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चलें साबरमती के संत की चाल

महात्मा गांधी की विचारधारा को कल गांधीवाद कहा जाता था तो आज गांधीगिरी कहा जा रहा है। यानी वह कल भी सामायिक थे और आज भी हैं। उनके जीवन को समझने के लिए उनकी जीवनी पढ़ना भर काफी नहीं, बल्कि उन स्थानों...

चलें साबरमती के संत की चाल
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 01 Oct 2009 08:46 PM
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महात्मा गांधी की विचारधारा को कल गांधीवाद कहा जाता था तो आज गांधीगिरी कहा जा रहा है। यानी वह कल भी सामायिक थे और आज भी हैं। उनके जीवन को समझने के लिए उनकी जीवनी पढ़ना भर काफी नहीं, बल्कि उन स्थानों को देखना होगा, जहां उन्होंने सादगी भरा जीवन जीया और स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति को लौ प्रदान की। वह स्थान आज उनके जीवन दर्शन का केंद्र हैं। आइये ले चलें आपको गांधी परिपथ पर

पोरबंदर : अरब सागर के तट पर बसा पोरबंदर गुजरात राज्य का एक प्रसिद्ध शहर है। इस शहर में वह ऐतिहासिक हवेली है, जहां 2 अक्तूबर 1869 को गांधी जी का जन्म हुआ था। 1950 में नानजी भाई कालिदास ने हवेली से सटी इमारत में कीर्तिमंदिर के रूप में उनका सुंदर स्मारक बनवाया। प्रसिद्ध स्मारक के मुख्य कक्ष में महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी का चित्र है। अन्य कक्षों में गांधी जी और उनके परिवार द्वारा प्रयोग की गई वस्तुएं, उनके चित्र, डाक टिकट और अन्य बहुत-सी वस्तुओं का संग्रह है। कीर्तिमंदिर देखने के अलावा पोरबंदर में चौपाटी बीच, दरिया राजमहल, नेहरू प्लेनेटोरियम, भारत मंदिर तथा सुदामा मंदिर भी दर्शनीय स्थान हैं।

राजकोट :  गुजरात के राजकोट शहर में गांधीजी का बाल्यकाल बीता था। जिस घर में वह रहते थे, आज वहां एक स्मारक है। राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल में गांधीजी ने शिक्षा प्राप्त की थी। आज यह महात्मा गांधी हाई स्कूल के नाम से जाना जाता है। असहयोग आंदोलन की शुरुआत के बाद 1921 में उन्होंने यहां एक राष्ट्रीय शाला की स्थापना की।

अहमदाबाद: अहमदाबाद में साबरमती के पश्चिमी तट पर महात्मा गांधी का आश्रम है। इसकी स्थापना 1915 में की गई थी। इसे सत्याग्रह आश्रम भी कहा जाता था। यहां बिताये सादगी भरे जीवन के लिए उन्हें साबरमती का संत कहा गया। इस आश्रम में हृदयकुंज नामक वह कक्ष आज भी दर्शनीय हैं, जहां गांधी जी अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ रहा करते थे।

दांडी : गुजरात के समुद्र तट पर दांडी नाम का एक छोटा-सा नगर है, जहां गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा था। 1930 में अंग्रेजों द्वारा नमक पर कर लगाये जाने के विरोध में उन्होंने साबरमती आश्रम से दांडी तक पदयात्रा की थी। यह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक जबरदस्त जन आंदोलन था, जिसे दांडी यात्रा कहते हैं।

वर्धा :  गांधी जी ने 1933 में महाराष्ट्र के वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की थी। यहां उन्होंने जीवन के 15 वर्ष व्यतीत किये। गांधी जी द्वारा प्रयोग की गई झोंपड़ियों को आज भी उसी तरह सुरक्षित रखा गया है। वर्धा के महादेव भवन में गांधी जी के जीवन से जुड़ी अनेक घटनाओं के चित्र प्रदर्शित हैं।

मदुरै :  तमिलनाडु की यात्रा के दौरान गांधी जी कुछ दिन मदुरै में रुके थे। यहां के गरीब लोगों को देख कर ही उन्होंने एक धोती पहनने का नियम अपनाया था। मदुरै में आज एक गांधी संग्रहालय है, जहां उनके द्वारा अंतिम समय में पहनी हुई धोती का रक्तरंजित अंश दर्शनीय है।

