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कितने गंदे लोग हैं हम सब

आठ साल पहले मेरी बीवी चल बसी थी। हमने तय किया कि उसकी अस्थियों को यमुना में विसजिर्त कर दिया जाए। उसने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा दिल्ली में ही बिताया था। फिर यमुना भी गंगा की ही तरह पवित्र नदी है।...

कितने गंदे लोग हैं हम सब
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 02 Oct 2009 11:43 PM
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आठ साल पहले मेरी बीवी चल बसी थी। हमने तय किया कि उसकी अस्थियों को यमुना में विसजिर्त कर दिया जाए। उसने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा दिल्ली में ही बिताया था। फिर यमुना भी गंगा की ही तरह पवित्र नदी है। सो, मेरा बेटा और बेटी उसकी अस्थियों को लेकर यमुना किनारे मजनूं का टीला गुरुद्वारा गए। उन्हें पानी काफी गंदला महसूस हुआ। साफसुथरे पानी की तलाश में वे निगमबोध घाट पहुंचे। फिर पुराने यमुना पुल तक गए। लेकिन नदी और गंदली होती चली गई। तब वे घर लौट आए। बाद में तय हुआ कि उन अस्थियों को लेकर हम कसौली चले जाएं। और उस बाग में उन्हें बिखरा दिया जाए, जहां वह अपनी गर्मियां बिताया करती थी।

यमुना किनारे का एक नजारा मुझे भूलता नहीं है। यह आगरा में ताज के पास की बात है। मैं नदी को निहार रहा था। मैंने तभी दो कुत्तों को देखा। वे एक लाल से कफन की ओर तैरते हुए जा रहे थे। वह एक लाश थी। कुत्ते उसे घसीटते हुए एक किनारे ले गए। और खाने लगे। मुझे उलटी सी हो आई थी। आखिर हम इतने गंदे लोग क्यों हैं? अपनी नदियों को खराब करने की कितनी कोशिश करते हैं हम। अपने त्योहारों पर हम नदियों का हुलिया बिगाड़ देते हैं। हम देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का नदियों में विसजर्न करते हैं और यह भी खयाल नहीं करते कि वे जहरीले रंगों से रंगी हुई हैं।

हम अपना तमाम कूड़ा कचरा नदियों में डाल देते हैं। हम अपने सीवरों के मुंह नदियों में खोल देते हैं। समुद्र और झीलों को भी नहीं छोड़ते। इसी वजह से लाखों मछलियां दम तोड़ देती हैं। इसीलिए यह हैरत की बात नहीं कि जो नदियां हमारी जीवनरेखा हैं वे मौत और बीमारियों का पैगाम ले कर आती हैं। हमारे धर्म गुरु नहीं जानते कि उनकी नाक के नीचे क्या हो रहा है? लेकिन वे कुछ बोलते नहीं। शायद वे समझते हैं कि उससे लोग नाराज हो जाएंगे।

शर्म आती है
अपना त्योहारी मौसम चल रहा है। इस दौरान प्रदूषण से नदियों का ही नहीं शहरों का भी बुरा हाल हो जाता है। मुझे त्योहारों के वक्त जुलूसों से दिक्कत होती है। हम अपने-अपने धार्मिक जुलूस शहर के भीड़ भरे इलाकों से निकालते हैं। जाहिर है उससे शहर ठहर जाता है। दुकानों को जबर्दस्ती बंद कराया जाता है। ट्रैफिक रेंगने लगता है। हिंदू और सिख तो इस बीमारी यानी जुलूसबाजी के शिकार हैं। मैं अब तक मुसलमान दोस्तों की सराहना करता रहा था कि वे ऐसा काम नहीं करते। लेकिन मुझे दुख हुआ कि ईद पर दिल्ली-गुड़गांव हाइवे कई घंटे बंद रहा। वजह थी कि वहीं सड़क पर नमाज जो पढ़नी थी। ऐसा ही और जगहों पर भी हुआ, जहां मुसलमानों की ठीकठाक आबादी थी।

हमेशा जवान
मैं जे. के. जैन से पहले-पहल 1980 में मिला था। उसके बाद हमारा मिलना होता रहा। एक दौर में हम दोनों राज्यसभा के सांसद थे। वह कांग्रेस से थे और मैं मनोनीत हुआ था। संसद में चुने हुए शख्स के नाते वह मुझसे ज्यादा बातचीत में हिस्सेदारी करते थे। वह तकरीबन हर मुद्दे पर बोलना चाहते थे। पीलू मोदी के साथ उनकी नोंकझोंक होती रहती थी। और सदन में ठहाके लगते रहते थे। एक बार पीलू कुछ बोल रहे थे। जैन साहब लगातार टोक रहे थे। पीलू गुस्से में बोले, ‘अरे भौंकना बंद करो।’ उन्होंने स्पीकर हिदायतुल्ला से शिकायत की। ‘यह मुझे कुत्ता कह रहे हैं।’ हिदायतुल्ला ने उसे रिकॉर्ड से बाहर किया।

पीलू ने तब कहा, ‘अच्छा बड़बड़ाओ मत।’ उससे किसी को दिक्कत नहीं हुई। जैन साहब को संसद में अगली पारी नहीं मिली। लेकिन वह कांग्रेस का काम करते रहे। उन्होंने बताया कि किस तरह एक हारी हुई सीट को जीत में तब्दील किया था। वह कुल मिला कर अपने काम से बेहद खुश थे। अपने पर एक किताब उन्होंने निकाली ‘जे. के. जैन अ गोल्डन हार्ट।’ उसमें उनकी तारीफ में चर्चित लोगों ने काफी कुछ कहा है। उन्होंने खुद मुझे छह राष्ट्रपतियों और छह प्रधानमंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए। इस किताब की एक कॉपी जरूर दो हजार रुपए की पड़ी होगी। उनके पास पैसे की कोई कमी भी नहीं है।

एक दिन मैंने उनसे पूछा कि क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा, ‘वही कांग्रेस का काम। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। अभी तो जो सोनिया और राहुल के नजदीक हैं। उन्हीं का कुछ मतलब है। हम-तुम जैसे लोगों की वहां कोई पूछ नहीं है।’ उस दिन चलते-चलते हमेशा जवान रहने के लिए मुझे एक सलाह भी दी थी। ‘आपसे मिलने आईं चार-पांच खूबसूरत लड़कियों के साथ फोटो खिंचा कर कॉलम में छाप दो। फिर उसका जादू देखो।’ मैंने उनकी सलाह रिकॉर्ड कर ली है।

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