दो टूक (01 अक्तूबर, 2009)
मन्ना डे के फाल्के अवार्ड को अगर लोग बहुत देर से मिले सम्मान के तौर पर देख रहे हैं तो यह ठीक ही है। मन्ना डे दशकों पहले ही मुख्यधारा के सिनेमा के गायन से कट चुके हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ कृतित्व भी...
मन्ना डे के फाल्के अवार्ड को अगर लोग बहुत देर से मिले सम्मान के तौर पर देख रहे हैं तो यह ठीक ही है। मन्ना डे दशकों पहले ही मुख्यधारा के सिनेमा के गायन से कट चुके हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ कृतित्व भी सत्तर के दशक से पहले का है। इसके बावजूद क्या वजह थी कि उन्हें यह सम्मान देने के लिए इतना इंतजार किया गया?
खैर देर आयद, दुरुस्त आयद। मन्ना डे सचमुच अनुपम हैं। अद्वितीय हैं। सच्चे सुरों के स्वामी हैं। मुंबइया गायकों की सूची में वे अपवाद नजर आते हैं। रफी, मुकेश और किशोर की सुपरहिट तिकड़ी में वे शामिल नहीं थे। न ही उनकी आवाज किसी हीरो विशेष की पहचान बनी। बावजूद इसके वे इंडस्ट्री और श्रोताओं के दिल पर राज करते रहे। यही मन्ना डे होने का मतलब है और यही उनकी विशिष्टता है।