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जिंदगी असली, कहानी असली

लखनऊ से सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, कानपुर जाने वालों की कमी नहीं। रोज हजारों लोग अपना छोटा-बैग टांग कर एमएसटी संभालते हुए एलसी ट्रेन पर चढ़ते हैं और रात का अँधियारा गहराने पर वापस अपने शहर लौटते हैं। इन...

जिंदगी असली, कहानी असली
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 30 Aug 2009 01:19 PM
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लखनऊ से सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, कानपुर जाने वालों की कमी नहीं। रोज हजारों लोग अपना छोटा-बैग टांग कर एमएसटी संभालते हुए एलसी ट्रेन पर चढ़ते हैं और रात का अँधियारा गहराने पर वापस अपने शहर लौटते हैं। इन लोगों के बीच न जाने कितने किस्से-कहानियाँ रोज उभरते-खोते रहते हैं। लम्बी यात्राएं तो ‘डायरी’ में लिखी जाती हैं, लेकिन इन दैनिक यात्राओं का क्या.. किस्सागोई तो यहाँ भी हर सुबह-शाम होती है। फोटोग्राफर महेन्द्र कुमार पाण्डेय के साथ वात्सल्य शर्मा इन्हीं एलसी में से एक पर चढ़े और जाने कुछ एमएसटी होल्डर्स से उनके यादगार किस्से:-


अभिनव को मिला नया दोस्त
एक दिन जब अभिनव भीड़ से ठसाठस भरी एलसी में चढ़ने की कोशिश कर रहा था तो वो जयेश ही थे जिनकी वजह से वह ट्रेन पर चढ़ पाए। वह ट्रेन छूट जाती तो अभिनव एक दोस्त और एक नौकरी से हाथ धो बैठते। 

उस दिन इंटरव्यू के लिए अभिनव बहुत कायदे से तैयार होकर गए थे! एक हाथ में जरूरी कागजात और दूसरे में टिफिन बॉक्स.. वह प्लेटफार्म पर थे और ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। ऐसे में वह चढ़ते कैसे? अंदर एक लड़का गेट पर खड़ा था। उसने चलती ट्रेन से अभिनव को हाथ देकर जल्दी से अन्दर की तरफ खींच लिया। अभिनव कहते हैं, ‘मैं उनका अहसानमंद हो गया। लेकिन फिर बातचीत होते-होते जयेश मेरा पक्का दोस्त बन चुका है। अब हम एक साथ ही सफर करते हैं।’

सौरभ के दिल की बजी घंटी
यूँ तो ट्रेन में रोज ही सैकड़ों लोग मिलते हैं, लेकिन दिल के दरवाजे पर कोई-कोई ही दस्तक दे पाता है। सौरभ पाल को वो दिन अभी तक याद हैं जब उन्होंने ऋचा को स्टेशन पर देखा था। लेकिन दोनों के मामले में मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि सौरभ जिस वक्त ट्रेन से कानपुर पहुंचते थे, नेहा ठीक उसी वक्त कानपुर से लखनऊ की तरफ चल देती थीं।

लेकिन कहानियां अगर जुड़नी होती हैं तो जुड़ ही जाती हैं। सौरभ कहते हैं, ‘मुझे ऋचा पसंद थी। लेकिन मुझे पता ही नहीं था कि हम दोनों कानपुर में एक ही जगह काम करते हैं। बस शिफ्ट अलग हैं। एक दिन ऋचा ऑफिस में देर तक रुकी थीं, उनसे मिलने कोई क्लाइंट आ रहा था।’ इस देरी का फायदा सौरभ को हो गया और आखिरकार दोनों की मुलाकात भी हो गई और एक कहानी शुरू हो गई। एक किस्सा दोनों की चाहत का..।

थप्पड़ मार नेहा दुखी हो गई
नेहा को बहुत ज्यादा गुस्सा आता है और फिर अगर भीड़ ज्यादा हो तो बात ही क्या! उस दिन भी ऐसा ही हुआ। ट्रेन में रोज की तरह भीड़ थी और नेहा का गुस्सा भी रोज की तरह ही था। लेकिन उस दिन इस गुस्से के जाल में कोई अनजान फंस गया।

असल में नेहा जब ट्रेन पर चढ़ रही थीं तो उनका मोबाइल प्लेटफार्म पर ही गिर गया था। लेकिन किस्मत से एक लड़के ने मोबाइल गिरते हुए देख लिया। फिर वो उनकी तरफ दौड़ा और ट्रेन में चढ़ भी गया। लेकिन दूरी ज्यादा होने की वजह से मोबाइल लेकर वहां पहुंचना मुश्किल था। तो उस लड़के ने दूर से ही मोबाइल हिलाना शुरू किया। इसके बाद का किस्सा नेहा खुद सुनाती हैं, ‘मुझे लगा कि जैसे वो मुझसे मेरा नम्बर मांग रहा है, वो भी इतनी बेशर्मी से सभी के सामने।’ उनका गुस्सा इतनी तेज था कि उन्होंने कुछ सोचे-समझे बिना अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही उसके पास जाकर एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया।

फिर जब उन्हें पता चला कि वो लड़का उन्हें मोबाइल देने आया था तो उनके होश उड़ गए। सारा गुस्सा गायब और चेहरा शर्म से लाल। लेकिन वह करती तो भी क्या..वो लड़का उन्हें कभी दोबारा नहीं दिखा।

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