फोटो गैलरी

Hindi Newsआंध्र प्रदेश : ओछी राजनीति में मीडिया की साख

आंध्र प्रदेश : ओछी राजनीति में मीडिया की साख

आंध्र प्रदेश में न जाने क्या हुआ कि अचानक ही प्रेस और राजनीति के सहयोग भरे रिश्ते आपसी तनाव में बदल गए। और फिलहाल तो यही लग रहा है कि बाजी मीडिया के हाथ है, इसके सामने राजनीतिक समुदाय के पास करने को...

आंध्र प्रदेश :  ओछी राजनीति में मीडिया की साख
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 27 Aug 2009 08:50 PM
ऐप पर पढ़ें

आंध्र प्रदेश में न जाने क्या हुआ कि अचानक ही प्रेस और राजनीति के सहयोग भरे रिश्ते आपसी तनाव में बदल गए। और फिलहाल तो यही लग रहा है कि बाजी मीडिया के हाथ है, इसके सामने राजनीतिक समुदाय के पास करने को कुछ बहुत ज्यादा बचा नहीं है। नतीजा यह है कि अखबारों के दफ्तरों के सामने राजनैतिक दलों के प्रदर्शन होना अब रोजमर्रा की बात हो गई है। ताज घटना तो अभी महज दस दिन पहले की ही है। प्रजाराज्यम पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे राज्य में इनाडु के दफ्तरों के बाहर हिंसक प्रदर्शन किए। उन्होंने नारे लगाए, उस दिन के अखबार की प्रतियां जलाईं।
 
पुलिस पहले से ही इसके लिए तैयार थी, इसलिए हालात ज्यादा बिगड़ नहीं पाए। इस सारे बवाल की वजह अखबार में छपी वह प्रमुख खबर थी, जिसमें कहा गया था कि प्रजाराज्यम पार्टी का जल्द ही कांग्रेस में विलय हो सकता है। इस खबर से भी ज्यादा जिस चीज ने भड़काया वह था, खबर का शीर्षक ‘जेंडा पीकेड्डम’ यानी झंडा उखाड़ दो। प्रजाराज्यम पार्टी के अध्यक्ष और फिल्म अभिनेता चिरंजीवी ने इनाडु व दूसरे अखबारों पर आरोप लगाया कि वे अनाप-शनाप खबरें छाप कर प्रेस की आजादी का दुरुपयोग कर रहे हैं।

मीडिया और राजनीति के रिश्ते खराब होने के पहले लक्षण 25 साल पहले तब दिखाई दिए थे, जब राज्य में पहली बार कम्मा समुदाय ने रेड्डी समुदाय से राजनैतिक सत्ता छीनी थी। तेलुगूदेशम की जीत के पीछे इनाडु समूह का भी समर्थन था। इनाडु समूह के रामोजी राव 1974 में इस समूह की स्थापना के बाद से ही कांग्रेस का विरोध कर रहे थे, लेकिन जब एन. टी. रामाराव जैसी कम्मा शख्सियत राजनीति में आई तो वे खुलकर रामराव के समर्थन में आ गए। इसी समर्थन के चलते नौ महीने पुरानी पार्टी को भारी जीत हासिल हुई।

कई बरस तक बंद रहने के बाद जब ‘आंध्र ज्योति’ 2002 में फिर से शुरू हुआ तो उसने कम्मा समर्थक नीति अपनाई। इन दोनों अखबारों ने वाई. एस. रेड्डी यानी वाईएसआर की सरकार के खिलाफ अभियान चलाया। वाईएसआर ने तेलुगूदेशम के नौ साल के एकाधिकार को खत्म किया था। अभी भी दोनों अखबार कांग्रेस और मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।

अब वाईएसआर को भी लग रहा था कि उनके पास अपना एक अखबार होना चाहिए। इसीलिए अब उनके बेटे वाई. जगन मोहन रेड्डी ने ‘साक्षी’ नाम का अखबार शुरू किया है। इस रंगीन और भड़कीले अखबार ने राज्य के सभी 23 जिलों के संस्करण शुरू किए हैं। इसी के साथ इनाडु और आंध्र ज्योति का एक स्पर्धी भी मैदान में आ गया है।
इस अखबार की शुरुआत से पहले मुख्यमंत्री ने इनाडु के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था, उन्होंने समूह के अन्य व्यवसायों के खिलाफ जांच बैठा दी थी। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब कांग्रेस विधायक अंडवल्ली अरुण कुमार ने केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को एक पत्र लिखकर शिकायत की थी कि इनाडु समूह की कंपनी मरगदार्सी फाइनेंसर्स आरबीआई एक्ट का उल्लंघन कर रही है। विधानसभा में इनाडु समूह के पक्ष में इस मसले को तेलुगूदेशम के नेता चंद्रबाबू नायडू ने उठाया, उन्होंने साक्षी में कुछ लोगों के पैसा लगाने पर भी सवाल खड़े किए। इसके बाद दोनों ही अखबारों के लिए पैसा जुटाने के ढंग पर सवाल खड़े हो गए।

पत्रकारिता की बदकिस्मती यह है कि राज्य में बाकी सभी अखबार भी इस झगड़े में कूद पड़े हैं। इस समय हालत यह है कि अखबार और टेलीविजन चैनल, यहां तक पत्रकार भी जाति के आधार पर बंट गए हैं। हालत यह है कि 18 महीने पहले तक लोगों की तेलुगू अखबारों के मामले में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। आम आदमी तो जानता भी नहीं था कि इन अखबारों के लिए पैसा कहां से और कैसे आता है। लेकिन पिछले एक साल में इन सबका कच्चा चिट्ठा इतना ज्यादा खुल चुका है कि अब हर कोई जानता है कि इन अखबारों के आर्थिक हित क्या हैं और उसका खबरों पर क्या असर पड़ता है। इस सबका कुल जमा नतीजा यह है कि अखबारों की विश्वसनीयता एकदम खत्म हो गई है, और पत्रकार भी अब सम्मानित नहीं रह गए। अब लोग मानते हैं कि अखबार राजनैतिक दलों और उनके नेताओं का राजनैतिक रुतबा बढ़ाने के लिए शुरू किए जाते हैं। इसके बदले में राजनीति अखबार में पैसा लगाने वालों के आर्थिक हित साधती है।                    

radhaviswanath73@ yahoo. com

लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें