फोटो गैलरी

Hindi Newsभारत तिब्बत चीन से लगी नीती मलारी घाटी के चार गांव मनाते हैं ऐसा पर्व

भारत तिब्बत चीन से लगी नीती मलारी घाटी के चार गांव मनाते हैं ऐसा पर्व

देश की आजादी का जश्न भारत-तिब्बत-चीन सीमा से लगे भारत के सीमावर्ती गांवों के लोग अलग तरह से मनाते हैं। घर में मनाये जाने वाले तीज त्यौहार की तरह नीती मलारी घाटी में मनाये जाने वाला स्वतंत्रता दिवस...

भारत तिब्बत चीन से लगी नीती मलारी घाटी के चार गांव मनाते हैं ऐसा पर्व
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 13 Aug 2009 07:39 PM
ऐप पर पढ़ें

देश की आजादी का जश्न भारत-तिब्बत-चीन सीमा से लगे भारत के सीमावर्ती गांवों के लोग अलग तरह से मनाते हैं। घर में मनाये जाने वाले तीज त्यौहार की तरह नीती मलारी घाटी में मनाये जाने वाला स्वतंत्रता दिवस पूरे भारत में अपने आप में अनूठे तरीके का उत्सव होता है। जिसमें जन सहभागिता स्वप्रेरणा के आधार पर होती है।
चमोली जिले के नीती मलारी घाटी में नीती, गमशाली, बाम्पा और फरकिया गांव में अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं। भारत तिब्बत चीन सीमा से लगे चमोली जनपद की जनता को द्वितीय रक्षा पंक्ति के रूप में जाना जाता है। नीती मलारी और माणा घाटी में 6 महीने प्रवास करने वाले अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं।

मलारी घाटी में 4 गांवों के लोग जिनमें नीती, गमशाली, बाम्पा और फरकिया के लोग हैं, 1947 से स्वतंत्रता दिवस अनूठे रूप में मनाते हैं। गांव के भूपाल सिंह राणा कहते हैं कि यह परंपरा आजादी के बाद से शुरू हुई। हम लोग स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रात: सारे गांव के स्त्री पुरूष स्नान करते हुए और परंपरागत वस्त्रों के साथ सबसे पहले घर को सजाते हैं और त्यौहार की तरह पूड़ी, पकौड़ी और विभिन्न  पकवान बनाते हुए गांव के खुले मैदान में आते हैं। वे अपने गांव के बुजुर्गो स्व.बाला सिंह पाल, पान सिंह बाम्पाल और रघुनाथ सिंह राणा का स्मरण करते हुए कहते हैं कि इन्हीं लोगों ने हमारे गांव में स्वतंत्रता दिवस को दिव्य रूप से मनाने की परंपरा डाली।

गांव के लोग स्वतंत्रता दिवस से पहले एक सामूहिक बैठक करते हैं और आपसी निर्णय से आजादी के इस महापर्व को धार्मिक पर्व, सामाजिक पर्व और समानता के पर्व के रूप में भी मनाते हैं। गांवों में एक विषय दिया जाता है कि देश की प्रगति और गांव की प्रगति से संबंधित चारों गांवों के लोग अलग अलग प्रकार की झंकियां निकालेंगे और झंकियों के साथ अपने वाद्य यंत्रों और परंपरागत वस्त्रों के साथ गांव के लोग दुमुक धार नामक एक ऊंचे टीले पर पहुंचते हैं।

गांव के क्षेत्र पंचायत सदस्य ललित सिंह बताते हैं कि झंकियों के विषय के आधार पर चारों गांव के लोग अपनी कल्पनाओं के आधार पर उस पर विभिन्न विशेषण जोड़ते हुए खुाले मैदान में आते हैं और इन झंकियों को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ जाती है। उसके बाद गांव के लोग गांव के जूनियर हाईस्कूल अथवा दुमुक धार में आकर ध्वजारोहण करते हैं और तब खुले मैदान में हो जाती है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें