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खिलाड़ियों का विद्रोह

वीरेंदर सहवाग के खुले विद्रोह और उन्हें मिले अभूतपूर्व समर्थन से यह तो पता चलता है कि खिलाड़ी और खेलप्रेमी दिल्ली का क्रिकेट चलाने वालों के कितने खिलाफ हैं। मुश्किल यह है कि ये लोग डीडीसीए की राजनीति...

खिलाड़ियों का विद्रोह
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 19 Aug 2009 09:03 PM
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वीरेंदर सहवाग के खुले विद्रोह और उन्हें मिले अभूतपूर्व समर्थन से यह तो पता चलता है कि खिलाड़ी और खेलप्रेमी दिल्ली का क्रिकेट चलाने वालों के कितने खिलाफ हैं। मुश्किल यह है कि ये लोग डीडीसीए की राजनीति में वोट नहीं देते और वोटों की राजनीति करने वालों ने वहां जबर्दस्त गिरफ्त बना ली है। लोकतांत्रिक प्रणाली किसी भी और प्रणाली से बेहतर है, लेकिन डीडीसीए पर कब्जा किए लोगों ने इस प्रणाली को अपने एकाधिकार का एक तरीका बना रखा है।

ऐसा नहीं है कि सहवाग के विद्रोह के पहले ये चीजें नजर में नहीं थीं, दिल्ली के क्रिकेट में अराजकता, भ्रष्टाचार, दादागिरी, भाईभतीजवाद वगैरा इतना खुला है कि उसके बारे में नियमित रूप से खबरें छपती रहती हैं, लेकिन इन सबको चलाने वालों को अपनी कुख्याति से कोई खास असर नहीं पड़ता। जो दो घोषित राजनेता डीडीसीए में हैं, पहले डीडीसीए अध्यक्ष अरुण जेटली और दूसरे मुख्य चयनकर्ता चेतन चौहान, उनके बारे में गंभीर आरोप नहीं सुनाई देते, लेकिन वे अगर इस तंत्र में टिके हुए हैं तो अपने राजनैतिक रसूख की वजह से। जो छुटभये लोग तिकड़म करके इस तंत्र में मजबूत बने हुए हैं, उनका एक हद से ज्यादा विरोध करना इनके बस की बात नहीं है।

दिल्ली में पानी सिर के ऊपर है, इसलिए इसके बारे में खबरें भी ज्यादा आती हैं और सहवाग की हैसियत भी यह है कि वे विरोध करने की हिम्मत कर सकते हैं, लेकिन कमोबेश यही स्थिति सारे क्रिकेट संगठनों की या कि बीसीसीआई की भी है। तमाम राज्यस्तरीय संगठनों पर कोई न कोई गुट सालों से कब्जा किए बैठा है और जो लोग कुछ अच्छा काम करना भी चाहते हैं, उन्हें इन्हीं के साथ तालमेल करके काम करना पड़ता है।

दूसरे खेलों में हालत और खराब है, क्रिकेट पर मीडिया की नजर भी रहती है और खिलाड़ी भी इतने प्रसिद्ध होते हैं कि अपनी बात कह सकें। दूसरे खेलों के खिलाड़ियों की तो कोच और अधिकारियों को चाय पानी परोसने की ही हैसियत होती है। लेकिन इस स्थिति का इलाज लोकतंत्र की समाप्ति नहीं है। खराब लोकतंत्र का विकल्प है अच्छा लोकतंत्र। जरूरी है कि यह देखा जाए कि कैसे समूचे तंत्र को संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण बना दिया गया है और जड़ों की सफाई की जाए ताकि ज्यादा जवाबदेह ओर पारदर्शी तंत्र बने, जिसमें खेल और खिलाड़ियों का महत्व हो। दिल्ली के खिलाड़ियों का विद्रोह इसलिए महत्वपूर्ण है।

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