिए दूसरों की आवाज सुनना और सहभागिता प्रक्रिया को मजबूत करना उपयोगी होगा।
कार्नेजी काउंसिल में अपनी नई पुस्तक द आइडिया ऑफ जस्टिस के बारे में बातचीत करते हुए सेन ने कहा कि अधिकतर देशों में वर्तमान कानूनी प्रणाली, अधिकारों और न्याय को केवल अपने नागरिकों तक सीमित रखती है। उन्होंने इसे क्लोज्ड इंपार्शियलिटी [संकीर्ण समदर्शिता] की संज्ञा दी।
उन्होंने देशों से आह्वान किया कि दूसरे सभी लोगों के विचारों पर ध्यान देने के लिए ओपन इंपार्शियलिटी [खुली समदर्शिता] नीति का अनुसरण किया जाना चाहिए। सेन ने कहा कि यह विकल्प राष्ट्रों को स्थानीय लोगों तक सीमित रहने से बचने में मदद देगा, जिसमें अधिकतर मामलों जैसे व्यभिचारी महिला को पत्थर से पीटना, मत्युदंड और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कवायदों को न्यायोचित ठहराया जाता है।
उन्होंने कहा कि संस्थाएं खुद से न्याय नहीं करती हैं। व्यावहारिक तरीकों को संज्ञान में लिया जाना चाहिए। हम इनमें से अधिकतर प्रस्तावों को खारिज करते हैं। सेन ने कहा कि पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग कानूनी दर्जा वाला संस्थान नहीं है, लेकिन यह एक एनजीओ की तरह काम करता है। सेन ने न्याय के वैकल्पित सिद्धांतों की तलाश में भारतीय साहित्य के गूढ़ अध्ययन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इसके लिए भारतीय कानून, भारतीय दर्शन और खासतौर पर ज्ञान मीमांसा का अध्ययन किया गया है।