इसरो ने विकसित की उपग्रह का जीवनकाल बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकी
भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने पहली बार इलैक्ट्रिक प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी (विद्युत प्रणोदन प्रौद्योगिकी) विकसित की है। समझा जाता है कि यह प्रौद्योगिकी भूस्थैतिक उपग्रहों का जीवनकाल पांच साल तक बढ़ाने...
भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने पहली बार इलैक्ट्रिक प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी (विद्युत प्रणोदन प्रौद्योगिकी) विकसित की है। समझा जाता है कि यह प्रौद्योगिकी भूस्थैतिक उपग्रहों का जीवनकाल पांच साल तक बढ़ाने में सक्षम होगी।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिन उपग्रहों का जीवनकाल आज दस वर्ष है, इस प्रौद्योगिकी की मदद से उनका जीवनकाल अब 15 वर्ष हो सकता है।
इसरो प्रमुख माधवन नायर ने बताया कि प्लाज्मा थ्रस्टर्स नामक इस प्रणाली का परीक्षण जीएसएटी-4, जीसैट-4 अंतरिक्ष यान में किया जाएगा, जिसका इस साल के आखिर में प्रक्षेपण होना है।
उन्होंने बताया विद्युतीय प्रणोदन (इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन) का इस्तेमाल जीसैट-4 में किया जाएगा। यह वह अवधारणा है जिसे हम जीसैट-4 में साबित करने जा रहे हैं। एक बार साबित होने के बाद इसे भावी भूस्थैतिक कक्षाओं के लिए मानक के तौर पर अपनाया जा सकता है।
अब तक, स्टेशन के रखरखाव, ऊंचाई पर नियंत्रण, नियमानुसार यान के नियंत्रण तथा स्थिति निर्धारण के लिए इसरो रसायन प्रणोदन का इस्तेमाल करता रहा है। नायर ने बताया कि विद्युतीय प्रणोदन के इस्तेमाल से अंतरिक्ष यान का जीवनकाल बढ़ाया जा सकता है। नायर अंतरिक्ष विभाग में सचिव भी हैं।
नायर ने बताया कि आज ज्यादातर भूस्थैतिक उपग्रहों का जीवनकाल ईंधन की उपलब्धता से नियंत्रित होता है। अगर विद्युतीय प्रणोदन से यह दो या तीन साल चल सकता है तो शेष के लिए फिर से रसायन प्रणोदन का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रकार हम उपग्रह का जीवनकाल 15 साल तक बढ़ाने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। अब तक उपग्रह का जीवनकाल दस साल होता है।
इसरो के एक वैज्ञानिक ने बताया कि प्लाज्मा थ्रस्टर्स से तीव्र आवेग उत्पन्न होता है और ईंधन की खपत कम होती है। इसमें प्रणोदक के तौर पर जेनॉल गैस का इस्तेमाल किया गया है। इसरो के प्रवक्ता एस सतीश ने विद्युतीय प्रणोदन को अधिक सक्षम बताया। अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लाज्मा थ्रस्टर्स अंतरग्रही अभियानों के लिए बहुत ज्यादा उपयोगी है।