पुणे :  पुणे में गांधी राष्ट्रीय स्मारक है। यह भवन पहले आगा खां पैलेस कहलाता था, जहां गांधी जी एवं कुछ अन्य नेताओं को करीब दो वर्ष तक नजरबंद रखा गया था। उसी दौरान यहां कस्तूरबा गांधी का निधन हो गया था। उद्यान में उनकी समाधि है। महात्मा गांधी की जन्मशती 1969 में इसे स्मारक का रूप दे दिया गया। गांधी फिल्म के कुछ दृश्यों की शूटिंग यहां पर हुई थी।

कौसानी : उत्तराखंड के पहाड़ों में स्थित कौसानी वैसे तो एक शांत पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां की नैसर्गिक छटा से प्रभावित होकर गांधी जी ने एक आश्रम में कुछ समय व्यतीत किया था। 1929 में अपने आवास के दौरान उन्होंने ‘गीता अनासक्ति योग’ पर अपने विचार लिखे थे। आज यह भवन अध्ययन एवं शोध का केंद्र है।

कन्याकुमारी : कन्याकुमारी में गांधीजी के अस्थि शेष प्रवाहित किये गये थे। यहां का गांधी मंडप वह स्थान है, जहां गांधी जी का अस्थिकलश लोगों के दर्शनार्थ रखा था। मंडप के गुम्बद में बने एक छिद्र से हर वर्ष 2 अक्तूबर पर सूर्य की किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं, जहां अस्थिकलश रखा गया था।

गांधी दर्शन (दिल्ली) : यह राजघाट के साथ ही है। आज यहां अंतरराष्ट्रीय गांधी अध्ययन एवं अनुसंधान केंद्र है। यह परिसर उनकी जन्मशती के अवसर पर स्थापित किया गया था। इस केंद्र में उनके विषय में एक विस्तृत प्रदर्शनी, सम्मेलन कक्ष, बाल पुस्तकालय, फोटो एकक, प्रकाशन प्रभाग आदि हैं।

गांधी स्मृति (दिल्ली)
आजादी के बाद गांधी जी ने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन नई दिल्ली के बिड़ला भवन में व्यतीत किये थे।  30 जनवरी 1948 को भवन के प्रांगण में होने वाली प्रार्थना सभा में जाते हुए उन पर गोलियां चलाई गई थीं। आज यह भवन राष्ट्रपिता का राष्ट्रीय स्मारक है। गांधी जी के शहीद स्थल को आज भी उसी रूप में संरक्षित रखा गया है। जहां यह भवन है, उस मार्ग का नाम 30 जनवरी मार्ग रख दिया गया। यहां उनकी अनेक स्मृतियां हैं।

राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय :  राजघाट के समीप यह संग्रहालय गांधी जी के जीवन के हर पहलू को संजोये है। उनसे जुड़ी महत्‍वपूर्ण पुस्तकें, दस्तावेज एवं पांडुलिपियां यहां संरक्षित हैं। इनके अलावा यहां की दीर्घाओं में गांधी जी को लगी एक गोली, उनका रक्तरंजित शॉल एवं धोती का अंश, दांडी मार्च में प्रयोग की गई लाठी एवं उनकी जेब घड़ी उनके जीवन की विशेष स्मृतिशेष हैं। संग्रहालय के प्रांगण में उनकी प्रतिमाएं दर्शनीय हैं।

दांडी मार्च प्रतिमा : नई दिल्ली में तीन मूर्ति भवन के समीप सरदार पटेल मार्ग पर स्थित दांडी यात्रा का प्रतिरूप दिल्ली का खास लैंडमार्क है। काले पत्थर की इस प्रतिमा में आगे गांधी जी बढ़ रहे हैं तो उनके पीछे 10 अनुयायी चलते दिखाये गये हैं, इसलिए इसे ग्यारह मूर्ति भी कहा जाने लगा है। यह विशाल मूर्ति शिल्प देवी प्रसाद राय चौधरी द्वारा बनाया गया था। यह शिल्प केवल गांधी जी को ही नहीं, बल्कि उनके अभियान में शामिल हर व्यक्ति को समर्पित है।

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